trendingNow/india/up-uttarakhand/uputtarakhand02839303
Home >>Religion UP

यूपी इस जिले में इकलौता मंदिर, शिवलिंग नहीं साक्षात शिव-पार्वती की होती है पूजा

Sonbhadra News: शिवजी का यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि शिव और शक्ति की दुर्लभ उपस्थिति का एक ऐसा पौराणिक द्वार है, जिसे शिवद्वार कहा जाता है. यहां स्थापित मूर्ति और इसका इतिहास–दोनों ही अपने आप में विलक्षण हैं.

Advertisement
Uma Maheshwar mandir
Uma Maheshwar mandir
Zee Media Bureau|Updated: Jul 14, 2025, 11:27 AM IST
Share

अरविंद दुबे/सोनभद्र: सावन की पहले सोमवार को सोनभद्र के शिवद्वार में अद्भुत आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है. कांवड़ियों के कदम शिवभक्ति में रमे हैं और वातावरण ''हर-हर महादेव'' के जयघोष से गुंजायमान है. यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं बल्कि शिव और शक्ति की दुर्लभ उपस्थिति का एक ऐसा पौराणिक द्वार है जिसे शिवद्वार कहा जाता है. यहां स्थापित मूर्ति और इसका इतिहास–दोनों ही अपने आप में विलक्षण हैं.

सोनभद्र का प्राचीन उमा महेश्वर मंदिर
सोनभद्र के इस शिवद्वार की खासियत है कि यहां स्थापित शिव-पार्वती की संयुक्त मूर्ति है. जी हां, यहां शिवलिंग की नहीं, बल्कि साक्षात भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति की पूजा होती है. यही नहीं, यहीं पर इन मूर्तियों का जलाभिषेक भी किया जाता है जो कि अत्यंत दुर्लभ है. मान्यता है कि 11वीं सदी में इस मंदिर का निर्माण हुआ था. 

जुड़ी है ये किंवदंती
किंवदंती है कि एक किसान जब खेत में हल चला रहा था, तब भूमि से यह दिव्य मूर्ति प्रकट हुई. भगवान शिव का यह संकेत था कि यहां एक अद्भुत धाम की स्थापना हो. यहां की पहचान सिर्फ एक मंदिर तक सीमित नहीं है यह स्थल उस पौराणिक क्षण का साक्षी है, जब भगवान शिव ने वैराग्य का मार्ग चुना. कथा जुड़ी है दक्ष यज्ञ से – जब माता सती ने अपने पिता के द्वारा शिव का अपमान सह न सकी और आत्मदाह कर लिया. 

कहा गया शिवद्वार
तब शिव ने क्रोध से वीरभद्र को उत्पन्न किया और यज्ञ को विध्वंस कर डाला. दक्ष का सिर काटा गया. और बकरे का सिर लगाया गया. इन्हीं क्षणों में शिव का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने वैराग्य धारण किया. माना जाता है कि वैराग्य की उस पहली अवस्था में उन्होंने यहीं पर पहला पग रखा था – इसी कारण इस स्थान को शिवद्वार कहा गया और यहीं पर, गुप्त रूप से उन्होंने तपस्या में लीन होकर इस क्षेत्र को बना दिया – गुप्तकाशी.

मंदिर क पुजारी का क्या कहना?
वहीं मंदिर के प्रधान पुजारी सुरेश गिरी ने बताया कि यहां मंदिर में विराजमान भगवान शिव और माता पार्वती यह मूर्ति 11वीं शताब्दी की बताई जाती है. यह मंदिर अत्यंत प्राचीन है किंतु वर्ष 1942 में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था. श्रावण मास के महीने में यहां कांवरियों का जत्था आता है. विभिन्न स्थानों से यहां भारी तादात में श्रद्धालु आते हैं और महादेव सभी भक्तों की मनोरथ पूरी करते हैं. 

कई राज्यों से आते हैं श्रद्धालु
सोनभद्र से सटे बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से लोग यहां दर्शन पूजन हेतु आते हैं. इस स्थल का शिवद्वार नाम होने की भी अपनी पौराणिक मान्यता है. कहा जाता है कि जब भगवान भोलेनाथ का वैराग्य हुआ था तो उनका पहला पड़ाव या कहें पहला कदम यहीं पड़ा था. पुजारी द्वारा यह भी कहा गया कि जैसे हरिद्वार है उसी प्रकार यहां शिवद्वार है इतना ही नहीं शंकराचार्य जी द्वारा इस स्थल को गुप्तकाशी की उपाधि भी दी गई थी. तब से इस स्थल को गुप्तकाशी से भी जाना जाता है.

यह भी पढ़ें - यूपी की वो जगह जहां एक ही परिसर में मंदिर-मस्जिद, बना है हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक

यह भी पढ़ें - यूपी का वो मंदिर जहां भगवान राम ने मां सीता के साथ किया था अभिषेक, सावन के पहले सोमवार शिवभक्तों का उमड़ा हुजूम

 

 

Read More
{}{}