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मशरूम के कचरे से हरी सब्जियां उगा रहे.. मिल रहा मोटा मुनाफा, युवा किसान ने कमाल कर दिया

Organic Farming: ऑर्गेनिक खेती से बेहतर परिणाम मिल रहे हैं और इससे आसपास के बाजारों में उनके उत्पादों की मांग भी बढ़ी है. उनका मानना है कि युवाओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेती में भी रुचि लेनी चाहिए.

मशरूम के कचरे से हरी सब्जियां उगा रहे.. मिल रहा मोटा मुनाफा, युवा किसान ने कमाल कर दिया
Gaurav Pandey|Updated: Nov 18, 2024, 11:36 PM IST
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Farmer Grows Green Vegetables: ऑर्गेनिक खेती कई बार फायदे का सौदा साबित हो जाती है किसानों को तगड़ा मुनाफा दे जाती है. इसी कड़ी में बिहार के गया जिले से एक मजेदार खबर सामने आई है जहां बीथो गांव के युवा किसान शक्ति कुमार ने अनोखे तरीके से खेती कर मिसाल पेश की है. उन्होंने मशरूम की खेती के बाद बचने वाले कचरे का इस्तेमाल करके जैविक सब्जियां उगाईं. इस तरीके ने न केवल उन्हें अच्छी आय दिलाई, बल्कि उनकी खेती को भी पर्यावरण के अनुकूल बनाया.

वेस्ट टू वेल्थ का अनूठा प्रयोग
असल में शक्ति कुमार ने मशरूम की खेती में इस्तेमाल किए गए कंपोस्ट बैग को बर्बाद न करते हुए, उसमें सब्जी का बीज बोने का प्रयोग किया. शुरू में इसे लेकर संदेह था, लेकिन प्रयोग सफल रहा. अब वे मशरूम कल्टीवेशन के बाद बचे कंपोस्ट बैग में करेले और खीरे जैसी सब्जियां उगाकर मुनाफा कमा रहे हैं. उन्होंने अपने छत पर खेती का मॉडल अपनाया, जिससे न केवल उन्हें लाभ हुआ, बल्कि घर का तापमान भी ठंडा रहता है.

ऑर्गेनिक खेती की दिशा में बदलाव
पहले शक्ति रासायनिक खाद का प्रयोग करते थे, लेकिन अब उन्होंने ऑर्गेनिक खेती को अपनाया है. वे मशरूम, करेले और खीरे के बाद बचे कंपोस्ट का उपयोग आलू और प्याज की खेती में कर रहे हैं. ऑर्गेनिक खेती से उन्हें बेहतर परिणाम मिल रहे हैं और इससे आसपास के बाजारों में उनके उत्पादों की मांग भी बढ़ी है. उनका मानना है कि युवाओं को पढ़ाई के साथ-साथ खेती में भी रुचि लेनी चाहिए, जिसे पार्ट-टाइम जॉब के रूप में किया जा सकता है.

महात्मा बुद्ध एग्री क्लिनिक का सहयोग
गया के महात्मा बुद्ध एग्री क्लिनिक के संस्थापक राजेश सिंह ने इस मॉडल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने सुझाव दिया कि मशरूम की खेती के बाद बचे कचरे का उपयोग छत पर सब्जियों की खेती में किया जाए. इस मॉडल से न केवल सब्जियां उगाई जा सकती हैं, बल्कि घरों में ठंडक भी बनी रहती है. इस तरीके से गर्मियों में छत पर उगाई गई सब्जियां अतिरिक्त ऑक्सीजन भी प्रदान करती हैं.

रोजगार और पर्यावरण संरक्षण
राजेश सिंह ने बताया कि उनका उद्देश्य सिर्फ उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि वे इस मॉडल के जरिए किसानों और महिलाओं को रोजगार भी मुहैया करा रहे हैं. पराली और भूसे को जलाने के बजाय उसे कंपोस्ट में बदलकर मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार किया जाता है. यह एक पूरा इको-सिस्टम बनाता है, जिसमें मशरूम उत्पादन, कंपोस्ट बनाना और सब्जी की खेती एक-दूसरे से जुड़े हैं.

स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर पहचान
इस पूरी प्रक्रिया से लगभग 500-700 महिलाएं और पुरुष जुड़े हुए हैं और सालाना 100 टन से अधिक मशरूम का उत्पादन हो रहा है. शुद्धता और गुणवत्ता पर ध्यान देकर, वे चाहते हैं कि उनके उत्पाद स्थानीय बाजारों के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचाने जाएं. इस मॉडल ने न केवल किसानों की आय में वृद्धि की है, बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाया है. agency input

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