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साल 1931 में बनी थी ये इकलौती गांधीजी की पेंटिंग, 94 साल बाद कितनी हो गई कीमत? खरीदना है तो...

Mahatma Gandhi Rare Painting: अब यह ऐतिहासिक पेंटिंग पूरी तरह बहाल हो चुकी है और एक नए घर के लिए तैयार है. उम्मीद की जा रही है कि यह अमूल्य धरोहर अब भारत लौटेगी- उसी महापुरुष की भूमि पर जिसे यह सम्मान देती है.

 
साल 1931 में बनी थी ये इकलौती गांधीजी की पेंटिंग, 94 साल बाद कितनी हो गई कीमत? खरीदना है तो...
Alkesh Kushwaha|Updated: Jun 17, 2025, 10:15 AM IST
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Mahatma Gandhi Oil Painting: महात्मा गांधी की एक बेहद दुर्लभ ऑयल पेंटिंग जो साल 1931 में बनाई गई थी अब लंदन में नीलामी के लिए तैयार है. इस पेंटिंग को खास इसलिए माना जा रहा है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यह वही एकमात्र ऑयल पोट्रेट है, जिसके लिए गांधी जी ने खुद बैठकर पोज दिया था. यह नीलामी 7 जुलाई से 15 जुलाई के बीच बोनहैम्स (Bonhams) नीलामी घर में होगी.

इस चित्र को ब्रिटिश-अमेरिकन कलाकार क्लेयर लीटन ने बनाया था, जो आमतौर पर वुड एनग्रेविंग्स के लिए जानी जाती हैं. ऑयल पेंटिंग का माध्यम उन्होंने बहुत ही कम इस्तेमाल किया, जिससे यह चित्र और भी खास बन जाता है. बोनहैम्स की ट्रैवल और एक्सप्लोरेशन बिक्री प्रमुख रयानन डेमरी ने बताया कि यह पेंटिंग सिर्फ लीटन का दुर्लभ काम नहीं है, बल्कि यही एकमात्र ऑयल पोट्रेट है जिसके लिए गांधी जी ने स्वेच्छा से बैठकर चित्र बनवाया था.

यह ऐतिहासिक पेंटिंग कहां से मिली?

क्लेयर लीटन के परपोते कैस्पर लीटन ने इस पेंटिंग को संभवतः एक छिपा खजाना बताया. उन्हें यह पेंटिंग अपने पिता से विरासत में मिली थी, जो इसे क्लेयर की मृत्यु के बाद लेकर आए थे. कैस्पर का मानना है कि यह पेंटिंग भले ही उनकी पारिवारिक धरोहर हो, लेकिन इसका असली स्थान भारत होना चाहिए. उन्होंने कहा, “शायद इसे भारत लौट जाना चाहिए — वही इसका असली घर है.”

नीलामी में क्या होगी इसकी कीमत?

यह पेंटिंग पहली बार नीलामी में जा रही है और इसकी कीमत 50,000 से 70,000 पाउंड (लगभग 60 से 80 लाख रुपये) के बीच आंकी जा रही है. इसे पहली बार नवंबर 1931 में लंदन में प्रदर्शित किया गया था. इसके बाद यह केवल एक बार 1978 में बोस्टन पब्लिक लाइब्रेरी में एक प्रदर्शनी में दिखी थी.

गांधी जी और लीटन की मुलाकात

1931 में जब गांधी जी भारत के राजनीतिक भविष्य पर चर्चा करने ब्रिटिश सरकार से मिलने लंदन आए थे, उसी दौरान उनकी मुलाकात लीटन से हुई थी. लीटन लंदन की वामपंथी कलाकारों की मंडली से जुड़ी थीं. उनके साथी और पत्रकार हेनरी नोएल ब्रेल्सफोर्ड के जरिए गांधी जी से उनका परिचय हुआ. कैस्पर का मानना है कि दोनों के बीच सामाजिक न्याय को लेकर गहरा जुड़ाव और कलात्मक विचारों की समझ थी.

इस पेंटिंग की एक और चौंकाने वाली कहानी है. 1970 के दशक की शुरुआत में इसे एक हिंदू कट्टरपंथी ने चाकू से क्षतिग्रस्त कर दिया था. इस घटना का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड तो नहीं है, लेकिन पेंटिंग के पीछे लगे एक लेबल में बताया गया है कि इसे 1974 में अमेरिका में मरम्मत किया गया था. जब विशेषज्ञों ने अल्ट्रावॉयलेट लाइट से जांच की, तो गांधी जी के चेहरे पर गहरी कट का निशान साफ दिखा, जो अब ठीक किया जा चुका है.

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