महिला सशक्तिकरण की बात जब भी होती है, तब हम उनके आत्मनिर्भर बनने और समाज में बराबरी की हिस्सेदारी की ओर ध्यान देते हैं. लेकिन उन महिलाओं का क्या, जिनकी जिंदगी मानव तस्करी की काली दुनिया से गुजर चुकी है? उनके लिए सिर्फ बचाव ही काफी नहीं है, असली चुनौती तो तब शुरू होती है, जब वे वापस अपनी जिंदगी में लौटती हैं. मेंटल ट्रॉमा, सामाजिक तिरस्कार और अपनों से ठुकराए जाने की पीड़ा उनके मन पर गहरा असर छोड़ती है. ऐसे में मेंटल हेल्थ की देखभाल और इमोशनल पुनर्वास उनकी जिंदगी को सामान्य बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं.
अब तक 5,000 से अधिक मानव तस्करी से बचाई गई महिलाओं के साथ काम कर चुकी मनोवैज्ञानिक और मेंटल हेल्थ विशेषज्ञ उमा चटर्जी कहती हैं कि बचाव के बाद लंबे समय से शेल्टर होम में रहना उनके मेंटल हेल्थ के लिए अधिक नुकसानदायक साबित होता है. ज्यादातर पीड़ित महिलाएं पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD), चिंता (एंग्जायटी) और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याओं से जूझती हैं. इसके अलावा, जब ये महिलाएं अपने घर लौटती हैं, तो समाज की उपेक्षा और तिरस्कार से उनकी मानसिक स्थिति और बिगड़ सकती है. ऐसे में, समुदाय आधारित पुनर्वास सेवाएं, सामाजिक समावेशन और मेंटल हेल्थ सेवाओं तक पहुंच को मजबूत करना बेहद जरूरी है.
मेंटल हेल्थ के प्रति उपेक्षा का दर्द आरती (बदला हुआ नाम) की कहानी से साफ झलकता है. पश्चिम बंगाल से दिल्ली में एक कोठे तक पहुंचाई गई आर्टी को जब बचाया गया, तो उनके लिए राहत की सांस लेना भी आसान नहीं था. वे बताती हैं कि बचाव के बाद मेरा कोई ठिकाना नहीं था. पति और ससुराल वालों ने मुझे अपनाने से इनकार कर दिया. मैं अपने दो साल के बेटे से भी दूर हो गई. इस अकेलेपन ने मुझे कई बार तोड़ दिया. कई रातें मैंने अपने अतीत की डरावनी यादों के साथ बिताई और कई बार वापस दिल्ली लौट जाने की सोचने लगी."
आज आरती खुद अन्य पीड़ित महिलाओं की मदद कर रही हैं. वे ILFAT (इंटीग्रेटेड लीडर्स फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग) की सक्रिय सदस्य हैं और पश्चिम बंगाल में स्थानीय समूह 'बिजयिनी' के साथ जुड़कर मानव तस्करी, बाल विवाह और बाल श्रम के खिलाफ जागरूकता फैलाती हैं. मानव तस्करी के आंकड़े चिंताजनक हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, उस वर्ष मानव तस्करी के 2,250 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 की तुलना में 2.8% की वृद्धि दर्शाते हैं. इसमें 6,036 पीड़ितों में से 2,878 बच्चे और 3,158 वयस्क थे.