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यूपी के इस जिले के मंदिर में रावण की प्राण प्रतिष्ठा, राम मंदिर उद्घाटन के बीच तैयारी तेज

Greater Noida : देशभर में राम मंदिर को लेकर उत्साह है. इस बीच रावण के गांव बिसरख से आस्था की एक अनूठी तस्वीर सामने आई है. यहां रावण की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है. गांव में रावण को बहुत ही आदर के साथ देखा जाता है.

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यूपी के इस जिले के मंदिर में रावण की प्राण प्रतिष्ठा, राम मंदिर उद्घाटन के बीच तैयारी तेज
Zee Media Bureau|Updated: Jan 18, 2024, 04:14 PM IST
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ग्रेटर नोएडा : गौतमबुद्ध नगर के बिसरख में दशहरे के दिन रावण की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी. जयपुर के मूर्तिकार दशानन की प्रतिमा बना रहे हैं. बताया जा रहा है कि मंदिर में रावण की एक प्रतिमा पहले से है. हालांकि उसे सिर्फ दशहरे के दिन दर्शन के लिए बाहर लाया जाता है. नई प्रतिमा की स्थापना के बाद श्रद्धालु प्रतिदिन रावण के दर्शन कर सकेंगे. यहां श्रद्धालु मंदिर में स्थापित अष्टभुजा शिवलिंग की पूजा अर्चना करते हैं.

मंदिर में 22 जनवरी को ही राम दरबार की स्थापना की जाएगी. मंदिर में पहले से राम दरबार है, लेकिन आम श्रद्धालु इसके दर्शन नहीं कर पाते. इसे सिर्फ कुंभ मेले के लिए बाहर निकाला जाता है. अब मंदिर में राम दरबार के पास ही रावण की प्रतिमा लगेगी. महंत रामदास ने बताया कि पीतल धातु से बनी यह प्रतिमा लगभग दो फीट की है. इसके दस मुख होंगे. आगामी दशहरे पर दशानन की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होगी. बिसरख गांव 90 के दशक में चर्चा में आया था. बताया जाता है कि तांत्रिक चंद्रस्वामी ने बिसरख गांव में शिव मंदिर को लेकर खुदाई कराई थी. खुदाई में पुरातत्व विभाग को 24 मुखी शंख मिला था. मध्यभारतकालीन अवशेष भी मिले थे.

रावण का बचपन गांव में बीता था 

बिसरख में रावण का नाम सम्मान से लिया जाता है. गांव के लोगों के लिए रावण बाबा हैं. दशहरे के दिन बिसरख में रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता. मान्यता है कि रावण का जन्म बिसरख में हुआ था. उनके पिता महर्षि वश्रिवा का आश्रम यहीं था. रावण का बचपन यहीं बीता. गांव में शिव मंदिर है, जो रावण मंदिर नाम से विख्यात है. महंत रामदास कहते हैं कि ''ऋषि वश्रिवा भगवान शिव के अनन्य भक्त थे. रावण ने भी यहां पर भगवान शिव की पूजा की थी. यह शिवलिंग अष्टभुजा है. ''

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महंत रामदास के मुताबिक मंदिर में स्थापित शिवलिंग का कोई छोर नहीं है. मंदिर की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर कई बार प्रयास हुए. शिवलिंग को निकालने के लिए खुदाई की गई, लेकिन इसका दूसरा छोर नहीं मिला. इससे इस मंदिर के प्रति श्रद्धा और बढ़ती चली गई.

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