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अकेले रहना और आकेलापन, एक में शामिल मत कीजिए, अलग हैं दोनों, जानिए इनके बीच का फर्क

Mental Health: हम अक्सर अकेले रहने और अकेलेपन को एक समझ लेते हैं, लेकिन दोनों में काफी फर्क है. इसे समझने के लिए आपको कुछ हालातों से समझना होगा. 

अकेले रहना और आकेलापन, एक में शामिल मत कीजिए, अलग हैं दोनों, जानिए इनके बीच का फर्क
Shariqul Hoda|Updated: Apr 12, 2025, 01:04 PM IST
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Difference Between Loneliness and Staying Alone: आज की दुनिया में लोग अक्सर अकेलेपन और अकेले रहने जैसे टर्म्स का इस्तेमाल एक जैसी सिचुएशन में करते हैं. हालांकि, ये बहुत अलग इमोशनल और मेंटल एक्सपीरिएंस को बयां किया हैं. जबकि दोनों हालात में एकांत शामिल है, लेकिन उनसे पैदा होने वाले जज्बात और मेंटल वेलबीइंग पर उनका असर पूरी तरह से अलग है. आइए इस बारे में मशहूर क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट टीपी जवाद (TP Jawad) से डिटेल से जानने की कोशिश करते हैं.

अकेले रहने का मतलब
अकेले रहना (Staying Alone) एक फिजिकल स्टेट है जहां एक शख्स दूसरों की संगति में नहीं होता है. ये अक्सर पर्सनल टाइम, रिफ्लेक्शन या सेल्फ केयर के लिए किया गया एक पर्सनल च्वॉइस होता है. बहुत से लोग रिचार्ज होने, गहराई से सोचने या क्रिएटिव एक्टिविटीज में शामिल होने के लिए एकांत में रहना चुनते हैं. मिसाल के तौर पर, आर्टिस्ट, लेखक और थिंकर्स अक्सर फोकस करने और अपनी आंतरिक दुनिया का पता लगाने के लिए अकेले समय की तलाश करते हैं। ऐसे क्षणों में, अकेले रहना शांतिपूर्ण, सशक्त और विकास के लिए आवश्यक भी हो सकता है.

अकेलेपन का मतलब
दूसरी तरफ, अकेलापन (Loneliness) एक इमोशनल स्टेट है. ये दूसरों के साथ मीनिंगफुल कनेक्शन की कमी से आने वाली उदासी या खालीपन (Emptiness) की फीलिंग है. एक शख्स भीड़ भरे कमरे में भी अकेला महसूस कर सकता है अगर वो खुद को गलत समझा हुआ या भावनात्मक रूप से अलग महसूस करता है. अकेलापन आपके आसपास के लोगों की तादाद के बारे में नहीं है, बल्कि आपके रिश्तों की क्वालिटी और आप दूसरों से कितना जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, इसके बारे में है.

दोनो की बीच क्या है अंतर?
इन दोनों में सबसे बड़ा फर्क च्वॉइस और इमोशन में बसा है. जब कोई इंसान अकेले रहना चुनता है और इसका लुत्फ उठाता है, तो ये उनके वेल बीइंग में पॉजिटिव योगदान देता है. ये सेल्फ लव और इंट्रोस्पेक्शन का एक रूप बन जाता है. हालांकि, जब एकांत के रहने को मजबूर किया जाता है या कनेक्शन की क्रेविंग के साथ होता है जो पूरी नहीं होती है, तो ये अकेलेपन की तरफ ले जाता है.

ऐसे समझें
मिसाल के तौर पर, अपनी पसंद से अकेले रहने वाला इंसान संतुष्ट और खुश महसूस कर सकता है, उस वक्त का इस्तेमाल शौक, आराम या सीखने के लिए कर सकता है. एक दूसरा शख्स, भले ही वो परिवार या कलीग्स से घिरा हो, गहरा अकेलापन महसूस कर सकता है अगर उसे सुना, वैल्यू किया या समझा नहीं जाता है.

सेहत पर कैसा असर?
साइकोलॉजिकली, लंबे समय तक अकेलापन एंग्जाइटी, डिप्रेशन और फिजिकल हेल्थ में गिरावट का कारण बन सकता है. इसके उलट, जानबूझकर अकेले रहना फोकस, क्रिएटिविटी और इमोशनल बैलेंस में सुधार कर सकता है.

इस बात पर करें गौर
अकेले रहना एक हालात है, वहीं अकेलापन एक फीलिंग है. सभी अकेले रहने वाले अकेलापन फील नहीं करते हैं, और सभी दूसरों के साथ रहने वाले जुड़ा हुआ महसूस नहीं करते हैं. इस फर्क को पहचानने से हमें खुद को और दूसरों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है. जरूरत के मुताबिक एकांत को अपनाकर और असर रिश्तों को पोषित करके, हम ज्यादा बैलेंस्ड और इमोशनल तरीके से हेल्दी लाइफ जी सकते हैं.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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