लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती...
जब मन टूटने लगे, हौसला डगमगाने लगे, तब शब्दों की शक्ति संजीवनी बन जाती है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ऐसे ही ओजस्वी शब्दों से देशवासियों में जोश भरने वाले राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की आज 37वीं पुण्यतिथि है. उनके गीतों ने न सिर्फ आजादी की लड़ाई को नई ऊर्जा दी, बल्कि पीढ़ियों तक प्रेरणा का स्रोत बने रहे.
बचपन से कविता तक का सफर
सोहनलाल द्विवेदी का जन्म 5 मार्च 1905 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के सिजौली गांव में हुआ था. प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर के राजकीय इंटर कॉलेज में हुई और उच्च शिक्षा के लिए वे बनारस हिंदू विश्वविद्यालय पहुंचे. यहीं पर वे महामना मदन मोहन मालवीय के संपर्क में आए और उनकी लेखनी राष्ट्रीयता के रंग में रंग गई. 1935 में प्रयागराज विश्वविद्यालय से परास्नातक करने के बाद वे अपने पिता के साथ बिंदकी कस्बे के घियाही बाजार में रहने लगे और अपनी रचनाओं के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम को नई धार देने लगे.
आजादी के गीतों से देश को जागरूक किया
सोहनलाल द्विवेदी का साहित्य गांधीवादी विचारधारा से गहरे रूप से प्रभावित था. उनकी लोकप्रिय रचनाएं ‘युगावतार गांधी’, ‘खादी गीत’, ‘गांव में किसान’,‘दांडी यात्रा’,‘त्रिपुरी कांग्रेस’,‘बढ़ो अभय जय जय जय’और ‘राष्ट्रीय निशान’ देशभर में गूंज उठीं. उनका खादी प्रेम भी जगजाहिर था, उन्होंने लिखा— "खादी के धागे-धागे में, अपनेपन का अभिमान भरा..."
रचनाओं में देशभक्ती की आग
उनका पहला काव्य संग्रह ‘भैरवी’ 1949 में प्रकाशित हुआ, जिसमें उनकी प्रसिद्ध रचना "चल पड़े जिधर दो डग मग में..." ने उन्हें जन-जन का कवि बना दिया. यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के संघर्ष और दृढ़ संकल्प को सलाम करती है.
व्यवस्था से समझौता नहीं किया
वर्ष 1964 में उन्हें बिंदकी नगर पालिका का चेयरमैन नियुक्त किया गया, लेकिन विकास कार्यों में बाधाओं को देखकर उन्होंने मात्र नौ महीने में ही इस्तीफा दे दिया. वे हमेशा जनता को जागरूक रहने की सलाह देते थे और कहते थे, “वोट देने से पहले नेताओं से अपने सवाल जरूर पूछो.”
अमर काव्य और योगदान
सोहनलाल द्विवेदी ने ‘पूजागीत’, ‘सेवाग्राम’, ‘कुणाल’, ‘चेतना’, ‘बांसुरी’, ‘युगाधार’, ‘वासंती’ और ‘संजीवनी’ जैसी अनगिनत रचनाएं दीं, जो आज भी साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करती हैं.
एक मार्च 1988 को वे इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन उनकी रचनाएं आज भी भारतीय जनमानस को प्रेरित करती हैं. राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की लेखनी हमेशा हमें सिखाती रहेगी कि शब्दों में सिर्फ भाव ही नहीं, बल्कि पूरे युग को बदलने की ताकत होती है.
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