अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को खाना खिलाते समय मोबाइल फोन दिखा देते हैं. उनको लगता है कि उन्होंने अपने बच्चे को खाना खिला दिया है और उनका काम आसानी से हो गया है, लेकिन ये उनकी सबसे बड़ी गलती साबित हो सकती है. दरअसल जिस सोशल मीडिया या इंटरनेट को आप हल्के में ले रहे हैं, वही आपके बच्चे का दिमागी विकास रोक सकते हैं. सोशल मीडिया और इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करने से आपका बच्चे में आत्मविश्वास की कमी हो सकती है. आपका बच्चा वॉयलेंस हो सकता है. अगर आपने समय रहते ध्यान नहीं दिया तो आपका बच्चा वो कंटेंट भी देख सकता है, जिसे उसे नहीं देखना चाहिए.
मानसिक समस्याएं
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन की एक स्टडी के अनुसार सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताने से लोगों की नींद पूरी नहीं हो रही है. जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है. लंबे समय और लगातार स्किन पर समय बिताने से याददाश्त कमजोर हो रही है और लोग एंग्जाइटी वा डिप्रेशन जैसी समस्या का शिकार हो रहे हैं.
क्रिएटिविटी का कमजोर होना
सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने से याददाश्त कमजोर होती है. वहीं बच्चों को भाषा सीखने की क्षमता, दिमागी विकास पर काफी बुरा असर पड़ता है. सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों में लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करने में समस्या आती है. उनके लिए किसी भी क्रिएटिव काम को करना बेहद मुश्किल हो जाता है, क्योंकि किसी भी क्रिएटिव काम के लिए लंबे समय तक फोकस बेहद जरूरी है लेकिन सोशल मीडिया पर शॉर्ट वीडियो या 1 मिनट की वीडियो देखने से बच्चों का लंबे समय तक ध्यान केंद्रित नहीं होता है.
आत्मविश्वास में कमी
सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने से बच्चों और टीनएज बच्चों में आत्मविश्वास की कमी देखी जा सकती है. ऑनलाइन कम्पेरिजन, लाइक्स-कमेंट्स और साइबर बुलिंग जैसी समस्या की वजह से बच्चों का आत्मविश्वास कमजोर हो रहा है. इससे बच्चों में अकेलापन, चिड़चिड़ापन और एंग्जाइटी की समस्या बढ़ सकती है जो कि उनके मानसिक विकास के लिए खतरनाक हो सकता है.
वॉयलेंस होना
रिसर्च गेट मार्च 2024 में पब्लिश एक स्टडी के अनुसार वॉयलेंट कंटेंट देखने से बच्चों के स्वभाव में आक्रामकता बढ़ती है. लगातार वॉयलेंट यानी हिंसक कंटेंट देखने से बच्चों की सोचने और समझने की समझ प्रभावित होती है, ऐसे में बच्चा हर चीज का सॉल्यूशन केवल वॉयलेंस को ही समझता है जो कि उनके मानसिक विकास के लिए खतरनाक हो सकता है.
अश्लील कंटेंट
सोशल मीडिया और इंटरनेट पर छोटी उम्र में अश्लील कंटेंट देखने से उनके मेंटल ग्रोथ पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है. अश्लील कंटेंट देखने की वजह से वह अपने से विपरीत जेंडर को केवल एक सेक्सुअल ऑब्जेक्ट की तरह देखते हैं जो कि बेहद खतरनाक है.
बच्चों के दिमाग पर सीधा होता है असर
जन्म से लेकर बड़े होने तक दिमाग का विकास लगातार होता है. हर उम्र में दिमाग का विकास होता है. इस दौरान हमारे आस-पास जो कुछ भी होता है या दिखाई देता है उसका दिमाग पर सीधा असर पड़ता है. आइए जानते हैं 1 से 25 साल की उम्र तक दिमाग कैसे विकास करता है.
जन्म से 1 साल की उम्र तक दिमाग का विकास
जन्म के बाद सुनने, महसूस करने और प्रतिक्रिया देने की क्षमता विकसित होती है. 1 साल की उम्र तक बच्चे अपने माता-पिता की आवाज पहचानने लगते हैं. 1 साल की उम्र तक बच्चे बेसिक इमोशन जैसे हंसना रोना सीखते हैं.
1 से 3 साल की उम्र में दिमाग का विकास
1 से 3 साल की उम्र में बच्चों में समझने और बोलने लगते हैं. इस उम्र तक बच्चे खुद को अपने माता-पिता को पहचाने लग जाते हैं. 3 साल की उम्र तक बच्चे आस-पास की चीजों को एक्सप्लोर करने की कोशिश करने लगते हैं.
3 से 6 साल की उम्र में दिमाग का विकास
6 साल की उम्र तक बच्चों में भाषा की समझ होने लगती हैं. इस उम्र में बच्चों गलत और सही की समझ विकसित होने लगती है. दूसरे के साथ संबंध या समय बिताने की समझ विकसित होती है.
6 से 12 साल की उम्र में बच्चों में दिमाग का विकास
12 साल के बच्चों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का विकास होने लगता है. बच्चे नियम और जिम्मेदारियों को समझने की कोशिश करते हैं. 12 साल की उम्र में भाषा और तार्किक क्षमता में सुधार आता है. इस उम्र में बच्चों इमोशन को समझने लगते हैं.
12 से 18 साल की उम्र में दिमाग का विकास
12 से 18 साल किसी भी बच्चे के लिए बेहद जरूरी साल होते हैं. इस उम्र में बच्चे गलत रास्ते की तरफ भटक सकते हैं. क्योंकि इस उम्र में बच्चों आत्मनिर्भर बनने की इच्छा होती है, जिसके लिए वह रिस्क लेने से भी नहीं डरते हैं. लेकिन इस उम्र में फैसले लेने की क्षमता पूरी तरह से विकसित नहीं हुई होती है. इस उम्र में बच्चों पर काफी प्रियर प्रेशर और इमोशनल प्रॉब्लम होती है.
18 से 25 साल की उम्र में दिमागी विकास
इस उम्र में लॉन्ग टर्म प्लानिंग और फ्यूचर के फैसले लेने की क्षमता का विकास होता है. रिश्तों में गहराई को समझने की समझ आती है. करियर और लक्ष्य तय करने की क्रिया शुरू होती है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत या स्किन से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें