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संसद vs सुप्रीम कोर्ट: उपराष्ट्रपति धनखड़ फिर वही बात बोले, इधर निशिकांत दुबे की टिप्पणी पर बैठेगी अदालत

Parliament Judiciary: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणियां चर्चा में हैं. एक बार फिर धनखड़ ने कहा कि एक फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है... हमने इस दिन के लिए लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी. राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा गया है और अगर ऐसा नहीं होता है, तो यह (विधेयक) कानून बन जाएगा.

संसद vs सुप्रीम कोर्ट: उपराष्ट्रपति धनखड़ फिर वही बात बोले, इधर निशिकांत दुबे की टिप्पणी पर बैठेगी अदालत
Anurag Mishra|Updated: Apr 22, 2025, 01:49 PM IST
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उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर संसद को सुप्रीम बताया है. दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में धनखड़ ने कहा कि संसद यानी विधायिका सर्वोच्च है और चुने गए प्रतिनिधि यानी सांसद तय करेंगे... उनके ऊपर कोई अथॉरिटी नहीं हो सकती है. उच्चतम न्यायालय के एक आदेश पर अपनी टिप्पणी की आलोचना करने वालों को उन्होंने खूब सुनाया. धनखड़ ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारी द्वारा बोला गया प्रत्येक शब्द राष्ट्र के सर्वोच्च हित से प्रेरित होता है. उन्होंने मंगलवार को कहा कि संविधान में संसद से ऊपर किसी भी प्राधिकारी की कल्पना नहीं की गई है. उन्होंने जोर देकर कहा, ‘संसद सर्वोच्च है.’ 

वो फैसला जिस पर नाराज हैं धनखड़

राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित करने वाले हाल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उपराष्ट्रपति नाराज हैं. धनखड़ ने पिछले शुक्रवार को कहा था कि भारत ने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, शासकीय कार्य करेंगे और ‘सुपर संसद’ के रूप में कार्य करेंगे. इस महीने की शुरुआत में उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह तय किया था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए रोक कर रखे गए विधेयकों पर उन्हें संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा. बाद में धनखड़ के बयान पर विवाद हो गया. 

दुबे का मामला भी गरमाया

इधर, भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने भी कुछ ऐसा कहा कि मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. हां, दुबे के शीर्ष अदालत और चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की आलोचना करने के संबंध में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अगले सप्ताह सुनवाई करने पर सहमति जता दी है. मामले को तत्काल सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया गया था.

वकील ने पीठ को बताया कि दुबे ने कहा था कि चीफ जस्टिस देश में ‘गृह युद्ध’ के लिए जिम्मेदार हैं और भाजपा सांसद की टिप्पणी के वीडियो प्रसारित होने के बाद सोशल मीडिया पर शीर्ष अदालत के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है. वकील ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर मुद्दा है.’ न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, ‘आप क्या दायर करना चाहते हैं? क्या आप अवमानना ​​याचिका दायर करना चाहते हैं?’

शीर्ष अदालत में पहले ही याचिका दायर कर चुके वकील ने कहा कि सरकार दुबे के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रही है. वकील ने कहा कि उनके एक सहयोगी ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने की सहमति का अनुरोध किया था, लेकिन आज तक कोई कार्रवाई नहीं की गई. उन्होंने कहा, ‘मुद्दा यह है कि कम से कम आज सोशल मीडिया मंच को इस वीडियो को हटाने के निर्देश तो दिए जाएं.’

पीठ ने कहा कि मामले में सुनवाई अगले सप्ताह के लिए सूचीबद्ध की जाएगी. शीर्ष अदालत ने सोमवार को एक अन्य याचिकाकर्ता से कहा था कि दुबे की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर करने के लिए उन्हें अदालत की अनुमति की आवश्यकता नहीं है.

भाजपा सांसद ने कहा क्या था?

दुबे ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधते हुए कहा था कि अगर शीर्ष अदालत को कानून बनाना है तो संसद और राज्य विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए. उन्होंने चीफ जस्टिस खन्ना पर भी निशाना साधा और उन्हें देश में ‘गृह युद्धों’ के लिए जिम्मेदार ठहराया. भाजपा सांसद की टिप्पणी केंद्र द्वारा अदालत को दिए गए उस आश्वासन के बाद आई है कि वह वक्फ (संशोधन) अधिनियम के कुछ विवादास्पद प्रावधानों को सुनवाई के अगले दिन तक लागू नहीं करेगा. अदालत ने अधिनियम के इन प्रावधानों पर सवाल उठाए थे. बाद में, वक्फ (संशोधन) अधिनियम मामले में एक वादी का प्रतिनिधित्व करने वाले उच्चतम न्यायालय के वकील अनस तनवीर ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी को पत्र लिखकर दुबे के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने का अनुरोध किया.

उन्होंने आरोप लगाया कि दुबे ने शीर्ष अदालत की ‘गरिमा को कम करने के उद्देश्य से’ बेहद निंदनीय टिप्पणी की थी. भाजपा ने शनिवार को दुबे की उच्चतम न्यायालय की आलोचना संबंधी टिप्पणी से खुद को अलग कर लिया. पार्टी अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने टिप्पणियों को सांसद का निजी विचार बताया. उन्होंने लोकतंत्र के एक अविभाज्य अंग के रूप में न्यायपालिका के प्रति सत्तारूढ़ पार्टी की ओर से सम्मान भी प्रकट किया. नड्डा ने कहा कि उन्होंने पार्टी नेताओं को ऐसी टिप्पणियां न करने का निर्देश दिया है. (एजेंसी इनपुट के साथ)

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