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Canada Election Results: आरएसएस पर बैन की मांग करने वाले सिख नेता जगमीत सिंह का चुनावों में क्‍या हुआ?

Jagmeet Singh: जब कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो थे तो उस वक्‍त उनकी गठबंधन सरकार में नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) शामिल थी. एनडीपी नेता जगमीत सिंह को ट्रूडो का करीबी माना जाता था. 

Canada Election Results: आरएसएस पर बैन की मांग करने वाले सिख नेता जगमीत सिंह का चुनावों में क्‍या हुआ?
Atul Chaturvedi|Updated: Apr 29, 2025, 12:50 PM IST
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जब कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रूडो थे तो उस वक्‍त उनकी गठबंधन सरकार में नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) शामिल थी. एनडीपी नेता जगमीत सिंह को ट्रूडो का करीबी माना जाता था. जगमीत सिंह खालिस्‍तान आंदोलन समर्थक नेता माने जाते हैं. जगमीत का जस्टिन ट्रूडो पर इतना प्रभाव था कि कई बार वो भारत के विरोध में उनके सुर में सुर मिलाते दिखते थे. जगमीत सिंह भारत विरोधी आवाज उठाते थे और यहां तक कि राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ यानी आरएसएस को बैन करने की मांग करते रहते थे. 

चुनाव से पहले जस्टिन ट्रूडो ने इस्‍तीफा दे दिया था और उनकी लिबरल पार्टी के नेता मार्क कारने के नेतृत्‍व में चुनाव लड़ा गया. कहा जा रहा था कि पिछली तीन बार से सत्‍ता में काबिज लिबरल पार्टी हार जाएगी लेकिन चुनावी नतीजे उलट रहे. पीएम मार्क कारने के नेतृत्‍व में लिबरल पार्टी लगातार चौथी बार सरकार बनाने जा रही है क्‍योंकि पार्टी को चुनावी जीत मिली है. लेकिन जगमीत सिंह की एनडीपी को करारी शिकस्‍त का सामना करना पड़ा है.

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एनडीपी की खराब हालत
पिछले चुनाव में एनडीपी को 24 सीटें मिली थीं लेकिन इस बार 12 सीटें जीतते हुए भी नहीं दिख रही है. राष्‍ट्रीय पार्टी का दर्जा पाने के लिए कम से कम 12 सीटें अनिवार्य रूप से होनी चाहिए. यानी इसका साफ मतलब है कि कनाडा में चुनावों के बाद एनडीपी का राष्‍ट्रीय पार्टी का रुतबा खत्‍म हो जाएगा. चुनाव से ऐन पहले एनडीपी ने सत्‍तारूढ़ लिबरल पार्टी से गठबंधन भी तोड़ लिया था. चुनाव में सभी 343 संसदीय सीटों पर प्रत्‍याशी उतारे लेकिन केवल आठ सीटों पर उनको कामयाबी मिली. जगमीत सिंह खुद अपनी सीट से हार गए हैं. लिहाजा उन्‍होंने पार्टी के कमजोर प्रदर्शन की जिम्‍मेदारी लेते हुए एनडीपी के नेता पद से इस्‍तीफा दे दिया है.

जगमीत सिंह की लगातार भारत की आलोचना के कारण कूटनीतिक गतिरोध भी अतीत में उत्‍पन्‍न हुआ. 2013 और 2018 में भारत ने उनको वीजा नहीं दिया. वो पश्चिमी देश के संभवतया पहले ऐसे लेजिस्‍लेटर रहे हैं जिनको राजनीतिक कारणों से भारत में आने से मना किया गया.

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