करोड़ों भारतीय का सपना राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा की शक्ल में आकार ले रहा है. इसके साथ राजनीति भी उतनी ही तेजी से आकार ले रही है. राम मंदिर में जितनी तेजी से काम हो रहा है उससे भी कहीं तेजी से सियासत हो रही है. प्रधानमंत्री मोदी के अयोध्या दौरे के बाद इसमें और तेजी आई है. विपक्ष की तरफ से उद्धव शिवसेना के नेता संजय राउत कह रहे हैं कि अब जब तक 2024 के चुनाव नहीं हो जाते. बीजेपी अयोध्या से ही सरकार चलाएगी. वहीं पर अपना पीएमओ बना देगी. उन्होंने आरोप लगाया कि कभी पुलवामा तो कभी राम. बीजेपी इसी पर सियासी संग्राम लड़ने की तैयारी कर रही है. उन्होने दावा किया कि शिवसैनिक भी रामभक्ति में किसी से कम नहीं हैं. उन्होने भी राम मंदिर के लिए कुर्बानी दी है. कांग्रेस कह रही है कि बीजेपी ने राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का राजनीतिकरण कर दिया है और इस पर जमकर सियासत कर रही है. 22 जनवरी को अयोध्या में न्योते को लेकर भी सियासत प्रचंड मोड़ पर है. उद्धव ठाकरे कह रहे हैं कि वो किसी न्योते के मोहताज नहीं है और जब मन होगा जाएंगे. उनकी ये भाषा अखिलेश यादव के बयान से मेल खाती है. वहीं कांग्रेस नेता उदितराज कह रहे हैं. राम मंदिर पर बीजेपी ऐसे निमंत्रण बांट रही है जैसे घर की शादी का निमंत्रण बांटा जा रहा हो. क्या बीजेपी ने राम मंदिर की रजिस्ट्री करा ली है. आरजेड़ी सलाह दे रही है कि प्रधानमंत्री को कभी मौका मिले तो श्रीराम से अकेले में मिलें. श्रीराम भी पीएम से रोजगार और महंगाई पर सवाल पूछेंगे. वार हुए तो पलटवार भी हुआ. केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि राम मंदिर बीजेपी के लिए राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक मुद्दा है. गिरिराज सिंह कह रहे हैं कोई आए या न आए प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम तो होकर रहेगा. गिरिराज सिंह ने कहा कि वो लोग आज शोर कर रहे हैं जो कभी राम लला के दर्शन के लिए नहीं गए. कुल मिलाकर राम मंदिर का मुद्दा आस्था के साथ साथ सियासत के मैदान में भी चरम पर है. सवाल है कि आखिर राम किसके लिए राजनीतिक हथियार हैं.
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