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आखिर नमाज की शुरुआत ‘अल्लाहु अकबर’ से ही क्यों होती है? जानिए इसके पीछे की धार्मिक वजह

Allahu Akbar: नमाज की शुरुआत ‘अल्लाहु अकबर’ से इसलिए होती है क्योंकि इसका मतलब है “अल्लाह सबसे महान है.” इसे कहकर इंसान दुनियावी बातों को भूलकर सिर्फ ईश्वर पर ध्यान लगाता है. यह नमाज की शुरुआत का संकेत है और अल्लाह के प्रति पूरी तरह समर्पण का भाव दर्शाता है.

आखिर नमाज की शुरुआत ‘अल्लाहु अकबर’ से ही क्यों होती है? जानिए इसके पीछे की धार्मिक वजह
Shivam Tiwari|Updated: Apr 30, 2025, 08:45 PM IST
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Why Namaaz start with Allahu Akbar: इस्लाम धर्म में नमाज (सलात) को बहुत ही पवित्र और अनिवार्य इबादत माना गया है. एक सच्चा मुसलमान दिन में पांच बार अल्लाह की इबादत करता है और हर नमाज की शुरुआत एक खास वाक्य से होती है, ‘अल्लाहु अकबर’. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि नमाज की शुरुआत इसी वाक्य से क्यों होती है?. आइए जानते हैं विस्तार से...

‘अल्लाहु अकबर’ का मतलब क्या है?

‘अल्लाहु अकबर’ एक अरबी वाक्य है, जिसका मतलब होता है, “अल्लाह सबसे महान है” या “ईश्वर सबसे बड़ा है.” यह वाक्य मुस्लिम धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है. लोग इसे नमाज के वक्त, किसी संकट या खुशी के समय, डर लगने पर, या ईश्वर का शुक्रिया अदा करने के लिए बोलते हैं.

पहलगाम आतंकी हमले के दौरान कुछ पर्यटकों ने बताया कि हमलावर लोगों से कलमा पढ़ने को कह रहे थे। ऐसे में कुछ पर्यटकों ने डर के माहौल में खुद को सुरक्षित दिखाने के लिए ‘अल्लाहु अकबर’ कहना शुरू कर दिया.

नमाज की शुरुआत इससे क्यों होती है?

नमाज की शुरुआत 'अल्लाहु अकबर' कहकर इसलिए की जाती है ताकि इंसान अपने सारे दुनियावी विचारों को पीछे छोड़ दे और पूरी तरह अल्लाह की ओर मन लगाकर इबादत करे. जब कोई नमाज शुरू करता है और कहता है “अल्लाहु अकबर,” तो वह मानता है कि अब अल्लाह उसके जीवन में सबसे ऊपर है. हालांकि, इसे कहने का मतलब यह भी है कि अब जो कुछ भी किया जाएगा, वह सिर्फ अल्लाह के लिए होगा. यह इबादत की शुरुआत का संकेत है, जो मुसलमान को अल्लाह के सामने झुकने और उससे जुड़ने की ओर ले जाता है.

इस्लामी परंपरा के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद ने खुद यह तरीका सिखाया कि नमाज कैसे पढ़ी जाए. उन्होंने बताया कि नमाज की शुरुआत ‘तकबीर’ यानी ‘अल्लाहु अकबर’ से की जाए. यह तरीका आज तक मुसलमानों द्वारा पूरी दुनिया में अपनाया जाता है.

आध्यात्मिक महत्व

‘अल्लाहु अकबर’ न सिर्फ नमाज की शुरुआत का संकेत है, बल्कि यह एक आत्मिक शुद्धिकरण भी है. इसे बोलते ही इंसान खुद को ईश्वर के सामने पूरी तरह समर्पित कर देता है. यह वाक्य याद दिलाता है कि चाहे दुनिया में कितनी ही ताकतें हों, सबसे बड़ी ताकत सिर्फ अल्लाह की है. हदीसों के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद ने नमाज को शुरू करने का तरीका बताया और उन्होंने खुद भी नमाज की शुरुआत “अल्लाहु अकबर” कहकर की. इसके बाद यह तरीका इस्लामी परंपरा का हिस्सा बन गया.

यह परंपरा कितनी पुरानी है?

इस्लाम धर्म की स्थापना 7वीं शताब्दी में हुई थी, इसके बाद से नमाज की ये परंपरा शुरू हुई. यानी "अल्लाहु अकबर" से नमाज की शुरुआत की परंपरा करीब 1400 साल पुरानी है.

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