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यूपी का ऐसा गांव, जहां पांच हजार सालों से नहीं जली होली, भगवान शिव को बचाने का महा संकल्प

Holika Dahan 2025: गुरुवार को उत्तर प्रदेश समेत सभी हिंदी भाषी राज्यों में होलिका दहन किया गया, लेकिन पश्चिमी यूपी में एक गांव ऐसा भी है जहां  पांच हजार साल से होलिका दहन नहीं हुआ है कहते हैं ऐसा प्रण ग्रामीणों ने भोलेनाथ को बचाने के लिए लिया है.  

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यूपी का ऐसा गांव, जहां पांच हजार सालों से नहीं जली होली, भगवान शिव को बचाने का महा संकल्प
Pradeep Kumar Raghav |Updated: Mar 13, 2025, 10:20 PM IST
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Holi 2025: देशभर में जहां होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के बरसी गांव में यह परंपरा सदियों से नहीं निभाई जा रही. इस गांव के लोग मानते हैं कि गांव के बीचों-बीच स्थित प्राचीन शिव मंदिर में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं और उनकी उपस्थिति के कारण यहां होलिका दहन नहीं किया जाता. तो क्या भोलेनाथ को होलिका दहन से कोई परेशानी हो जाती है. आइये बताते हैं ग्रामीणों में क्या है मान्यता?

5,000 साल पुरानी परंपरा आज भी कायम
बरसी गांव, जो सहारनपुर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर नानोता क्षेत्र में स्थित है, यहां के लोग 5,000 साल से चली आ रही परंपरा का पालन कर रहे हैं. गांव वालों की मान्यता है कि होलिका जलाने से भूमि गर्म हो जाएगी, जिससे भगवान शिव के पांव झुलस सकते हैं, यही कारण है कि गांव में आज तक कभी होलिका दहन नहीं हुआ. 

ग्रामीण बताते हैं कि उनके पूर्वजों ने इस परंपरा को निभाया है और वो भी इसे आगे बढ़ा रहे हैं. यह परंपरा सिर्फ एक मान्यता नहीं, बल्कि उनकी श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है. 

महाभारत काल से जुड़ा शिव मंदिर
गांव में स्थित पश्चिममुखी शिव मंदिर को लेकर मान्यता है कि इसे महाभारत काल में दुर्योधन ने रातों-रात बनवाया था. किंवदंतियों के अनुसार, जब अगली सुबह भीम ने इस मंदिर को देखा, तो अपनी गदा से इसके मुख्य द्वार को पश्चिम दिशा में मोड़ दिया.  कहा जाता है कि यह देश का इकलौता पश्चिममुखी शिव मंदिर है. 

मंदिर के पुजारी बताते हैं, कि यह मंदिर बहुत ही पवित्र स्थान माना जाता है. महाशिवरात्रि के दौरान हजारों श्रद्धालु यहां अभिषेक के लिए आते हैं, और नवविवाहित जोड़े भी भगवान शिव का आशीर्वाद लेने यहां पहुंचते हैं.  

होलिका दहन के लिए जाते हैं दूसरे गांव
बरसी गांव में भले ही होलिका दहन न हो, लेकिन यहां के लोग इस त्योहार की उमंग को कम नहीं होने देते. एक और ग्रामीण ने बताया,  "गांव में होलिका नहीं जलती, लेकिन लोग पास के गांवों में जाकर दहन में शामिल होते हैं. हालांकि, रंगों का त्योहार हम अपने गांव में पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाते हैं."

भगवान कृष्ण ने की थी इस गांव की प्रशंसा
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, महाभारत के युद्ध के दौरान भगवान कृष्ण जब कुरुक्षेत्र जा रहे थे, तो इस गांव से गुजरे थे. इसकी सुंदरता देखकर उन्होंने इसकी तुलना पवित्र बृज भूमि से की थी, इसी कारण, यह गांव हमेशा से एक आध्यात्मिक और धार्मिक स्थान के रूप में जाना जाता है.

परंपरा जो पीढ़ियों तक बनी रहेगी
बरसी गांव के लोगों का मानना है कि भगवान शिव की कृपा से यह परंपरा हमेशा बनी रहेगी. गांववाले इसे श्रद्धा और भक्ति से जुड़ी मान्यता मानते हैं और आने वाली पीढ़ियों तक इसे निभाने की बात कहते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह अपनी तरह का अनोखा गांव है, जहां लोग होली तो मनाते है लेकिन होलिका दहन नहीं करते. 

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