Amarnath Yatra: कश्मीर में भीषण गर्मी ने वार्षिक अमरनाथ यात्रा को भी प्रभावित किया है. यात्रा के पहले 10 दिनों में भगवान शिव के प्रतीक, प्राकृतिक रूप से निर्मित बर्फ का शिवलिंग तेजी से विलोप हो रहा है. इसकी वजह कश्मीर में पड़ रही भीषण गर्मी को माना जा रहा है.
शनिवार को पवित्र गुफा से श्रीनगर वापस पहुंचे श्रद्धालुओं ने बताया कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक, प्राकृतिक रूप से निर्मित बर्फ का शिवलिंग लगभग पूरी तरह पिघल चुका है. 3 जुलाई को यात्रा शुरू हुए अभी केवल 10 दिन ही हुए हैं. रिपोर्टों से पता चलता है कि शिवलिंग, जो ऐतिहासिक रूप से 12 से 15 फीट ऊँचा था, अब लग बैग पूरा पिघल चुका है. बर्फ का केवल आधार, जिसे भगवान शिव के चरण माना जाता है, पवित्र गुफा में मौजूद है. यह वार्षिक अमरनाथ यात्रा के हाल के इतिहास में सबसे तेज़ी से पिघलने की घटनाओं में से एक है.
शिवलिंग के न होने के बावजूद, 12 जुलाई तक 1.70 लाख से ज़्यादा तीर्थयात्री अनंतनाग ज़िले में स्थित 3,880 मीटर ऊंची पवित्र गुफा के दर्शन कर चुके है. पवित्र तीर्थयात्रा में अभी 26 दिन बाकी हैं, लेकिन शिवलिंग के पिघलने से शिवभक्तों की आस्था पर कोई असर नहीं पड़ा है. भक्त इस बात से सहमत हैं कि शिवलिंग पिघल गया है, लेकिन उन्होंने पवित्र गुफा की आध्यात्मिक भक्ति को दर्शाते हुए अपनी तीर्थयात्रा जारी रखी. हर हर महादेव और बम-बम भोले का नारा लगाते हुए हज़ारों श्रद्धालु अभी भी पवित्र गुफा की ओर बढ़ रहे हैं और अपनी तीर्थयात्रा पूरी कर रहे हैं.
शिवलिंग की अवधि पिछले कुछ वर्षों में कम होती जा रही है, जो क्षेत्रीय जलवायु परिवर्तन को दर्शाती है. 2022 में यह 28 दिनों तक बना रहा, 2023 में यह 22 दिनों में पिघल गया, 2024 में यह 16 दिनों में पिघल गया, अब 2025 में यह यात्रा शुरू होने के पहले 10 दिनों में ही पिघल गया. कश्मीर के मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि अमरनाथ गुफा के पास के ग्लेशियर पिघल रहे हैं, और 1980 के दशक से जलवायु परिवर्तन के प्रति उनकी प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए कोई व्यवस्थित शोध नहीं हुआ है. गुफा के पास के 5 ग्लेशियरों सहित क्षेत्र के ग्लेशियर, द्रव्यमान और क्षेत्रफल में सिकुड़ रहे हैं. जिससे पानी की उपलब्धता, बर्फबारी की कमी और बढ़ते तापमान पर असर पड़ रहा है. और यह सब शिवलिंग के तेज़ी से पिघलने में प्रमुख योगदान करता है. इसके अलावा, जब तीर्थयात्रा शुरू होती है तो भारी मानवीय हस्तक्षेप भी तापमान बढ़ाता है और इससे बर्फ से बने शिवलिंग के तेज़ी से पिघलने का भी कारण बनता है.
इस साल कश्मीर में मौसम बिल्कुल अलग रहा. बर्फबारी में लगभग70% की कमी देखी गई. तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. श्रीनगर में 1953 के बाद सबसे ज़्यादा 37.4 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज हुआ. 2025 में भीषण गर्मी और तीर्थयात्रा मार्गों पर कम बर्फ़बारी के कारण धूल भर गई. मौसम विशेषज्ञ इसकी वजह जलवायु परिवर्तन बताते हैं. 10 साल से तापमान लगातार बढ़ रहा है. ग्लेशियर पिघले हैं. बीते कुछ सालों से अमरनाथ यात्रा के दौरान प्रशासन ने अप्रत्याशित मौसम के कारण शिवलिंग की अवधि का अनुमान लगाना बंद करके इसके बजाय मार्गों और शिविरों जैसी सुविधाओं को बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित किया है. शिवलिंग का समय से पहले पिघलना कश्मीर हिमालय में जलवायु संकट का एक बैरोमीटर माना जाता है.