Bhopal Gas Tragedy: 2-3 दिसंबर 1984 की उस भयावह रात को कौन भूल सकता है. भोपाल में ठंड चरम पर थी. आम दिनों की रात लोग चैन से अपने घरों में सो रहे थे. इस बात से अंजान कि आने वाले कुछ घंटा अपने साथ तबाही लाने वाला है. यूनियन कॉर्बाइड की फैक्ट्री में जहरीली गैस लीक होने लगी थी और धीरे धीरे करीब पांच किमी का इलाका चपेट में आ गया. गैस कांड में करीब 3787 लोगों की मौत हुई थी. हालांकि घायलों की संख्या कहीं इससे अधिक थी. गैस कांड के पीड़ितों के जख्म पर मुआवजे के तौर पर सरकारी मरहम लगाया गया. ये बात अलग है कि मुख्य गुनहगार वारेन एंडरसन को न्याय के चौखट तक नहीं लाया जा सका. करीब 39 साल बाद भोपाल की जिला अदालत में अंतिम जिरह हो रही है. यह बात अलग है कि मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन अब इस दुनिया में नहीं है.
कौन था वारेन एंडरसन
वारेन एंडरसन, अमेरिका का रहने वाला और भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री का मालिक था. 2-3 दिसंबर 1984 को मिथाइल आइसोसाइनाइड बनाने वाली फैक्ट्री में गैस रिसाव हुआ था. हादसे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 3787 लोगों ने जान गंवा दी थी. हालांकि गैर सरकारी आंकड़ा 15 हजार का है. उस हादसे के बाद लोगों में गुस्सा था. उसका असर यह हुआ कि यूनियन कार्बाइड के सीईओ वारेन एंडरसन के खिलाफ हनुमानगंज थाने में मुकदमा दर्ज हुआ. लोगों को लगा कि वो पकड़े जाएंगे. 3 दिसंबर के हादसे के चार दिन बाद यानी सात दिसंबर को वारेन एंडरसन अपने कुछ सहयोगियों के साथ भोपाल आया. उसे जिला प्रशासन के कुछ बड़े अधिकारियों ने रिसीव किया. सात दिसंबर को उसे फैक्ट्री के रेस्ट हाउस ले जाया गया और बताया गया कि वो हिरासत में है. लेकिन सात दिसंबर को दोपहर के बाद तस्वीर बदल गई.
मध्य प्रदेश में उस समय कांग्रेस की सरकार थी. अर्जुन सिंह सूबे के सीएम थे.वो सात दिसंबर को ही कहीं रैली को संबोधित कर रहे थे. एक फोन आया और उसके बाद एंडरसन से कहा गया कि वो हिरासत से आजाद है. उसी दिन यानी सात दिसंबर को ही एंडरसन को यह बताया गया कि उसे दिल्ली भेजने की व्यवस्था की गई है और वो अमेरिका वापस लौट सकता है. 25 हजार रुपए के बॉन्ड और कुछ आवश्यक दस्तावेजों पर दस्तखत के बाद वो भोपाल एयरपोर्ट पर पहुंचा. वहां से दिल्ली गया और अमेरिका के लिए उड़ चला. भोपाल के तत्कालीन एसपी उसे छोड़ने के लिए एयरपोर्ट के हैंगर तक गए.
1992 में भगोड़ा घोषित हुआ था एंडरसन
एंडरसन ने 25 हजार रुपए का जो बांड भरा था उसमें भारत वापस लौटने की बात लिखी गई थी. यह बात अलग है कि वो भारत कभी वापस आया ही नहीं. 9 फरवरी 1989 को सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया और तीन साल बाद एक फरवरी 1992 को उसे भगोड़ा घोषित किया गया. हालांकि 29 सितंबर 2014 को उसकी फ्लोरिडा के एक नर्सिंग हॉस्पिटल में मौत हो गई.एंडरसन की रिहाई और दिल्ली के लिए विशेष विमान के मुद्दे पर जांच के लिए जस्टिस एस. एल कोचर की अगुवाई में एक आयोग बना. आयोग के सामने भोपाल के तत्कालीन एसपी पेश भी हुए थे. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि एंडरसन की गिरफ्तारी के लिए आदेश तो लिखित में था. लेकिन रिहाई का आदेश उन्हें मौखिक तौर पर वायरलेस सेट पर मिला था.
आधा से अधिक भोपाल हुआ था प्रभावित
2-3 दिसंबर 1984 की रात करीब 1 बजे यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से गैस रिसाव शुरू हो चुका था. गैस लीक के वक्त टीआई चाहत राम सिंह गश्त कर रहे थे और उन्होंने ही पुलिस कंट्रोल रूम को जानकारी दी थी. लेकिन भोपाल के लोगों पर गैस ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था. करीब साढ़े आठ लाख की आबादी वाले भोपाल में आधे से अधिक निवासियों को खांसी, आंख और त्वचा में जलन और सांस संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ा. गैस के कारण आंखों की समस्याओं, सांस संबंधी परेशानी ते साथ मानसिक आघात पहुंचा था. लोग घरों से निकल भागना शुरू कर दिए. लेकिन सरकार की नींद नहीं टूटी. अस्पतालों में अफरातफरी का आलम था. ऐसा कहा जाता है कि अगर समय रहते इलाज और दूसरे इंतजाम हुए होते तो इतनी बड़ी संख्या में लोग काल के गाल में नहीं समाते. गैस लीक की सबसे अधिक प्रभाव कारखाने के पास के गांवों और झुग्गियों पर पड़ा था. 2006 के सरकारी हलफनामे के मुताबिक गैस कांड की वजह से पांच लाख से अधिक इंजरी हुई थी. जिसमें 3900 से अधिक इंजरी गंभीर थी और उसकी वजह से स्थाई तौर पर लोग दिव्यांग हो गए थे.
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