Mughal Administrative System in Hindi: महमूद गजनवी, गौरी, तुगलक जैसे तुर्की, अफगानिस्तान और मध्य एशिया से आए इस्लामी हमलावरों ने यूं तो भारत पर बार-बार हमले कर खूब लूटमार मचाई लेकिन मुगल इनसे एक मामले में अलग थे. उन्होंने छोटी-छोटी रियासतों में बंटे भारत की कमजोर रक्षा पंक्ति का फायदा उठाकर बड़ा हमला बोला और फिर 300 सालों तक यहां कब्जा जमाकर बैठ गए. बाबर से शुरू हुआ मुगलों का शासन अंग्रेजों के आने के बाद ही खत्म हो पाया, जब उन्होंने आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार करके रंगून जेल में भेज दिया.
दिल्ली से कैसे चलती थी मुगलों की सरकार?
मुगलों के राज में भारत का शासन कैसा था. दिल्ली से मुगलों की सरकार कैसे चलती थी. मंत्रियों के क्या पदनाम थे और उनकी क्या जिम्मेदारियां थीं. उनका राज आज के शासन से कितना अलग था. आज हम आपको मुगलों की शासन व्यवस्था, सूबों और मंत्रियों के बारे में विस्तार से बताते हैं.
इतिहासकारों के मुताबिक, मुगलों का राज लगभग पूरे भारत पर फैला था. उनकी सत्ता का केंद्र दिल्ली था, जहां पर मुगल बादशाह बैठा करता था. मुगलों ने अपने साम्राज्य को सूबों (राज्यों) में बांट रखा था. उन सूबों में सरकार, परगना और गांव आते थे. अकबर के शासन की बात करें तो उस समय सूबों की संख्या 15 थी. इसके अलावा अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था भी शुरू की. इसमें मनसब एक पद की तरह होता था, जो नागरिक और सैन्य व्यवस्थाओं में इस्तेमाल होता था. औरंगजेब ने अपने शासनकाल में सूबों की संख्या को बढ़ाकर 20 कर दिया था.
दीवान का यह होता था काम
मुगल साम्राज में 4 मुख्य केंद्रीय विभाग होते थे, जिन्हें 4 अलग-अलग अधिकारी लीड करते थे. इन अफसरों को दीवान, मीर बख्शी, मीर समन और सद्र कहा जाता था. दीवान या वजीर इन अफसरों में सर्वोच्च होता था. इसे आप आज के प्रधानमंत्री के बराबर मान सकते हैं. वह साम्राज्य का राजस्व और वित्त संभालने का कामकाज देखता था. वह सीधे मुगल बादशाह के अधीन काम करता था. उसके अधीन अलग-अलग सरकारी विभागों में दूसरे अधिकारी काम करते थे. बादशाह के आदेशों के अनुसार, सभी विभागों की देखरेख और जिला फौजदारों की ड्यूटी तय करना दीवान का ही काम होता था.
सैनिकों की नियुक्ति करता था मीर बख्शी
मुगल साम्राज्य में सेना के प्रबंधन का जिम्मा मीर बख्शी नाम के अधिकारी के पास होता था. वह सेना में विभिन्न पदों पर नियुक्ति, उनके वेतन का भुगतान, मनसबदारों की सूची तैयार करने में अपनी अहम भूमिका निभाता था. जंग की स्थिति में बादशाह के फरमान पर मीर बख्शी ही सेना को तैयार करने और जवाब देने का आदेश देता था. मुगल शासन में खानखाना, भंडारण, आदेशों, वार्ता और आंतरिक संबंधों से जुड़े कामों की जिम्मेदारी खान-ए-समन पर होती थी.
धार्मिक दान का मुखिया होता था सद्र
मुगलिया व्यवस्था में मजहबी दान और सहयोग का जिम्मा सद्र के पास होता था. वह मुगल साम्राज्य में इस्लामी शिक्षा के प्रसार और साम्राज्य को मिलने वाली खैरात पर भी नजर रखता था. शाहजहां ने अपने शासनकाल में सद्र को मुख्य काजी यानी मुख्य न्यायाधीश की जिम्मेदारी भी दी थी. जबकि औरंगजेब ने इन दोनों कामों को अलग-अलग कर पृथक व्यक्तियों में बांट दिए थे.
सूबों की ऐसी होती थी शासन व्यवस्था
मुगल साम्राज्य की केंद्रीय व्यवस्था की तरह ही सूबों में भी दीवान का पद होता था. वह सूबे में वित्त से जुड़े सभी काम संभालता था. साथ ही मुगल बादशाह को सूबे की रिपोर्ट देता रहता था. सूबा स्तर पर दीवान के साथ बख्शी का पद भी होता है. वह सूबे में सैनिकों की नियुक्ति और वेतन भुगतान का काम संभालता था.
सूबों में संदेश भेजने और ग्रहण करने के लिए दारोगा-ए-डाक का पद बनाया गया था. उसके अधीन काफी सारे लोग काम करते थे. वह डाक चौकियों को संदेश भेजने और हासिल करने का काम करता था. उसके अलावा जिलों में फौजदार प्रशासनिक व्यवस्था भी थी. जबकि निचले स्तर पर कोतवाल नियुक्ति किए जाते थे.
गांव स्तर पर कैसा था मुगल काल?
मुगल साम्राज्य में सूबों के नीचे सरकार, परगना और ग्राम स्तर पर व्यवस्था थी. सरकार के स्तर पर मालगुजार और फौजदार 2 अहम पद होते थे. मालगुजार का काम लोगों से राजस्व वसूली करना होता था. जबकि फौजदार का काम लोगों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करना होता था.
सरकार के नीचे परगना सिस्टम होता था. इसमें इसमें शिक्कदार अमलगुजार का कार्यकारी अधिकारी होता था. इस व्यवस्था में सबसे नीचे की इकाई गांव होती थी. जिसमें गांव के मुखिया को मुक्कद्दम कहा जाता था. जबकि पटवारी का काम गांव के राजस्व का रिकॉर्ड रखने का होता था.