कौशांबी/अली मुक्तेदा: एक मासूम जिसकी सांसें अब उम्मीदों के सहारे चल रही हैं. कौशांबी जिले का आर्यन, जन्मजात हृदय रोग DTGA से जूझ रहा है. और उसका इलाज एम्स में होना है, लेकिन गरीबी दीवार बनकर खड़ी है. सवाल सिर्फ एक बच्चे का नहीं… सिस्टम की संवेदनशीलता का है. बच्चे के इलाज के लिए परिजनों ने सरकार से मदद की गुहार लगाई है.
एम्स दिल्ली में ही इलाज संभव
मंझनपुर तहसील के बधवा राजबर गांव में मां उमा देवी अपने बच्चे को गोद में लिए रो रही हैं. 9 महीने का आर्यन जन्म से ही गंभीर हृदय रोग DTGA यानी महाधमनियों का स्थानांतरण से पीड़ित है. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) की मंझनपुर टीम ने बच्चे की हालत को समय पर पहचाना. उन्होंने इलाज के लिए प्रयास किए, लेकिन अड़चन तब आई जब डॉक्टर्स ने कहा इलाज केवल एम्स दिल्ली में ही संभव है.
इलाज में आड़े आ रही गरीबी
आर्यन के गरीब मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं कि दिल्ली जाकर इलाज करा सकें, न तो गोल्डन कार्ड बना है और न ही कोई बीमा सहायता उपलब्ध है. आर्यन जैसे कई बच्चे कौशांबी में इसी तरह की बीमारियों से जूझ रहे हैं. लेकिन यहां सांसद और विधायक समाजवादी पार्टी से हैं, और वो स्थायी रूप से प्रयागराज में रहते हैं.
पीड़ित बच्चे के माता-पिता ने लगाई गुहार
पीड़ित के माता-पिता ने प्रशासन और सरकार से मदद की अपील की है, जिससे बच्चे का समय पर इलाज हो सके. वरना उसकी जान जा सकती है. ये सिर्फ आर्यन की नहीं, उन तमाम बच्चों की कहानी है जो समय से इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं. अगर सरकार और सिस्टम समय रहते संज्ञान लें, तो ये नन्ही ज़िंदगियां बच सकती हैं. सरकारी योजनाएं तब तक सिर्फ कागज़ी राहत बनकर रह जाती हैं, जब तक ज़मीन पर मदद नहीं पहुंचती. आर्यन और उसके जैसे मासूमों के लिए अब भी वक्त है. बशर्ते शासन और प्रशासन ठोस कदम उठाए.