Moti Lal Nehru Death Anniversary: नेहरू परिवार में जब भी शान- ओ- शौकत, राजसी ठाठबाट और ऊंची पढ़ाई-लिखाई की बात आती है तो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू का जिक्र जरूर आता है. वे अपने जमाने के बड़े मशहूर वकील थे, जिन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा ब्रिटिश राज के सरकारी स्कूल से की. इसके बाद इलाहबाद के म्योर सेंट्रल कालेज से लॉ में टॉप किया और फिर उच्च शिक्षा के लिए कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भी गए. उस दौर में उनके लिए बार-बार यूरोप जाना एक आम बात थी. 6 फरवरी को मोती लाल नेहरू की पुण्यतिथि के अवसर पर आइये आपको बताते हैं कैसे पहले कमाई के रूप में उन्हें पांच रुपये मिले और फिर देश के बड़े वकीलों में शुमार हो गए.
मोतीलाल नेहरू का शुरुआती जीवन
पंडित मोती लाल नेहरू का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में 6 मई 1861 एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था लेकिन उनका बचपन राजस्थान के खेतड़ी में बीता. बचपन में ही उनके सिर से माता-पिता का साया उठने के चलते उनकी परवरिश उनके बड़े भाई नंदलाल नेहरू ने की थी. नंदलाल नेहरू खुद हाईकोर्ट के एक बड़े वकील थे. नंदलाल ने मोतीलाल नेहरू को बड़ी शान-ओ-शौकत से पाला. उनका दाखिला ब्रिटिश सरकार के स्कूल में कराया और बाद में इलाहाबाद के म्योर सेंट्रल कॉलेज से कानून की पढ़ाई की.
मोती लाल नेहरू का करियर
मोतीलाल नेहरू ने अपने कॉलेज में लॉ में टॉप किया और 1883 में पंडित पृथ्वी नाथ के सानिध्य में लॉ की प्रैक्टिस शुरू की. हालांकि केवल तीन साल बाद ही वो अपने भाई नंदलाल नेहरू के साथ प्रैक्टिस करने लगे.
पहली कमाई पांच रुपये
ब्रिटिश राज में अंग्रेज जज भारतीय जजों को ज्यादा तबज्जो नहीं देते थे, लेकिन मोतीलाल नेहरू जब बोलते थे और जो उनका व्यक्तित्व था, उससे अंग्रेज जज प्रभावित हो जाते थे. वो उस दौर में भारत के सबसे बड़े वकीलों मे शुमार थे.
पूर्व जज पी. सद्शिवम ने लिखा
भारत के पूर्व जज पी सद्शिवम ने अपने एक जर्नल में लिखा था, मोतीलाल नेहरू एक असाधारण वकील थे. उन्हें बहुत जल्द और असरदार तरीके से सफलता मिली. उन दिनों भारत के किसी वकील को ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग मुश्किल था लेकिन मोती लाल ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल किए गए'. उन्होंने लिखा, ‘मोती लाल नेहरू को हाईकोर्ट में पहले केस के लिए 5 रुपये मिले थे. फिर वो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए. कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.’
फिर समय ऐसा भी आया कि उस दौर में भी मोतीलाल नेहरू की फीस हजारों में हो गई और उनकी रईसी देखते ही बनती थी. उनके कपड़े विदेशों से आते थे, वह लग्जरी विदेशी मोटर कार में चलते थे और उनका रुतबा किसी अंग्रेज अफसर से कम न था. बड़े-बड़े धनवान लोग उन्हें ढूंढते हुए उनके पास अपना केस लेकर आते थे. बच्चों को पढ़ाने के लिए विदेशी ट्यूटर आते थे और बच्चों की देखभाल के लिए भी अंग्रेजी आया रखी हुई थी.
बताते हैं कि 1894 में उन्होंने उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के लखना राज का केस लड़ा था और इसकी एवज में उन्हें एक लाख बावन हजार रुपये फीस दी गई थी.
मोती लाल नेहरू ने किये दो विवाह
जब उनके बड़े भाई नंद लाल नेहरू का 42 साल की उम्र में ही निधन हो गया तो उनके ऊपर एक बड़े जिम्मेदारी आ गई. भाभी और उनके पांच बच्चों की जिम्मेदारी मोतीलाल नेहरू के कंधों पर थी. मोतीलाल नेहरू की शादी छोटी उम्र में ही हो गई थी लेकिन पहली पत्नी की मौत प्रसव के दौरान हो गई जिसके बाद उनका विवाह रानी कौल से हुआ. रानी कौल से ही बेटा पंडित जवाहर लाल नेहरू और दो बेटियां विजयलक्ष्मी और कृष्णा नेहरू हुईं.
गांधी जी के प्रभाव से स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए
बात 1920 की है जब मोतीलाल नेहरू महात्मा गांधी की बातों और विचारों से इतना प्रभावित हुए कि स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन गए. ये वो वक्त था जब वो अपने पेशे में शीर्ष स्थान पर थे, लेकिन अब उनके लिए देश की आजादी पहले थी वकालात का पेशा बाद में. स्वास्थ्य खराब था लेकिन फिर में मोतीलाल नेहरू गांधी जी के साथ नमक सत्याग्रह का समर्थन करने के लिए जम्बासुर, गुजरात की यात्रा पर गये. मोतीलाल नेहरू को दो बार कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया. वे कुछ महीने जेल में भी रहे लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते रिहा कर दिये गए, इसके कुछ ही महीने बाद 6 फरवरी 1931 को पंडित मोती लाल नेहरू का निधन हो गया.
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