What is Age of Consent for Sex: यौन संबंध बनाने के लिए सहमति की उम्र 18 साल से कम नहीं हो सकती. ये बात केंद्र सकार ने सुप्रीम कोर्ट में कही है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 वर्ष रखने का उद्देश्य नाबालिगों को यौन शोषण से बचाना है. सरकार ने बताया कि ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिसमें अक्सर रिश्तेदारों द्वारा ही यौन शोषण किया जाता है. हालांकि, केंद्र सरकार ने यह भी माना कि मौजूदा समय में यूथ के बीच प्यार और शारीरिक संबंधों के मामलों में न्यायिक विवेकाधिकार का प्रयोग हर मामले में के आधार पर अलग-अलग किया जा सकता है.
सरकार ने यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र कम करने से क्यों किया इनकार?
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, 'यौन संबंध के लिए सहमति देने के लिए उम्र कानूनी रूप से 18 साल निर्धारित की गई है, जिसका कड़ाई से और समान रूप से पालन किया जाना चाहिए. इसमें किसी तरह का बदलाव बाल संरक्षण कानून में दशकों तक हुए सुधार को पीछे धकेलने के समान होगा. इसके साथ ही पोक्सो अधिनियम 2012 और बीएनएस जैसे कानूनों के निवारक स्वरूप को कमजोर करेगा.'
टाइम्स ऑफ इंडिया का रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र ने कहा कि संवैधानिक ढांचा स्पष्ट रूप से इस कानूनी धारणा का समर्थन करता है कि 18 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति यौन संबंध के लिए सहमति देने में असमर्थ है. केंद्र ने कहा, 'इस उम्र को कम करने या कानून में ढील देने से सहमति (यौन) से संबंध की आड़ में दुर्व्यवहार (बलात्कार) के रास्ते खुल सकते हैं.'
एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए विस्तृत रिपोर्ट में केंद्र ने विस्तार से बताया कि कैसे भारतीय दंड संहिता 1860 में सहमति की आयु 10 वर्ष से बढ़कर एज ऑफ कंसेंट एक्ट 1891 के तहत 12 वर्ष, 1925 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन और 1929 के शारदा अधिनियम (बाल विवाह निरोधक कानून) के तहत 14 वर्ष, 1940 में भारतीय दंड संहिता में संशोधन के माध्यम से 16 वर्ष और 1978 में बाल विवाह निरोधक अधिनियम में संशोधन के माध्यम से 18 वर्ष हो गई, जो आज तक लागू है.
सरकार क्यों बोली- यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 साल से कम नहीं हो सकती?
दरअसल, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के लिए कानूनी उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने की सिफारिश की है. अपनी लिखित अर्जी में इंदिरा जयसिंह ने उम्र घटाने की सिफारिश के पीछे कई तर्क दिए हैं. उन्होंने इसको लेकर संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला दिया है और कहा है कि यौन स्वायत्तता मानव गरिमा का हिस्सा है. उन्होंने अपनी अर्जी में पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत 16 से 18 उम्र के लड़के और लड़कियों से जुड़ी यौन गतिविधियों को अपराध मानने को चुनौती दी है. उन्होंने दलील दी है कि वर्तमान कानून किशोरों के बीच सहमति से बनाए गए प्रेम संबंधों को भी अपराध मानता है और उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.
अलग-अलग मामलों में विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकती है न्यायपालिका
सरकार ने आगे कहा कि मामले-दर-मामला यानी अलग-अलग केसों के आधार पर न्यायपालिका विवेकाधिकार का प्रयोग कर सकती है, जिसमें 18 साल के करीब पहुंच चुके और किशोरावस्था में प्रेम संबंध बनाने वालों के लिए निकट-आयु अपवाद भी शामिल है. केंद्र ने कहा, ‘विशेष रूप से पोक्सो अधिनियम 2012 के अंतर्गत बाल यौन अपराधों को नियंत्रित करने वाला विधायी ढांचा न केवल उम्र के कारण बच्चे की भेद्यता पर आधारित है, बल्कि इस मान्यता पर भी आधारित है कि ऐसे अधिकांश अपराध बच्चे के क्लोज रहने वाले व्यक्तियों द्वारा किए जाते हैं, जिनमें परिवार के सदस्य, पड़ोसी, देखभाल करने वाले और शिक्षक शामिल हैं. ऐसे अपराधियों का नाबालिगों के अधिकार और एजेंसी पर गहरा प्रभाव होता है.’
बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के चौंकाने वाले आंकड़े
इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी), सेव द चिल्ड्रन और एचएक्यू सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स जैसे गैर सरकारी संगठनों द्वारा एकत्रित आंकड़ों से पता चलता है कि बच्चों के खिलाफ 50% से अधिक यौन अपराध बच्चों के परिचित व्यक्तियों या नाबालिगों के भरोसेमंद व्यक्तियों द्वारा किए गए थे. सरकार ने कहा कि यूथ के बीच रोमांस की वजह से सहमति की उम्र 18 साल से कम करना कानूनी रूप से अनुचित होगा और इससे दुर्व्यवहार करने वालों को बचाव मिलेगा, जो नाबालिग की भावनात्मक निर्भरता या चुप्पी का फायदा उठाते हैं.
यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र कम करने से क्या होंगे नुकसान?
केंद्र सरकार ने आगे कहा, ‘जब अपराधी माता-पिता या परिवार का कोई करीबी सदस्य हो तो बच्चे की शिकायत दर्ज कराने या विरोध करने में मुसीबत और भी बढ़ जाती है. ऐसे मामलों में बचाव के तौर पर 'सहमति' पेश करना बच्चे को ही पीड़ित बनाता है और दोष उन पर मढ़ देता है. ऐसा करना बच्चों को शोषण से बचाने के पोक्सो अधिनियम के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है, चाहे वे 'इच्छा' से ऐसा करें या नहीं.’ सरकार ने कहा कि अदालत को सहमति की मौजूदा उम्र (18 वर्ष) से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इसे कई कानूनों में बच्चों की शारीरिक अखंडता की रक्षा करने और उन्हें दिए गए संवैधानिक और वैधानिक सुरक्षा उपायों को बनाए रखने के लिए निर्दिष्ट किया गया है.
Breaking News in Hindi और Latest News in Hindi सबसे पहले मिलेगी आपको सिर्फ Zee News Hindi पर. Hindi News और India News in Hindi के लिए जुड़े रहें हमारे साथ.