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Success Story: कोमा में गई, डॉक्टर बोले- बचना नामुमकिन... होश में आईं तो नहीं थे दोनों हाथ-पैर! अब रेस में जीतकर चौंकाया

Success Story: शालिनी की कहानी सिर्फ जीत की नहीं, बल्कि जागरूकता और बदलाव की भी है. वो आज न सिर्फ दौड़ रही हैं बल्कि अपने जैसे हजारों लोगों को जीवन में फिर से उठ खड़े होने की प्रेरणा भी दे रही हैं.

 
Success Story: कोमा में गई, डॉक्टर बोले- बचना नामुमकिन... होश में आईं तो नहीं थे दोनों हाथ-पैर! अब रेस में जीतकर चौंकाया
Alkesh Kushwaha|Updated: Jun 10, 2025, 10:02 AM IST
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Success Story Of Shalini Saraswathi: शालिनी सरस्वती की कहानी एक ऐसी प्रेरणा है जो बताती है कि हिम्मत और जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल रास्ता पार किया जा सकता है. साल 2012 में जब शालिनी चार महीने की गर्भवती थीं और छुट्टियां मनाने कंबोडिया गई थीं, तभी उन्हें एक दुर्लभ बैक्टीरियल इन्फेक्शन हो गया. यह संक्रमण इतना गंभीर था कि वह कोमा में चली गईं और डॉक्टरों ने सिर्फ 3% बचने की उम्मीद जताई. जब वे होश में आईं तो उन्हें बताया गया कि उनके चारों अंग काटने पड़ेंगे.

यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका था. उन्होंने अपना अधिकांश जीवन एक सामान्य इंसान की तरह जिया था. अब उन्हें न सिर्फ चलना-फिरना दोबारा सीखना था, बल्कि खुद को एक नए रूप में स्वीकार भी करना था. शालिनी ने हिम्मत नहीं हारी और अपने भीतर की ताकत को पहचानकर आगे बढ़ने का फैसला लिया. आज शालिनी एशिया की सबसे तेज़ ब्लेड रनर (T62 कैटेगरी) हैं. साथ ही वो एक मोटिवेशनल स्पीकर और Rise Bionics कंपनी में स्ट्रेटजी एंड इम्प्लिमिटेशन हेड भी हैं. ये कंपनी दिव्यांग लोगों के लिए सहायक तकनीक बनाती है. दौड़ना उनके लिए सिर्फ खेल नहीं, बल्कि अपने जीवन पर दोबारा नियंत्रण पाने का तरीका बना.

शालिनी बताती हैं कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे खिलाड़ी बनेंगी. बचपन में वे खेलकूद से दूर ही रहती थीं. लेकिन जब उन्होंने TCS World 10K रेस में हिस्सा लिया और अखबार में उनके बारे में “Quadruple Amputee to Run” शीर्षक से खबर छपी तब उन्हें एहसास हुआ कि वो सिर्फ खुद के लिए नहीं बल्कि औरों के लिए भी उम्मीद की किरण बन गई हैं.

अपनी जिंदगी के इस संघर्ष को वो मजाकिया अंदाज में भी सुनाती हैं. उनका मानना है कि ह्यूमर ने उन्हें मुश्किल वक्त में भी संभाले रखा. आज जब कोई व्यक्ति उनके पास आकर गले लगाता है और कहता है कि अब मैं अपनी जिंदगी से लड़ सकता हूं तो शालिनी को लगता है कि उनकी कहानी बताना वाकई मायने रखता है. शालिनी भारत में विकलांग लोगों की स्थिति को लेकर भी मुखर हैं. वे कहती हैं कि समाज आज भी पूरी तरह समावेशी नहीं बना है. स्कूल, शिक्षा, इन्फ्रास्ट्रक्चर—हर जगह विकलांग और अलग पहचान वाले लोगों को नजरअंदाज किया जाता है. वे मानती हैं कि जब तक हम सबको साथ नहीं लाएंगे, तब तक सच्चा बदलाव नहीं होगा.

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