BJP Jiladhyaksh List 2025/Vishal Singh: उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 70 जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा कर दी है, लेकिन अभी भी 28 जिलों में जिलाध्यक्षों के नाम तय नहीं हो पाए हैं. आंतरिक खींचतान और गुटबाजी के चलते पार्टी के भीतर सहमति नहीं बन पा रही है, जिससे यह प्रक्रिया अटक गई है. सांसदों और स्थानीय विधायकों के आपसी मतभेदों के कारण जिलाध्यक्षों के नाम तय करने में देरी हो रही है.
गुटबाजी बनी बड़ी चुनौती
बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि जिलाध्यक्षों का चयन सर्वसम्मति से हो, ताकि पार्टी के भीतर किसी भी प्रकार की कलह न हो. लेकिन कई जिलों में सांसदों और विधायकों के बीच आपसी मतभेद इस प्रक्रिया में बाधा बने हुए हैं. इस कारण न केवल जिलाध्यक्षों की दूसरी सूची आने में देरी हो रही है, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक की घोषणा भी रुकी हुई है.
चंदौली और वाराणसी में नहीं बनी सहमति
बीजेपी के प्रदेश चुनाव अधिकारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के लोकसभा क्षेत्र चंदौली में अब तक जिलाध्यक्ष का नाम फाइनल नहीं हो सका है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी तीन-तीन दावेदारों के होने से मामला उलझा हुआ है. इसके अलावा अलीगढ़, हाथरस, एटा और पीलीभीत में भी जिलाध्यक्षों के चयन को लेकर विवाद जारी है.
फतेहपुर में तो स्थिति और भी गंभीर हो गई है, जहां जिलाध्यक्ष पर घूस लेने के आरोप लगे हैं. इससे उनकी दावेदारी खत्म कर दी गई है.
किन 28 जिलों में अब तक तय नहीं हुए जिलाध्यक्ष?
यूपी के 98 जिलों में से जिन 28 जिलों में अब तक जिलाध्यक्षों के नाम तय नहीं हो सके हैं, वे हैं:
पश्चिमी यूपी: शामली, अमरोहा, सहारनपुर, मेरठ, हापुड़, बागपत
बुंदेलखंड: कानपुर, झांसी महानगर, हमीरपुर, जालौन
पूर्वी यूपी: अयोध्या महानगर, अयोध्या जिला, जौनपुर, कौशांबी, मीरजापुर, सिद्धार्थनगर, देवरिया
अन्य जिलों: फतेहपुर, अंबेडकरनगर, बाराबंकी, लखीमपुर, फिरोजाबाद, अलीगढ़ जिला, अलीगढ़ महानगर
पीडीए पॉलिटिक्स की काट खोजने में जुटी बीजेपी
विपक्षी समाजवादी पार्टी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) वोट बैंक को मजबूत करने में जुटी है. बीजेपी इस रणनीति की काट जिलाध्यक्षों के जरिए निकालने की कोशिश कर रही है, लेकिन आंतरिक खींचतान ने विपक्ष को हमला करने का मौका दे दिया है.
अगली सूची कब आएगी?
बीजेपी की दूसरी सूची कब जारी होगी, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. पार्टी नेतृत्व सांसदों और विधायकों के बीच सहमति बनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अगर विवाद नहीं सुलझता है तो फैसला केंद्रीय नेतृत्व को लेना पड़ सकता है.
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