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Electoral Bond Scheme: क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, क्यों चुनावी चंदे के इस कानून पर छिड़ा विवाद

Electoral Bond Scheme 2024: इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम आखिर क्या है. चुनावी चंदा देने की इस स्कीम को लेकर आखिर क्यों सरकार और विपक्ष एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में आमने-सामने नजर आए. इसकी पारदर्शिता को लेकर क्यों सवाल उठे.     

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Amrish Kumar Trivedi|Updated: Feb 15, 2024, 01:05 PM IST
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Electoral Bond Scheme: सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड यानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम से राजनीतिक दलों को चंदा देने को पूरी तरह असंवैधानिक करार दे दिया है. दरअसल, केंद्र सरकार की ओर से 2017-18 में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को कानूनी तौर पर अमलीजामा पहनाते हुए लागू किया गया था. चुनावी बॉन्ड स्कीम में राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले को लेकर पूरी गोपनीयता बरती गई थी. यानी किस कंपनी या व्यक्ति ने राजनीतिक दल को कितना चंदा दिया है, इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती थी. हालांकि बीजेपी जैसे बड़े सत्ताधारी दलों को ज्यादा चुनावी चंदा मिलने और चुनाव प्रक्रिया प्रभावित होने का हवाला देकर इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.

सरकार की क्या है दलील
सरकार लगातार कहती आ रही है कि चुनाव बॉन्ड स्कीम के लागू होने  से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चुनावी चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी. उसने इलेक्टोरल बॉन्ड को इलेक्शन फंडिंग का वैधानिक जरिया बताया. हालांकि दानदाता और दान लेने वाले की पहचान की गोपनीयता को लेकर सवाल उठते रहे.एसबीआई प्रति वर्ष जनवरी और अप्रैल, जुलाई के साथ अक्टूबर में 10 दिनों के लिए अपनी शाखाओं के जरिये चुनाव बॉन्ड की बिक्री करता है. कोई भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था बॉन्ड खरीदकर किसी भी पार्टी को दे सकता है. इसमें पूरी गोपनीयता बरती जाती है

एक करोड़ रुपये तक का चुनावी बॉन्ड
राजनीतिक दल सिर्फ हर साल अपनी आय का जो ब्योरा चुनाव आयोग को देते हैं, उसमें सिर्फ यही बताते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड से उन्हें कितनी आय हुई है. बॉन्ड खरीदने के 15 दिन में प्राप्तकर्ता राजनीतिक दल को इससे भुनाना होता है. ये इलेक्टोरल बॉन्ड अलग अलग मूल्यों में उपलब्ध हैं. इनका प्राइस 1000 रुपये, 10 हजार रुपये, 1 लाख रुपये या 10 लाख रुपये से लेकर एक करोड़ रुपये तक के हो सकते हैं.

क्या है चुनावी बॉन्ड स्कीम
चुनावी बॉन्ड भी गोल्ड बॉन्ड या बैंकों से जारी अन्य तरह के बॉन्ड यानी बंधन पत्र या वचन पत्र की तरह होता है. बॉन्ड के मूल्य के हिसाब से वो रकम देने वाला चुकाता है. जिसके नाम बॉन्ड होता है, वो उसे भुनाता है. 

SBI के पास जिम्मेदारी
ऐसे बॉन्ड इश्यू करने और उनका पूरा रिकॉर्ड रखने की जिम्मेदारी स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के पास ही है. कोई भी भारतीय व्यक्ति या कंपनी ऐसे बॉन्ड खरीद सकता है. ये बॉन्ड किसी भी व्यक्ति, संस्था या कॉरपोरेट कंपनी की ओर से बीजेपी, कांग्रेस या किसी भी राजनीतिक दल को दान देने का साधन है.

चुनावी बॉन्ड कब लॉन्च हुआ
चुनावी बॉन्ड से जुड़ा इलेक्टोरल बॉन्ड बिल 2017 में पेश किया गया था. 29 जनवरी 2018 को एनडीए सरकार ने चुनावी बॉन्ड स्कीम 2018 को अधिसूचित कर इसे वैधानिक रूप दिया था. 

कब-कब बिक्री के लिए मुहैया होता था चुनावी बॉन्ड ?
चुनावी बॉन्ड वित्तीय वर्ष की हर तिमाही 10 दिनों के लिए एसबीआई द्वारा बिकी के लिए जारी किए जाते हैं. चुनावी चंदे की यह रकम इनकम टैक्स फ्री मानी जाती है. चुनाव बॉन्ड के लिए जनवरी-अप्रैल, जुलाई- अक्टूबर महीने के प्रारंभिक 10 दिन निश्चित हैं. लोकसभा चुनाव 2024 के लिए 30 दिनों के लिए इलेक्शन बॉन्ड जारी करने की योजना थी.

चुनावी बॉन्ड पर सवाल क्यों
भारत में होने वाले चुनावों में काले धन का इस्तेमाल बड़ा मुद्दा रहा है. मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल होता रहा है.चुनावी बॉन्ड जारी करने के साथ सरकार ने तर्क दिया था इससे राजनीतिक दलों को होने वाली फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी.इससे चुनावी चंदे में पारदर्शिता आएगी. हालांकि सिर्फ कुछ दलों को बड़े पैमाने पर चंदा मिलने और इससे चुनावी प्रक्रिया में असंतुलन पैदा होने की दलील विरोधियों ने रखी. उन्होंने इसकी गोपनीयता पर सवालखड़े किए. 

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