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फेसबुक-इंस्टाग्राम में हजारों फ्रेंड्स, फिर भी मन है खाली? डिजिटल युग में अकेलेपन से कैसे निपटें

सोशल मीडिया पर हजारों फॉलोअर्स और फ्रेंड्स होने के बावजूद अगर आप खुद को अकेला महसूस करते हैं, तो आप अकेले नहीं हैं. डिजिटल युग की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हम पहले से कहीं ज्यादा जुड़े हुए हैं, फिर भी पहले से कहीं ज्यादा अकेले हैं.

फेसबुक-इंस्टाग्राम में हजारों फ्रेंड्स, फिर भी मन है खाली? डिजिटल युग में अकेलेपन से कैसे निपटें
Shivendra Singh|Updated: May 22, 2025, 09:22 AM IST
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सोशल मीडिया पर हजारों फॉलोअर्स और फ्रेंड्स होने के बावजूद अगर आप खुद को अकेला महसूस करते हैं, तो आप अकेले नहीं हैं. डिजिटल युग की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि हम पहले से कहीं ज्यादा जुड़े हुए हैं, फिर भी पहले से कहीं ज्यादा अकेले हैं. हाल ही में एमपावर द्वारा कराए गए एक अध्ययन “अनवीलिंग द साइलेंट स्ट्रगल” के मुताबिक, भारत के कॉलेज छात्रों में अकेलापन, नींद की समस्या और तनाव तेजी से बढ़ रहा है. रिपोर्ट में पाया गया कि 41% छात्र सामाजिक रूप से अलग-थलग महसूस करते हैं, जबकि 47% को नींद में परेशानी और 38% को तनाव का सामना करना पड़ रहा है.

सीनियर क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट कार्तिकेय जरियाल बताते हैं कि यह अध्ययन बताता है कि डिजिटल कनेक्टिविटी के इस दौर में भी युवा मानसिक रूप से कितने असुरक्षित हैं. खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले, पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे पुरुष छात्रों को सबसे अधिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है, वो भी अपने ही शहर में पढ़ाई करने के बावजूद. यह दर्शाता है कि सिर्फ तकनीक से जुड़ाव मानसिक संतुलन को बहाल नहीं कर सकता, बल्कि सामाजिक और पर्यावरणीय सहयोग भी बेहद जरूरी है.

अकेलेपन से निपटने के उपाय क्या हैं?

एक्सपर्ट्स का मानना है कि डिजिटल दुनिया में बैलेंस बनाना जरूरी है:

* डिजिटल वेलनेस वर्कशॉप्स: सोशल मीडिया की लत और इसके असर को समझाने के लिए कॉलेजों में डिजिटल डिटॉक्स सेमिनार आयोजित किए जाएं.

* नो-स्क्रीन जोन: हॉस्टल, लाइब्रेरी और कैंपस के आम स्थानों में 'नो फोन' पॉलिसी लागू कर छात्रों को आमने-सामने बातचीत के लिए प्रेरित करें.

* वेलनेस सर्कल: छात्रों के लिए पीयर-ग्रुप थेरेपी और काउंसलिंग सुविधाएं, जहां वे खुलकर बात कर सकें.

* स्लीप अवेयरनेस प्रोग्राम: स्लीप डायरी, ब्लू लाइट ब्लॉकर जैसे टूल्स के साथ नींद की आदतों पर काम.

* डेटा बेस्ड इंटरवेंशन: समय-समय पर छात्रों की मानसिक स्थिति पर सर्वे, ताकि खतरे के संकेत पहले ही पकड़े जा सकें.

डिजिटल युग में अकेलापन एक साइलेंट महामारी बन चुका है. लेकिन अगर हम समय रहते तकनीक का संयमित उपयोग करें, और असली रिश्तों को प्रायोरिटी दें, तो इस मानसिक संकट से निपटना मुमकिन है.

Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.

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