UP Politics: जिन आकाश आनंद को मायावती ने अपना उत्तराधिकारी बनाया था. उनके सियासी कद को बसपा सुप्रीमो जमीन पर ले आई हैं. पहले आकाश को सभी पदों से हटाया गया और बाद में पार्टी से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया. साथ ही ऐलान कर दिया उनके रहते पार्टी का कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा. परिवार और पार्टी के पुराने नेताओं को पछाड़ कांशीराम का उत्तराधिकार हासिल करने वाली मायावती इस पद की पॉवर को बखूबी जानती हैं.
24 साल पहले हासिल की थी कुर्सी
24 साल पहले 2001 में कांशीराम ने एक रैली के दौरान मायावती को उत्तराधिकारी घोषित किया था. कांशीराम का उत्तराधिकारी बनने के बाद पार्टी में न केवल उन्होंने ताकत बढ़ाई बल्कि अपने बराबर का दूसरा नेता नहीं खड़ा होने दिया. जिस पर उनकी नजर टेढ़ी हुई वह पार्टी से बाहर होता चला गया. पार्टी में अपना सिक्का जमाने के लिए मायावती ने कोई कसर बाकी नहीं रखी.
यही वजह है कि मायावती पार्टी से किसी भी सूरत में पकड़ ढीली नहीं करना चाहती हैं.
कांशीराम के परिजनों ने लगाए थे गंभीर आरोप
कांशीराम के परिजनों ने मायावती को कांशीराम की मौत का जिम्मेदार ठहराया था. कांशीराम से उनकी मां को मिलने न देने के भी बसपा प्रमुख पर आरोप लगे. परिजनों के मुताबिक, "कांशीराम ने संघर्ष के बाद पार्टी खड़ी की. जिस समाज को जोड़ा, उसी मुखिया मायावती बन गईं. उन्होंने धोखे से प्रधान का पद लिया. जो पार्टी के लिए खून पसीना बहा रहे ते उनको बाहर का रास्ता दिखा दिया गया."
बाहर होते गए पुराने नेता
मायावती से पहले कांशीराम के बाद कई नेताओं की गिनती होती थी. इसमें राज बहादुर से लेकर, बरखूलाल वर्मा, आरके चौधरी, डॉक्टर मसूद अहमद जैसे कई बड़े नेता शामिल थे. लेकिन पार्टी की बागडोर मायावती के हाथ में आने के बाद पुराने नेता या तो खुद पार्टी से अलग हो गए जबकि खिलाफत करने वालों को मजबूरन पार्टी से बाहर होना पड़ा. नसीमुद्दीन सिद्दीकी, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबूराम कुशवाहा से लेकर अब्दुल मन्नान तक कई नेताओं को रिश्ते बिगड़ने पर पार्टी से बाहर होना पड़ा.