Kanshi Ram Jayanti: आज काशी राम जयंती है. इस मौके पर हम बात करेंगे बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की, जिन्होंने उत्तर भारत में पहली बार दलितों को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया. दलित समाज को एकजुट करके पूरी हिंदी पट्टी का राजनीतिक गठजोड़ बदलने वाले कांशीराम का 15 मार्च को जन्मदिन है. इस मौके पर कांशीराम से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों की चर्चा करेंगे. कांशीराम ने सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति शुरू की थी. 1958 में कांशीराम पुणे में डीआरडीओ में लैब असिस्टेंट के पद पर कार्यरत थे, लेकिन नौकरी के दौरान एक ऐसी घटना हुई कि वो दलित राजनीति की ओर मुड़ गए.
मायावती में दिखी दलित नेता
कांशीराम की जीवनी लिखने वाले प्रोफेसर बद्रीनारायण लिखते हैं, उनके ऑफिस में फुले के नाम पर कोई छुट्टी कैंसिल कर दी गई थी. इसका उन्होंने विरोध किया. तमाम कोशिशों के बावजूद दलित कर्मचारी एकजुट हुए तो वो छुट्टी कर दी गई. इस घटना के बाद उन्हें समझ आ गया, जब तक दलित कर्मचारी इकट्ठा नहीं होंगे. तब तक हमारी बात नहीं सुनी जाएगी. बात 1977 की है, जब मायावती 21 साल की थीं. वह दिल्ली के एक सरकारी प्राइमरी स्कूल में पढ़ाती थीं. कांशीराम ने दिल्ली के एक कार्यक्रम में मायावती को जोरदार भाषण देते सुना. मायावती के भाषण को सुनकर कांशीराम प्रभावित हुए और उनके पिता से मायावती को राजनीति में भेजने की गुजारिश की, लेकिन जब पिता ने बात को टाल दिया तो मायावती ने अपना घर छोड़ दिया और वो पार्टी ऑफिस में रहने लगीं.
मायावती को बनाया उत्तराधिकारी
24 साल पहले 2001 में कांशीराम ने एक रैली के दौरान मायावती को उत्तराधिकारी घोषित किया था. कांशीराम का उत्तराधिकारी बनने के बाद पार्टी में न केवल उन्होंने ताकत बढ़ाई बल्कि अपने बराबर का दूसरा नेता नहीं खड़ा होने दिया. जिस पर उनकी नजर टेढ़ी हुई वह पार्टी से बाहर होता चला गया. पार्टी में अपना सिक्का जमाने के लिए मायावती ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. यही वजह है कि मायावती पार्टी से किसी भी सूरत में पकड़ ढीली नहीं करना चाहती हैं.
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कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर
3 जून 1995 को मायावती यूपी की सबसे युवा और दलित महिला सीएम बनीं. 2001 में कांशीराम ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. कांशीराम पर किताब लिखने वाले एसएस गौतम ने बताया है कि एक बार कांशीराम किसी ढाबे पर बैठे थे. वहां कुछ ऊंची जाति के लोग आपस में बैठकर बात कर रहे थे. उनकी बात का मजमून ये था कि उन्होंने सबक सिखाने के लिए दलितों की जमकर पिटाई की. इसे सुनकर कांशीराम बिफर पड़े और बात मारपीट तक आ पहुंची. इस बात कांशीराम को भलीभांति जानते थे कि राजनीति के जरिए ही दलितों की किस्मत बदलेगी. प्रोफेसर बद्रीनारायण ने भी एक किस्से का जिक्र किया है. वह कहते हैं कि एक बार अटल बिहारी वाजपेयी ने कांशीराम को राष्ट्रपति बनने का ऑफर दिया.
कांशीराम के कई चर्चित नारे आए याद
कांशीराम ने कहा कि राष्ट्रपति क्या, मैं तो पीएम बनना चाहता हूं. कांशीराम के कई चर्चित नारे आज भी याद किए जाते हैं. 'बहन जी' किताब के लेखक अजय बोस लिखते हैं कि एक बार कांशीराम मंच पर भाषण देने के लिए खड़े हुए. उन्होंने शुरुआत में ही कहा कि अगर सुनने वालों में ऊंची जाति के लोग हों तो वो अपने बचाव के लिए यहां से चले जाएं. वहीं, एक इंटरव्यू में कांशीराम ने बताया था कि आपकी बातों से लगता है कि सत्ता में आने के लिए आप किसी का भी इस्तेमाल कर लेंगे. नींबू की तरह निचोड़कर नरसिम्हा राव को फेंक देंगे? इस सवाल के जवाब कांशीराम ने कहा था कि नींबू की तरह निचोड़कर नहीं, वैसे ही छोड़ देंगे. निचोड़ने की क्या जरूरत है. कांशीराम का जो मुख्य फोकस था, वो था दलितों को सत्ता तक पहुंचाना.
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दलितों को एकजुट करने की कोशिश
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 14 अप्रैल 1973 को पढ़े लिखे और नौकरी पेशा दलितों को एक करने के लिए कांशीराम ने ऑल इंडिया बैकवर्ड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एम्प्लाइज फेडरेशन (बामसेफ) का गठन किया. उनका मानना था कि जब तक दलितों के मस्तिष्क में दूसरी पार्टियों का कब्जा होगा, तब तक उनके घर हरवाहा पैदा होगा. अगर दलितों के मस्तिष्क में उनकी पार्टी का कब्जा होगा तो उनके घर हाकिम पैदा होगा. नौकरी पेशा दलितों को एकजुट करने की कोशिश कांशीराम की काफी हद तक सफल रही.
यूपी से सभी दलों का सुपड़ा साफ
एक इंटरव्यू में कांशीराम ने बताया था कि अगर मुलायम सिंह से वे हाथ मिला लें तो यूपी से सभी दलों का सुपड़ा साफ हो जाएगा. उन्होंने मुलायम सिंह को सिर्फ इसीलिए चुना था, क्योंकि वही बहुजन समाज के मिशन का हिस्सा थे. इसी इंटरव्यू को पढ़ने के बाद मुलायम सिंह यादव दिल्ली में कांशीराम से मिलने उनके आवास पर गए थे. उस मुलाकात में कांशीराम ने नए समीकरण के लिए मुलायम सिंह को पहले अपनी पार्टी बनाने की सलाह दी. मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया. 1993 में सपा ने 256 सीटों पर और बसपा ने 164 सीटों पर विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा. फिर पहली बार यूपी में बहुजन समाज की सरकार बनी थी.