trendingNow1950012
Hindi News >>राजनीति
Advertisement

कहानी बिहार की पहली और एकमात्र महिला CM की, जानिए कैसे बनी राबड़ी देवी मुख्यमंत्री?

Bihar Samachar: बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने 25 जुलाई 1997 को CM पद की शपथ ली थी. 

 बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी (फाइल फोटो)
बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी (फाइल फोटो)
Rajesh Kumar|Updated: Jul 25, 2021, 03:13 PM IST
Share

Patna: वेब सिरीज महारानी में रानी भारती के मुख्यमंत्री बनने का दृश्य जिस तरीके से फिल्माया गया है. वो आपको अति नाटकीय लगा होगा, लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी (Rabri Devi) के मुख्यमंत्री बनने की कहानी भी इससे अलग नहीं है. जब चारा घोटाले मामले में लालू प्रसाद (Lalu prasad Yadav) के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हो गई, तो तय हो गया कि देर सवेर उन्हें जेल जाना पड़ेगा, साथ ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ेगा. यहीं से पटकथा लिखी गई बिहार के पहले महिला मुख्यमंत्री की. जी हां तारीख थी 25 जुलाई 1997 जब राबड़ी देवी ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. तत्कालीन राज्यपाल ए आर किदवई (A. R. Kidwai) ने राबड़ी देवी को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई.

ये एक ऐसा फैसला था जो आसानी से हजम होने वाला नहीं था. ना तो पार्टी के पुराने नेता इसके लिए तैयार थे, ना ही विपक्ष को सियासी धुरंधर लालू के इस दांव का अंदेशा था. बताया ये भी जाता है कि खुद राबड़ी देवी इसके लिए तैयार नहीं थी. बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने से पहले राबड़ी देवी ने खुद को अपने घर तक ही समेट रखा था. बच्चों की देखभाल ही उनका काम था। कहते हैं मुख्यमंत्री आवास में रहते हुए भी राबड़ी देवी बिहार के ग्रामीण अंचल की आम महिलाओं का प्रतिनिधित्व करती थी. उस वक्त अखबारों में बड़ी-बड़ी पत्रिकाओं में इसे लेकर लेख भी लिखा गया लेकिन सियासत की अनिश्चितताओं ने राबड़ी देवी को एक घरेलु महिला से बिहार का मुखिया बना दिया.

आसानी से नहीं मिली थी लालू को CM की कुर्सी
1990 में जब जनता दल बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी तो मुख्यमंत्री के 3 दावेदार सामने आए. पहले रामसुन्दर दास जिनके सिर पर प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह का हाथ था और दूसरे थे रघुनाथ झा जिनपर दिग्गज समाजवादी चंद्रशेखर की छत्रछाया थी. इन दोनों सूरमाओं के बीच लालू प्रसाद को रेस जीतनी थी. लालू प्रसाद इस त्रिकोणीय संघर्ष में कामयाब रहे थे.

सत्ता की कुर्सी उन्हें बहुत मुश्किल से मिली थी, वे इसे यूं ही खोना नहीं चाहते थे। जब उन्हें लगा कि अब वक्त आ गया है कि उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा, तो उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में राबड़ी देवी का चयन कर लिया. लालू प्रसाद चाहते तो अपनी पार्टी के किसी वफादार सिपाही को मुख्यमंत्री बना सकते थे. ऐसा करने पर वे फौरी तौर पर महान भी हो जाते और कई मौकों पर राबड़ी देवी की वजह से हो रही आलोचनाओं से भी बच जाते. लेकिन सियासत के माहिर खिलाड़ी लालू प्रसाद अच्छी तरह जानते थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी ही ऐसी है जिसमें अपने अलावा किसी और पर भरोसा किया ही नहीं जा सकता.

हालांकि, सबसे अच्छी बात ये रही कि लालू प्रसाद की पार्टी के कई सिपहसालार लालू प्रसाद के फैसले के साथ मजबूती से डटे रहे. उन नेताओं में रघुवंश बाबू, जगदानंद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दिकी और रामचंद्र पूर्वे जैसे दिग्गज थे जो लालू प्रसाद के हर फैसले में छाया की तरह उनके साथ थे और इस घटना के क़रीब 16 सालों बाद जीतनराम मांझी ने नीतीश कुमार को सियासी धोखा देकर ये साबित कर दिया कि राबड़ी को सीएम बनाने का लालू प्रसाद का फैसला सियासी तौर पर कितना प्रासंगिक था.

किंग से लालू बने थे किंगमेकर
शुरुआत में राबड़ी देवी को नई जिम्मेदारियों के बीच एडजस्ट करने में काफी तकलीफ हुई. वे सीएम ऑफिस नहीं जाती थी, विधानसभा की कार्यवाही से भी बचती थीं. लेकिन धीरे-धीरे हालात ने उन्हें इन सब चीजों का अभ्यस्त बना दिया. लालू प्रसाद चाहते तो जेल से लौटकर राबड़ी की बजाए खुद सीएम बन सकते थे लेकिन उन्हें भी किंग की बजाए किंगमेकर बनने में मजा आने लगा. राबड़ी देवी ना केवल सियासत में फिट हो गई, बल्कि 2000 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर पूरे 5 साल तक कार्यकाल चलाया.

राबड़ी देवी का जन्म गोपालगंज में 1956 को हुआ था. उन्हें बिहार की पहली और एकमात्र महिला मुख्यमंत्री होने का गौरव हासिल है. 17 साल की उम्र में 1973 को उनका विवाह लालू प्रसाद यादव के साथ हुआ था। राबड़ी देवी 7 बेटियों और 2 बेटों की मां हैं.

राबड़ी की राजनीति की अपनी शैली है
राबड़ी देवी 2014 का लोकसभा चुनाव सारण निर्वाचन क्षेत्र से हार गई और उसके बाद उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा. वे फिलहाल बिहार विधान परिषद की सदस्य हैं और वहां नेता विपक्ष हैं. कई बार मीडिया से मुखातिब होते हुए और सदन में अपनी बात रखते हुए वो इतने आत्मविश्वास से भर जाती हैं कि एकबारगी यकीन नहीं होता कि ये वही राबड़ी देवी हैं जो पहली बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए लड़खड़ा रही थीं, शब्दों को ढूंढ रही थीं.

कई बार विवादित बयान देने की वजह से राबड़ी देवी सुर्खियों में भी रही, लेकिन उनकी अब तक की सियासत पर अगर ग़ौर करें तो उनकी शैली शालीन ही कही जाएगी. कुछ लोग राबड़ी देवी की तारीफ करते हैं और कुछ लोग उनकी शैली की आलोचना करते हैं. लेकिन इन सबसे अलग बिहार की सियासत का कोई भी इतिहास बगैर राबड़ी देवी के मुकम्मल नहीं होगा.

'

Read More
{}{}