Importance of Eye Health: हममें से जिनकी नजरें ठीक है वो बेफिक्र रहते हैं. यही सोचते हैं कि चश्मा नहीं लगा, कॉन्टैक्ट लेंस नहीं लगा, तो चिंता कैसी? लेकिन एक रिसर्च बताता है कि आंखों का रेगुलर चेकअप बेहद जरूरी है. अगर आप चश्मा नहीं पहनते हैं, तो भी आपको ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास जांच के लिए जाना जरूरी है.
डिमेंशिया और आंखों के बीच संबंध
ब्रिटिश जर्नल्स ऑफ ऑप्थोमोलॉजी में एक रिसर्च छपा, जो डिमेंशिया और आंखों से जुड़ा था. यह सालों के रिसर्च पर आधारित था. शोध में पता चला कि हमारी आंखें हमारे ब्रेन को हमारे आस-पास की चीजों के बारे में बहुत सारी जानकारी देती हैं. इससे ये साबित हुआ कि हमारी आंखों और ब्रेन के बीच का संबंध बहुत मजबूत होता है. रिसर्च में पाया गया कि आई हेल्थ भी डिमेंशिया और कॉग्निटिव गिरावट का एक शुरुआती इशारा हो सकता है.
यूके बायोबैंक की रिसर्च स्टीडी
स्टडी में 2006 से 2010 के बीच जांची गईं आंखों की दास्तान थी और फिर 2021 में इन्हीं लोगों को जांचा गया, तो रिजल्ट सामने आया. यूके बायोबैंक की इस रिसर्च स्टडी में 55-73 वर्ष की आयु के 12,364 अडल्ट शामिल हुए. पार्टिसिपेंट्स का 2006 और 2010 के बीच बेसलाइन पर मूल्यांकन किया गया और 2021 की शुरुआत तक उन पर नजर रखी गई. ये देखने के लिए कि क्या सिस्टमैटिक डिजीज से डिमेंशिया का खतरा बढ़ता है? यहां सिस्टमैटिक डिजीज से मतलब डायबिटीज, हार्ट की बीमारी और डिप्रेशन से था. पाया गया कि जो लोग इन समस्याओं से पीड़ित थे या फिर उम्र संबंधित एएमडी (मैक्यूलर डिजनरेशन, जिसमें धुंधला दिखने लगता है) से जूझ रहे थे, उनमें डिमेंशिया का जोखिम सबसे अधिक था.
इस बीमारियों में बढ़ सकता है आंखों का खराब होने का खतरा
जिन लोगों को कोई आंखों की बीमारी नहीं था, उनकी तुलना में जिन लोगों को आयु-संबंधित मैक्यूलर डिजनरेशन था, उनमें 26% जोखिम बढ़ा था, मोतियाबिंद वाले लोगों में 11% जोखिम बढ़ा था और मधुमेह से संबंधित नेत्र रोग वाले लोगों में 61% जोखिम बढ़ा था. इससे पता चलता है कि अगर कोई डायबिटीज से पीड़ित है, किसी को हार्ट संबंधी दिक्कत है या फिर डिप्रेशन का शिकार है, तो उसे नियमित तौर पर आंखों की जांच करानी चाहिए. इसके साथ ही गर्भवती को भी डॉक्टर इसकी सलाह देते हैं. इस दौरान हार्मोनल चेंजेस होते हैं. कइयों को धुंधलेपन की शिकायत होती है, तो कुछ ड्राई आइज से जूझ रही होती हैं. ऐसी स्थिति में भी डॉक्टर की सलाह जरूरी होती है.
स्क्रीन टाइम का असर
एक और चीज जो आज की लाइफस्टाइल से जुड़ गई है, वो है स्क्रीन टाइम. तो जिसका भी मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन पर वक्त ज्यादा बीतता है, उन्हें नियमित चेकअप कराना चाहिए. हाल ही में IIT रोहतक ने एक स्टडी के आधार पर कहा कि भारत में एवरेज लोग साढ़े तीन घंटे स्क्रीन देखते हुए गुजारते हैं. पुरुषों का एवरेज स्क्रीन टाइम 6 घंटे 45 मिनट है, जबकि महिलाओं का एवरेज स्क्रीन टाइम 7 घंटे 5 मिनट है. ये भी खतरे का ही सबब है. अगर ऐसा है, तो जल्द से जल्द ऑप्टोमेट्रिस्ट से अपॉइंटमेंट लेना जरूरी हो जाता है.
कैसे रखें आंखों का ख्याल
अब बात आती है कि आखिर आंखों का ख्याल हम कैसे रख सकते हैं. फंडा एक ही है, अच्छा और हेल्दी खाएं. विटामिन ए का इनटेक बढ़ाएं. पोषक तत्वों से भरपूर पौधों-फलों, सब्जियों, मेवों, बीजों, साबुत अनाज और फलियों को अपनी डाइट में शामिल करें. गाजर को ट्रेडिशनली आंखों के लिए सबसे अच्छी सब्जी माना जाता है, तो वहीं शकरकंद, अंडे, बादाम, मछली, पत्तेदार साग, पपीता और बीन्स भी आंखों का ख्याल रखने में माहिर हैं.
--आईएएनएस
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.