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World Heart Day: स‍िर्फ बुजुर्गों को ही नहीं, 30 से कम उम्र वालों को भी हो सकता है द‍िल का रोग, हर उम्र में ऐसे रखें ख्‍याल

World Heart Day: पुराने जमाने में द‍िल की बीमारी को बुजुर्गों की बीमारी का नाम द‍िया जाता था. लेक‍िन अब ऐसा नहीं है. अब ये लाइफस्‍टाइल की परेशानी है और इसकी चपेट में 30 साल से कम आयु के युवा भी आ रहे हैं. जान‍िये उम्र के हर पडाव पर आपको अपने द‍िल का ख्‍याल कैसे रखना है. 

World Heart Day: स‍िर्फ बुजुर्गों को ही नहीं, 30 से कम उम्र वालों को भी हो सकता है द‍िल का रोग, हर उम्र में ऐसे रखें ख्‍याल
Vandanaa Bharti|Updated: Sep 29, 2024, 05:02 AM IST
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World Heart Day: हाल ही में 'ये र‍िश्‍ता क्‍या कहलाता है' के फेम मोहसीन खान को हार्ट अटैक का शिकार होना पड़ा. मोहसीन अभी 32 साल के हैं. इस उम्र में आप हार्ट अटैक की उम्‍मीद तो नहीं कर सकते. लेक‍िन यही सच है. अब द‍िल की बीमार‍ियां उम्र की मोहताज नहीं हैं. पहले द‍िल की बीमार‍ियों को ढलती उम्र का रोग कहा जाता था. लेक‍िन अब इसने युवाओं को भी अपनी चपेट में लेना शुरू कर द‍िया है. हमने इस बारे में द‍िल के स्‍पेशल‍िस्‍ट MBBS, MD(मेड‍िस‍िन) और DM (कार्ड‍ियोलॉजी), डॉ. बलबीर स‍िंह  से बात की. डॉ. बलबीर स‍िंह  ने इस बारे में कुछ चौंका देने वाली बातें बताईं. उन्‍होंने कहा क‍ि द‍िल की बीमार‍ियां अब 20 से 30 साल के युवाओं को भी अपना श‍िकार बना रही हैं. 

उन्‍होंने कहा क‍ि द‍िल की सेहत का ख्‍याल रखने की प्रक्र‍िया एक द‍िन की नहीं है. ये जर्नी ताउम्र चलने वाली है. आप चाहे ज‍िस उम्र के भी हैं, आपको अपने दिल की सेहत का ख्‍याल रखन ही होगा. क्‍योंक‍ि ज‍िस जोख‍िम को आप कम उम्र में कंट्रोल कर सकते हैं, उसका इलाज बुढापे में मुश्‍क‍िल हो जाता है. इसल‍िए ये जरूरी है क‍ि आप उम्र के अनुसार अपने द‍िल की सेहत का ख्‍याल रखें. द‍िल की बीमारी का खतरा कम करने के ल‍िए आपको अपनी उम्र के अनुसार क्‍या करना चाह‍िए. 

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20 से  30 साल की उम्र में द‍िल का हाल 
20 और 30 की उम्र में रोकथाम ही सबसे महत्वपूर्ण है. यह ऐसी आदतें बनाने का समय है जो भविष्य में आपके दिल की रक्षा करेंगी. डॉ. बलबीर सिंह कहते हैं क‍ि दिल की बीमारी का इलाज करने की तुलना में इसे रोकना आसान है. युवा वयस्कों को शारीरिक गतिविधि, संतुलित पोषण और धूम्रपान से बचने पर ध्यान देना चाहिए. सप्ताह में कम से कम 150 मिनट तक तेज चलना या जॉगिंग जैसी नियमित शारीरिक गतिविधि आवश्यक है. दिल के लिए स्वस्थ आहार, जिसमें फल, सब्जियां, साबुत अनाज और कम ट्रांस वसा हो, जीवन में बाद में हृदय रोग के जोखिम को काफी हद तक कम कर सकता है. रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर की नियमित जांच की सलाह दी जाती है, खासकर अगर दिल की बीमारी का पारिवारिक इतिहास रहा हो. उन्होंने यह भी कहा क‍ि हम कभी भी 20 या 30 की उम्र में दिल के दौरे की उम्मीद नहीं करते हैं. लेकिन पिछले 5 सालों में मेरे अनुभव में ऐसे मरीज आए हैं जो इस आयु वर्ग में दिल के दौरे के साथ आए हैं. और उन्हें स्टेंटिंग और अन्य प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा है. और इस आयु वर्ग में सबसे आम जोखिम कारक धूम्रपान और खराब जीवनशैली है. इसलिए 20 या 30 की उम्र में भी, जो कि बहुत कम उम्र है, कोई भी व्यक्ति दिल के दौरे से सुरक्षित नहीं है. 

40 से 50 साल के ल‍िए 
40 और 50 की उम्र में, हृदय रोग का जोखिम बढ़ने लगता है, जिसका मुख्य कारण वजन बढ़ना, कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर और उच्च रक्तचाप जैसे उम्र से संबंधित कारक हैं. यह जीवनशैली विकल्पों का पुनर्मूल्यांकन करने का एक महत्वपूर्ण समय है. डॉ. बलबीर सिंह इस बात पर जोर देते हैं क‍ि जीवन का यह चरण अक्सर काम और परिवार के बीच संतुलन बनाने से तनाव को बढ़ाता है. हृदय स्वास्थ्य संकेतकों के लिए नियमित जांच के साथ-साथ तनाव प्रबंधन आवश्यक हो जाता है.  हृदय संबंधी व्यायाम के साथ-साथ मांसपेशियों को मजबूत करने वाली गतिविधियों को अपनी दिनचर्या में शामिल करने से वजन और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने में मदद मिलती है. नमक का सेवन कम करना और धूम्रपान छोड़ना हृदय रोग के जोखिम को कम करने के लिए अतिरिक्त महत्वपूर्ण कदम हैं. 

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60 के बाद द‍िल की सेहत
60 की उम्र और उससे आध‍िक वालों के लिए, हृदय स्वास्थ्य की निगरानी करना बहुत जरूरी है. उम्र बढ़ने के साथ-साथ एट्रियल फ‍िब्रिलेशन, हार्ट फेलियर और कोरोनरी धमनी रोग जैसी हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और रक्त शर्करा की नियमित जांच पहले से कहीं ज्‍यादा जरूरी है. डॉ. बलबीर सिंह सलाह देते हैं, "बड़ी उम्र में भी, चलना या तैरना जैसी शारीरिक गतिविधि हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है. रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल या मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए दवाएँ नियमित रूप से बताई गई मात्रा में लेनी चाहिए. असामान्य थकान या सांस फूलने जैसे लक्षणों के प्रति सचेत रहना भी जरूरी है, जो हृदय की समस्याओं का संकेत हो सकते हैं. 

 

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