Student Suicide: भारत में हर साल हजारों स्टूडेंट्स सुसाइड जैसा खौफनाक कदम उठा लेते हैं. पढ़ाई का प्रेशर, कॉम्पिटीशन, पेरेंट्स की उम्मीदें और फेल होने का डर, ये कुछ ऐसे कारण हैं जो छात्रों को दिमागी तौर से तोड़ देते हैं. ऐसे माहौल में टीचर का रोल सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रह जाती, बल्कि उन्हें बच्चों की मेंटल हेल्थ का भी सेंसेटिव तरीके से ख्याल रखना होता है.
टीचर कैसे रोकें स्टूडेंट सुसाइड?
1. इमोशनल सपोर्ट देना जरूरी
टीचर्स को छात्रों से दोस्ताना बिहेवियर अपनाना चाहिए ताकि स्टूडेंट अपने मन की बात कहने में हिचकिचाएं नहीं. एक ऐसा माहौल बनाना चाहिए जहां बच्चा खुद को जज किए बिना अपनी परेशानियां शेयर कर सके. कई बार सिर्फ बात करने से ही बच्चों को राहत मिलती है.
2. एकेडमिक प्रेशर को समझदारी से हैंडल करें
हर बच्चा टॉपर नहीं होता. टीचर्स को ये समझना होगा कि सिर्फ नंबर ही सफलता का पैमाना नहीं है. उन्हें छात्रों को स्कोर के बजाय स्किल्स, लर्निंग और ग्रोथ पर फोकस करने के लिए एनकरेज करना चाहिए.
3. बिहेवियर में बदलाव पर दें ध्यान
अगर कोई बच्चा अचानक चुप रहने लगे, क्लास में ध्यान न दे, बार-बार बीमार होने का बहाना बनाए, या गुस्सैल हो जाए तो शिक्षक को इसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. ये डिप्रेशन या मेंटल स्ट्रेस का इशारा हो सकता है. ऐसे में तुरंत काउंसलर या पेरेंट्स से बातचीत करनी चाहिए.
4. मेंटल हेल्थ एजुकेशन को बढ़ावा देना
स्कूल में मेंचल हेल्थ से जुड़े वर्कशॉप, सेमिनार और एक्टिविटीज होनी चाहिए. टीचर्स को भी इसको लेकर ट्रेन किया जाना चाहिए कि वो कैसे छात्रों के स्टेट ऑफ माइंड को समझें और उन्हें सही दिशा दें.
5. बच्चों में कॉन्फिडेंस बढ़ाएं
छोटी-छोटी कोशिशों और तारीफ से बच्चों में कॉन्फिडेंस आता है. टीचर्स को बच्चों की हर एफर्ट को सराहना चाहिए, चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो. इससे छात्र खुद को काबिल और जरूरी समझने लगते हैं.