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यह अमानवीय है...सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बुलडोजर कार्रवाई पर लगाई फटकार, 10-10 लाख के मुआवजे का आदेश

Prayagraj News: सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में प्रयागराज में हुई एक बुलडोजर कार्रवाई के मामले पर सुनवाई करते हुए प्रयागराज विकास प्राधिकरण को कड़ी फटकार लगाई, और पीड़ितों को 10-10 लाख का मुआवजा दिये जाने का आदेश दिया है.

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यह अमानवीय है...सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज में बुलडोजर कार्रवाई पर लगाई फटकार, 10-10 लाख के मुआवजे का आदेश
Pradeep Kumar Raghav |Updated: Apr 01, 2025, 10:25 PM IST
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Prayagraj News:  सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रयागराज डेवलपमेंट अथॉरिटी (PDA) को कड़ी फटकार लगाई. अदालत ने 2021 में मकान गिराने की कार्रवाई को अवैध और अमानवीय करार दिया. कोर्ट ने कहा कि इस तरह की कार्रवाई से लोगों के अधिकारों का हनन हुआ है और यह संविधान के खिलाफ है. 

राइट टू शेल्टर’ का उल्लंघन
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कहा कि किसी के घर को यूं ही बुलडोजर से गिराना कानून के खिलाफ है. उन्होंने कहा, "देश में ‘राइट टू शेल्टर’ (आवास का अधिकार) नाम की भी कोई चीज होती है, उचित प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए."

गैंगस्टर की जमीन समझकर गिरा दिए 5 घर
2021 में प्रयागराज प्रशासन ने गैंगस्टर अतीक अहमद की संपत्ति समझकर पांच मकान गिरा दिए थे. इन मकानों के मालिक एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोग थे. बाद में पता चला कि ये संपत्तियां अतीक अहमद से जुड़ी नहीं थीं. पीड़ितों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने दिया 10-10 मुआवजा देने का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने PDA को आदेश दिया है कि जिनके घर गिराए गए थे, उन्हें छह हफ्ते के भीतर 10-10 लाख रुपए मुआवजा दिया जाए. अदालत ने कहा कि सरकार को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए.

दिन में दिया नोटिस रात में चला दिया बुलडोजर
पीड़ितों ने कोर्ट में बताया कि उन्हें 6 मार्च 2021 की रात को नोटिस दिया गया, लेकिन इस पर 1 मार्च की तारीख लिखी थी. अगले ही दिन, यानी 7 मार्च को उनके मकान गिरा दिए गए. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रशासन ने नियमों का उल्लंघन किया हैॉ

सुप्रीम कोर्ट ने किया एक और घटना का जिक्र
सुनवाई के दौरान जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने यूपी के अंबेडकर नगर की एक घटना का जिक्र किया. उन्होंने कहा, “एक तस्वीर सामने आई थी जिसमें बुलडोजर झोपड़ियां तोड़ रहा था और एक 8 साल की बच्ची अपनी किताबें लेकर भाग रही थी. यह दिल झकझोर देने वाला दृश्य था.”

क्यों खारिज हुई थी हाईकोर्ट में याचिका ?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिका खारिज करते हुए कहा था कि मकान जिस जमीन पर बने थे, वह ‘नजूल लैंड’ थी, यानी सरकारी जमीन. 1906 में मिली लीज 1996 में खत्म हो गई थी. पीड़ितों ने जमीन को फ्री-होल्ड करवाने के लिए आवेदन दिया था, जिसे 2015 और 2019 में खारिज कर दिया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने उठाए प्रशासन पर सवाल 
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के इस तर्क को ठुकरा दिया कि कार्रवाई कानूनी थी. जस्टिस ओका ने पूछा, “अगर कोई सरकारी जमीन पर अवैध रूप से रह रहा था, तो नोटिस उचित तरीके से क्यों नहीं दिया गया? यह सीधे तौर पर अन्यायपूर्ण और अत्याचारी कार्रवाई है.”

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से प्रशासन की बुलडोजर पॉलिसी पर फिर से बहस छिड़ गई है. अब देखना होगा कि सरकार इस फैसले को कैसे लागू करती है और क्या भविष्य में इस तरह की कार्रवाई पर नियंत्रण लगाया जाएगा.

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