जयपाल/वाराणसी: शादी सिर्फ दो लोगों का नहीं, दो आत्माओं और दो परिवारों का संगम होती है. इस पवित्र बंधन को सफल और सुखद बनाने के लिए कुंडली मिलान भारतीय संस्कृति में सदियों से एक महत्वपूर्ण परंपरा रही है. इसी विषय पर वाराणसी के सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य मधुसूदन मिश्रा ने बताया कि विवाह से पहले कुंडली मिलाना सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, जो जीवनभर के तालमेल और सौहार्द की नींव रखता है.
36 क्या 16 गुण में भी शादी सफल हो सकती है
ज्योतिषाचार्य मधुसूदन मिश्रा ने स्पष्ट किया कि विवाह के लिए 36 गुणों का मिलान किया जाता है. यदि इनमें से कम से कम 16 गुण मिलते हैं, तो विवाह किया जा सकता है. यह गुण मिलान व्यक्ति की प्रकृति, स्वास्थ्य, संतान सुख और वैवाहिक सामंजस्य जैसे पहलुओं को दर्शाता है.
कुंडली में सप्तम भाव का महत्व
उन्होंने बताया कि कुंडली में सप्तम भाव विवाह का प्रमुख कारक होता है और यह जन्म कुंडली में 180 डिग्री पर स्थित होता है. अगर यह भाव किसी क्रूर ग्रह से प्रभावित हो, तो वैवाहिक जीवन में बाधाएं आ सकती हैं. इसलिए सप्तम भाव का शुभ और स्थिर होना अति आवश्यक है.
चातुर्मास के दौरान क्यों नहीं करते विवाह
ज्योतिषाचार्य मधुसूदन मिश्रा ने चातुर्मास के दौरान विवाह से परहेज की परंपरा का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि चातुर्मास में देवताओं का शयनकाल होता है, इसलिए इस अवधि में विवाह संस्कार नहीं किए जाते.
कितनी आयु के भीतर शुभ रहता है विवाह
विवाह के समय को लेकर उन्होंने कहा कि दिन या रात्रि—दोनों समय विवाह हो सकता है, बशर्ते उस समय शुभ नक्षत्र हो.विवाह की आयु पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 25 वर्ष के भीतर विवाह होना अधिक शुभ माना जाता है, जिससे वैवाहिक जीवन में संतुलन और स्थायित्व बना रहता है.
इस प्रकार कुंडली मिलान, ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति और विवाह मुहूर्त का गहरा महत्व है, जो केवल परंपरा बल्कि जीवन को सुखद और संतुलित बनाने का आधार है.
ये भी पढ़ें: A अक्षर से नाम वाले जोश जज्बे से भरपूर, जानें लव लाइफ और करियर कैसा
Disclaimer: यह जानकारी सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, काशी के ज्योतिषाचार्य मधुसूदन मिश्रा द्वारा उपलब्ध कराई गई, ज़ी मीडिया इसकी सटीकता और वास्तविकता की पुष्टि नहीं करता.