Varanasi News: वाराणसी में शनिवार सुबह एक अनूठा दृश्य देखने को मिला, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान अभियान से जुड़े 16 वैज्ञानिक श्री काशी विश्वनाथ धाम पहुंचे. सावन के अंतिम सोमवार से पहले, 9 अगस्त की सुबह 9 बजे, वैज्ञानिक दल ने बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए और पारंपरिक वैदिक विधि-विधान के साथ रुद्राभिषेक किया.
भगवान शिव, जिन्हें सनातन परंपरा में चंद्रमौलेश्वर और सोमनाथ के रूप में भी जाना जाता है, को चंद्रमा का अधिपति माना जाता है. ऐसे में चंद्रयान के अहम सदस्य रहे वैज्ञानिकों का शिवलिंग पर जलाभिषेक और पूजा करना, विज्ञान और आध्यात्मिकता के गहरे जुड़ाव का प्रतीक बन गया. वैज्ञानिकों ने मंदिर प्रांगण में सनातन धर्म, भारतीय ज्ञान परंपरा और आधुनिक विज्ञान के सामंजस्य पर चर्चा भी की.
पूजा-अर्चना के बाद इसरो दल ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के मुख्य कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण मिश्र को चंद्रयान की एक विशेष प्रतिकृति भेंट की. इसमें ‘शिव शक्ति प्वाइंट’ का प्रतीकात्मक मॉडल शामिल था—वही स्थल जहां चंद्रयान-3 ने चंद्रमा की सतह पर ऐतिहासिक लैंडिंग की थी. यह प्रतिकृति मंदिर परिसर में प्रस्तावित संग्रहालय में संरक्षित की जाएगी, ताकि आने वाली पीढ़ियां इसे देख सकें और प्रेरणा ले सकें.
मुख्य कार्यपालक अधिकारी ने बताया कि वैज्ञानिकों ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि चंद्रमा पर ‘शिव शक्ति प्वाइंट’ किस स्थान पर स्थित है. उन्होंने कहा कि बाबा विश्वनाथ के दरबार में आकर उन्हें एक अद्भुत ऊर्जा और आत्मिक शांति का अनुभव हुआ.
यह दौरा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था, बल्कि इसने यह संदेश भी दिया कि भारतीय परंपरा में ज्ञान, शोध और आस्था एक-दूसरे के पूरक हैं. इसरो के इन योद्धाओं ने जहां अंतरिक्ष में भारत का झंडा बुलंद किया, वहीं काशी में आकर उन्होंने विनम्रता और श्रद्धा से अपनी जड़ों को नमन किया.
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