रिक्शे से सफर के लिए टिकट कटाने वाला यह शहर कहीं और नहीं बल्कि उत्तराखंड में स्थित है. जिसका नाम है नैनीताल.
यहां की खूबसूरत वादियां, झील और हरे भरे नजारे तो लोगों का मन मोहते ही हैं. साथ ही यह अनोखी परंपरा भी हर किसी को हैरान कर देती है.
नैनीताल शहर में टिकट के लिए सीधे पैसे नहीं देने होते बल्कि टिकट कटाना पड़ता है.यह परंपरा नैनीताल की ऐतिहसिक विरासत का हिस्सा मानी जाती है.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो नैनीताल में साल 1942 से हाथ वाले रिक्शे चलना शुरू हुए. समय के साथ पैडल रिक्शा और अब ई रिक्शा चलना भी शुरू हो गए.
रिक्शे बदले लेकिन जो चीज आज भी वही है, वो है टिकट सिस्टम. यात्री लंबी लाइन लगवाकर भी टिकट कटवाते हैं. बताया जाता है कि 1952 में रिक्शा टिकट सिस्टम की व्यवस्था शुरू हुई थी.
नैनीताल में मालरोड में मल्लीताल और तल्लीताल के बीच ही यात्रियों के लिए रिक्शा चलते हैं. इसके अलावा शहर में कहीं परमिशन नहीं है.
दोनों के बीच की दूरी करीब 1.2 किलोमीटर है. जहां टिकट लेकर लोग सवारी करते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इसका किराया अभी 15 रुपये है, जिसे 20 रुपये किए जाने की मांग की जा रही है.
यहां के मल्लीताल और तल्लीताल पर बने दो पुराने रिक्शा स्टैंड पर यात्री लंबी लाइन लगाकर रिक्शे का टिकट कटाते हैं. ये टिकट हाथ से बनाया जाता है. जिसमें रिक्शा नंबर और किराया लिखा होता है.
आज के डिजिटल युग में हर काम लोग ऑनलाइन ही निपटा लेते हैं, लेकिन नैनीताल में रिक्शे की टिकट की व्यवस्था आज भी हाथ से ही चल रही है.
नैनीताल में रिक्शे के लिए टिकट लेने का यह सिस्टम पर्यटकों को भी आकर्षित करता है. कई लोग टिकट को यादगार के तौर पर अपने साथ भी ले जाते हैं.
क्योंकि ऐसा अनुभव यहां के अलावा देश में कहीं और नहीं मिलता. इसके अलावा यह शहर की विरासत, अनुशासन और पर्यटन की संस्कृति को भी दर्शाती है.
लेख में दी गई ये जानकारी सामान्य स्रोतों से इकट्ठा की गई है. एआई के काल्पनिक चित्रण का जी यूपीयूके हूबहू समान होने का दावा या पुष्टि नहीं करता.