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आखिर किसने दिया था रुपये का सिंबल? पीछे की कहानी नहीं पता तो जान लें; UPSC में भी पूछ लेते हैं ऐसा सवाल

Indian Rupee Symbol Story: 2010 से पहले भारत के पास कोई आधिकारिक मुद्रा चिन्ह नहीं था. लोग सिर्फ Rs लिखते थे, जिसमें कोई अलग पहचान नहीं थी. फिर सरकार ने एक राष्ट्रीय डिजाइन प्रतियोगिता रखी, जिसमें देश के लोगों से नया करेंसी सिंबल डिजाइन करने को कहा गया.

 
आखिर किसने दिया था रुपये का सिंबल? पीछे की कहानी नहीं पता तो जान लें; UPSC में भी पूछ लेते हैं ऐसा सवाल
Alkesh Kushwaha|Updated: Jul 16, 2025, 10:55 AM IST
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Indian Rupee Symbol: हम रोज भारतीय रुपये का चिन्ह देखते हैं. कभी दुकानों के बोर्ड पर तो कभी नोटों या मोबाइल स्क्रीन पर. अब यह चिन्ह इतना आम हो गया है कि हम इसके पीछे की कहानी शायद ही कभी सोचते हैं. लेकिन इसके डिज़ाइन की कहानी बहुत दिलचस्प और परतदार है. 2010 से पहले भारत के पास कोई आधिकारिक मुद्रा चिन्ह नहीं था. लोग सिर्फ Rs लिखते थे, जिसमें कोई अलग पहचान नहीं थी. फिर सरकार ने एक राष्ट्रीय डिजाइन प्रतियोगिता रखी, जिसमें देश के लोगों से नया करेंसी सिंबल डिजाइन करने को कहा गया.

किसने बनाया ये रुपये का प्रतीक?

इस प्रतियोगिता को एक युवा आर्किटेक्ट उदय कुमार ने जीता. उन्होंने देवनागरी के "र" और रोमन "R" को मिलाकर दो क्षैतिज लाइनों के साथ एक सुंदर और आधुनिक डिज़ाइन बनाया. यह सिंबल इतना प्रभावी था कि देखते ही पहचान में आ जाए. इसके बाद उदय कुमार सुर्खियों में छा गए और उनका डिजाइन भारतीय रुपये की पहचान बन गया.

क्या ये डिजाइन पहले से किसी और ने सोचा था?

इस कहानी में एक और नाम जुड़ता है नोंदिता कोरेया महरोत्रा. वह भी एक आर्किटेक्ट थीं और उन्होंने 2005 में ही सवाल उठाया था कि भारत के पास अपना करेंसी सिंबल क्यों नहीं है? उन्होंने भी देवनागरी 'र' और दो क्षैतिज लाइनों का उपयोग करके एक डिज़ाइन बनाया और उसे रिजर्व बैंक और प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा.

नोंदिता का डिजाइन क्यों नहीं चुना गया?

नोंदिता को कभी जवाब नहीं मिला. लेकिन जब 2010 में प्रतियोगिता हुई, तो चुने गए शीर्ष डिज़ाइनों में से कई नोंदिता के 2005 वाले स्केच से मिलते-जुलते थे. उन्होंने फिर से प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और टॉप 5 में पहुंच गईं. लेकिन जीत उदय कुमार की हुई. वायरल वीडियो के अंत में कहा गया, “उदय का डिज़ाइन वाकई शानदार था, लेकिन हो सकता है कि नोंदिता की सोच ने इस विचार की शुरुआत की हो.”

उन्होंने एक ज़रूरी सवाल सबसे पहले पूछा और चर्चा की शुरुआत की, भले ही उन्हें आधिकारिक पहचान न मिली. यह कोई संयोग नहीं है कि दोनों डिजाइनर आर्किटेक्ट थे. आर्किटेक्चर केवल इमारतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सिस्टम, संस्कृति और पहचान को भी आकार देता है.

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