Delivery Agent: एक शख्स ने एक दिन के लिए डिलीवरी एजेंट का काम किया और अपनी कहानी सोशल मीडिया पर शेयर की. इस अनुभव ने उनके काम, मूल्य और सम्मान के प्रति नजरिए को पूरी तरह बदल दिया. यह कहानी अब इंटरनेट पर वायरल हो रही है और लोग समानता के मुद्दे पर खुलकर बात कर रहे हैं. इस शख्स ने बताया कि छुआछूत सिर्फ जाति तक सीमित नहीं है. यह कहानी सलमान सलीम ने शेयर की, जो लिंक्डइन पर खुद को वाइब्स नेटवर्क का क्रिएटिव हेड बताते हैं.
डिलीवरी एजेंट का अनुभव
सलमान ने अपने पोस्ट में लिखा कि उन्होंने ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट के तौर पर काम करने का फैसला किया. उन्होंने ब्लिंकिट ऐप पर रजिस्टर किया और नजदीकी स्टोर से ऑर्डर लिया. ऑर्डर डिलीवर करने के लिए उन्हें ट्रैफिक, तेज धूप और धूल का सामना करना पड़ा. इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि डिलीवरी एजेंट का काम कितना मुश्किल है और इसे अभी भी समाज में पूरा सम्मान नहीं मिलता. सलमान ने बताया कि न सिर्फ पुलिसकर्मी, बल्कि एसी कारों में बैठे लोग भी डिलीवरी वर्कर्स को कमतर समझते हैं.
असमान व्यवहार का सामना
दिनभर डिलीवरी करते समय सलमान को कई जगह भेदभाव का सामना करना पड़ा. कई हाउसिंग सोसाइटी में उन्हें मुख्य लिफ्ट इस्तेमाल करने से रोक दिया गया. उन्हें या तो सीढ़ियों से जाना पड़ता, कभी-कभी चौथी मंजिल तक, या फिर सर्विस लिफ्ट इस्तेमाल करने को कहा जाता. यह व्यवहार खासतौर पर उन सोसाइटी में देखा गया, जहां तथाकथित अमीर और पढ़े-लिखे लोग रहते हैं. ये वही लोग हैं जो सोशल मीडिया पर भेदभाव के खिलाफ बड़े-बड़े दावे करते हैं. सलमान ने कहा कि हमें समझना होगा कि डिलीवरी वर्कर्स भी इंसान हैं. उनकी वर्दी या काम के आधार पर उनके चरित्र, दर्जे या मूल्य का अनुमान नहीं लगाना चाहिए.
सलमान ने अपने पोस्ट में लिखा कि अब समय आ गया है कि ज़ेप्टो और ब्लिंकिट जैसी डिलीवरी कंपनियां डिलीवरी वर्कर्स के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाएं. ये अभियान दयालुता और सम्मान को बढ़ावा दे सकते हैं, ताकि डिलीवरी वर्कर्स को सार्वजनिक जगहों पर उचित व्यवहार मिले. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को उसके पेशे की परवाह किए बिना सम्मान मिलना चाहिए.
लोगों की प्रतिक्रिया
सलमान का पोस्ट वायरल हो गया और इसने कई लोगों के दिल को छू लिया. एक यूजर ने लिखा, "बात यही है—जो लोग समानता की बात सबसे ज्यादा करते हैं, वही अक्सर भेदभाव करते हैं. क्योंकि कहना आसान है, लेकिन अमल करना मुश्किल." इसके बाद कई और लोग इस चर्चा में शामिल हुए.