तीन बार के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल को चुनाव में हराने वाले प्रवेश वर्मा सीएम की रेस से बाहर हो गए हैं. विधानसभा चुनावों में शानदार जीत के बाद से ही प्रवेश वर्मा मुख्यमंत्री की रेस में सबसे आगे चल रहे थे, लेकिन भाजपा ने हमेशा की तरह इस बार भी एक ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाया जिसकी चर्चा कम थी. हालांकि ये सवाल जरूर उठता है कि आखिर प्रवेश वर्मा कहां चूक गए?
दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे वर्मा ने जब से केजरीवाल को नई दिल्ली सीट से 4568 वोटों से हराकर उनके वर्चस्व को खत्म किया, तभी से उन्हें इस पद के लिए सबसे बड़े दावेदारों में से एक माना जा रहा था. सूत्रों के मुताबिक रेखा गुप्ता के नाम के ऐलान के बाद केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने पार्टी के सीनियर नेताओं विजेंद्र गुप्ता, सतीश उपाध्याय और प्रवेश वर्मा के साथ अलग से बैठक भी की.
हालांकि कुछ रिपोर्ट्स में अब यह भी कहा जा रहा है कि प्रवेश वर्मा को नई सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है या उन्हें कैबिनेट में जगह मिल सकती है. भाजपा के ज़रिए पहली बार विधायक बनी रेखा गुप्ता के नाम के ऐलान के साथ ही प्रवेश वर्मा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी ट्रेंड करने लगे. ट्विटर के नाम से मशहूर एक्स पर हैरानी भरी प्रतिक्रियाएं, टिप्पणियां और मीम्स की बाढ़ आ गई.
रेखा के नाम का ऐलान होते ही लोगों के ज़हन में प्रवेश वर्मा के पिछड़ने के पीछे की अहम वजहों में उनके विवादत चेहरा आया. कुछ राजनीतिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि प्रवेश वर्मा के पीछे रहने की वजह उनकी विवादत छवि रही है. उन्होंने कई बार ऐसा बयान दिए हैं जिनकी वजह से कई बार पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. प्रवेश वर्मा ने अक्तूबर 2022 में दिल्ली में VHP के एक प्रोग्राम में एक खास समुदाय का पूरी तरह बहिष्कार करने की बात कही थी.
2022 में प्रवेश वर्मा दिल्ली के महरौली से लोकसभा सांसद थे. उस समय प्रवेश वर्मा ने कहा था,'मैं कहता हूं कि अगर इनका दिमाग ठीक करना है, इनकी तबीयत ठीक करनी है तो एक ही इलाज है और वो है संपूर्ण बहिष्कार.' उनके इस बयान को लेकर पार्टी काफी नाराज थी. शायद इसी वजह से 2024 को लेकसभा में चुनाव में उनका मेहरौली से टिकट भी कट गया था.
प्रवेश वर्मा के पिता साहिब सिंह वर्मा 1996 से 1998 तक दिल्ली के सीएम रह चुके हैं. ऐसे में परिवारवाद के सख्त खिलाफ रहने वाली भाजपा ने विपक्ष की आलोचनाओं से बचने के लिए भी यह कदम उठाया होगा. इसके अलावा भारतीय जनता पार्टी को अक्सर देखा गया है कि वो मुख्यमंत्रियों के बेटों पर दांव कम ही चलती है. इसकी मिसाल हिमाचल में भी देखने को मिलती है. हिमाचल में प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर को मुख्यमंत्री का अहम दावेदार माना जाता था लेकिन भाजपा ने अनुराग को साइड करते हुए जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना.
भाजपा की एक और रणनीति रही है कि पार्टी राज्य का मुख्यमंत्री उस जाति का नहीं बनाती जिसका वर्चस्व प्रदेश की राजनीति में होता है. हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड भी इसकी एक मिसाल है. हरियाणा में जाट प्रभावी हैं लेकिन भाजपा ने पिछले 11 वर्षों से उस जाति का मुख्यमंत्री नहीं बनाया. इसके अलावा महाराष्ट्र की बात करें तो राज्य में मराठों का प्रभाव बहुत ज्यादा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने विदर्भ के ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया.
एक वजह यह भी बताई जा रही है कि पार्टी को महिला मुख्यमंत्री बनाना था, क्योंकि पिछले कुछ समय महिलाओं को जाति से अलग करते हुए नए वोट बैंक के तौर पर देखा जा रहा है. महिलाओं को साधने के साथ-साथ पार्टी ने रेखा के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री आतिशी की काट भी ढूंढी है. इसके रेखा अरविंद केजरीवाल की तरह ही वैश्य समाज और हरियाणा से संबंध रखती हैं. वैश्य को हमेशा भाजपा का कोर वोटर माना जाता है.
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