अगर आप कोई मकान या फ्लैट खरीदने का प्लान बना रहे हैं और उसकी कीमत 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा है, तो रजिस्ट्री से पहले एक अहम काम जरूर TDS यानी टैक्स डिडक्टेड ऐट सोर्स का भुगतान कर लें. वरना आपकी प्रॉपर्टी रजिस्ट्री अटक सकती है, भारी जुर्माना लग सकता है और आपको आयकर विभाग से नोटिस भी मिल सकता है.
बाजार में बहुत से लोग इस नियम की जानकारी के बिना ही डील फाइनल कर लेते हैं और बाद में रजिस्ट्री ऑफिस में जाकर फंस जाते हैं. दरअसल, आयकर अधिनियम की धारा 194-IA के तहत, अगर कोई व्यक्ति ₹50 लाख या उससे अधिक कीमत की अचल संपत्ति (जैसे फ्लैट, मकान या जमीन) खरीदता है, तो उसे बिक्री मूल्य का 1% टीडीएस काटकर जमा करना होता है. यह जिम्मेदारी खरीदार की होती है, न कि विक्रेता या रजिस्ट्री ऑफिस की.
रजिस्ट्री से पहले क्यों जरूरी है टीडीएस भरना?
देश के कई राज्यों में अब रजिस्ट्री ऑफिस तभी प्रॉपर्टी रजिस्ट्री को आगे बढ़ाते हैं, जब खरीदार टीडीएस भुगतान का प्रमाण दिखाते हैं. अगर आपने ये 1% टीडीएस जमा नहीं किया है, तो रजिस्ट्री रोकी जा सकती है या पूरी तरह से रिजेक्ट हो सकती है. साथ ही, अगर बाद में टैक्स विभाग को इसकी जानकारी मिलती है, तो आप पर ब्याज और पेनल्टी लग सकती है.
कैसे और कब भरें टीडीएस?
टीडीएस भरने के लिए आपको ऑनलाइन फॉर्म 26QB भरना होता है, जो NSDL या आयकर विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है. इसमें आपको खरीदार और विक्रेता के पैन नंबर, प्रॉपर्टी का पता, लेन-देन की राशि और भुगतान की तारीख जैसी जानकारियां भरनी होती हैं. टीडीएस का भुगतान आप नेट बैंकिंग से ऑनलाइन कर सकते हैं या बैंक जाकर चालान के जरिए जमा कर सकते हैं. इस प्रक्रिया के 7 दिनों बाद फॉर्म 16B डाउनलोड करना होता है, जो विक्रेता को देना जरूरी है.
कितने समय में करना होता है भुगतान?
टीडीएस का भुगतान उस महीने के अंत से 30 दिनों के भीतर करना अनिवार्य है, जिसमें आपने विक्रेता को पैसा दिया है. उदाहरण के लिए, अगर आपने 15 जुलाई को भुगतान किया, तो टीडीएस आपको 30 अगस्त तक भरना होगा. देरी करने पर ब्याज और पेनल्टी लग सकती है, जिससे आपकी जेब पर एक्स्ट्रा बोझ पड़ेगा.
सावधानी जरूरी है
बड़ी संपत्ति खरीदना एक बड़ा फैसला होता है, जिसमें कानूनन नियमों का पालन बेहद जरूरी है. टीडीएस भुगतान एक छोटा लेकिन अहम कदम है, जिसे नजरअंदाज करना भारी नुकसान का कारण बन सकता है. अगर आपको प्रक्रिया समझने में परेशानी हो रही है, तो किसी चार्टर्ड अकाउंटेंट या प्रॉपर्टी वकील से जरूर सलाह लें.