India-Pakistan 1971 War: 1971 भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और बांग्लादेश के रूप में एक नया देश बना. 16 दिसंबर को ही पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया था. क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान ने जब आत्मसमर्पण किया तो भारत में वह झंडा कहां पर रखा हुआ है.
कहां रखा है पाकिस्तानी झंडा?
भारत की पाकिस्तान पर जीत का सबसे बड़ा सबूत आज भी उत्तराखंड के देहरादून में मौजूद है. ये सबूत साल 1971 की जंग में भारतीय सेना के पराक्रम की कहानी को बताता है. उस आत्मसमर्पण की निशानी पाकिस्तान का झंडा आज भी देश को सैन्य अफसर देने वाली भारतीय सैन्य अकादमी (IMA Dehradun) देहरादून में मौजूद है. यहां प्रशिक्षण लेने वाले सैन्य अफसरों को पाकिस्तानी झंडा भारतीय सैनिकों की वीरता से गौरवान्वित कर देता है. इसमें पाकिस्तान की हार के सबसे बड़े सबूत इस झंडे के बारे में भी बताया जाता है. खास बात यह है कि इसके जरिए उस इतिहास को जानने का मौका मिलता है जो हर देशवासी के लिए गौरवमई है और प्रशिक्षु सैन्य अफसरों में जोश भरने वाला है. यह ध्वज भले ही पाकिस्तान का है लेकिन इसे देखकर हर हिंदुस्तानी में एक नया जोश भर जाता है. वहीं पाकिस्तान के लिए यह झंडा किसी बड़े नासूर से कम नहीं जो हर पल उस शर्मनाक हार को याद करने के लिए पाकिस्तान को मजबूर करता होगा.
1971 की जंग का नाता देहरादून से..
साल 1971 की जंग में ऐसी कई खास बातें थीं, जिनका सीधा नाता उत्तराखंड के देहरादून से रहा. पहला, 1971 में पाकिस्तान की हार का वह सबसे बड़ा सबूत पाकिस्तानी झंडा जो आज भी देहरादून में मौजूद है. दूसरा इस युद्ध की कमान संभालने वाले फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ, जिन्होंने देहरादून स्थित भारतीय सैन्य अकादमी से ही अपना सैन्य प्रशिक्षण लिया था.
पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर किया था अपना झंडा
इस दौरान इस पाकिस्तान के ध्वज को 31 पंजाब बटालियन को सौंपा गया था और जिसके बाद इसे भारतीय सैन्य अकादमी को दे दिया गया. तभी से पाकिस्तान का यह ध्वज आईएमए के म्यूजियम में रखा गया है.
बुरी तरह हारा था पाकिस्तान
भारत का पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान शायद ही कभी 1971 की जंग को भूल पाए. क्योंकि यह वही मौका था, जब भारत के वीर जवानों ने न केवल पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया, बल्कि इसी निर्णायक जंग की बदौलत पाकिस्तान के दो टुकड़े भी हो गए. एक नया देश बांग्लादेश बना. दुनिया में कम ही ऐसी लड़ाइयां लड़ी गई हैं जब 93,000 सैनिकों ने एक साथ आत्मसमर्पण कर अपनी हार को स्वीकार किया हो. भारत के लिए यह गर्व की बात है कि उसने दुनिया में शांति के संदेश को भी कायम रखा और देश की संप्रभुता की बात आने पर ऐसी जंग लड़ी, जिसका दुनिया ने लोहा माना था.