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घर खरीदने का सपना क्या रह जाएगा अधूरा? मिडिल क्लास की कमाई से 11 गुना महंगे हुए मकान, इस शहर में सबसे बुरा हाल

हर आम भारतीय का सपना होता है कि उसका खुद का एक घर हो, वो एक ऐसी जगह जिसे वो अपना कह सके, जहां वह और उसका परिवार सुकून से रह सके. लेकिन अब ये सपना मिडिल क्लास के लिए दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है.

घर खरीदने का सपना क्या रह जाएगा अधूरा? मिडिल क्लास की कमाई से 11 गुना महंगे हुए मकान, इस शहर में सबसे बुरा हाल
Shivendra Singh|Updated: Jul 03, 2025, 06:08 PM IST
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हर आम भारतीय का सपना होता है कि उसका खुद का एक घर हो, वो एक ऐसी जगह जिसे वो अपना कह सके, जहां वह और उसका परिवार सुकून से रह सके. लेकिन अब ये सपना मिडिल क्लास के लिए दिन-ब-दिन मुश्किल होता जा रहा है. बढ़ती महंगाई, रियल एस्टेट सेक्टर में लग्जरी सेगमेंट का बोलबाला और सीमित अफोर्डेबल हाउसिंग ऑप्शन ने आम आदमी की पहुंच से घर को लगभग बाहर कर दिया है.

वेल्थ एडवाइजरी फर्म फिनोलॉजी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, भारत में जहां आमदनी 2020 से 2024 के बीच सालाना औसतन 5.4% की दर से बढ़ी, वहीं प्रॉपर्टी की कीमतों में इसी अवधि में 9.3% की तेज रफ्तार से उछाल देखा गया. इसका सीधा मतलब है कि घर की कीमतें लोगों की कमाई के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं, जिससे आम आदमी का घर खरीदने का सपना और भी दूर होता जा रहा है.

अफोर्डेबल मकानों की सप्लाई में भारी गिरावट
साल 2022 में देश में 1 करोड़ रुपये से कम कीमत वाले लगभग 3.1 लाख किफायती घर उपलब्ध थे. लेकिन 2024 तक यह आंकड़ा 36% गिरकर केवल 1.98 लाख रह गया. वहीं, दूसरी ओर लग्जरी मकानों की सप्लाई में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के तौर पर, दिल्ली-एनसीआर में 192%, बेंगलुरु में 187% और चेन्नई में 127% की बढ़ोतरी दर्ज की गई. यानी रियल एस्टेट सेक्टर अब मिडिल क्लास के बजाय हाई-इनकम ग्राहकों पर ज्यादा फोकस कर रहा है.

ईएमआई का बोझ
घर खरीदने के लिए होम लोन लेना अब आम बात है, लेकिन होम लोन की ईएमआई अब आमदनी पर भारी पड़ रही है. ईएमआई टू इनकम रेश्यो यानी मासिक आमदनी का वह प्रतिशत जो ईएमआई में खर्च होता है (2020 में 46% था) जो अब बढ़कर 61% तक पहुंच गया है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि मिडिल क्लास की जेब पर मकान की किस्त किस हद तक असर डाल रही है.

मुंबई में सबसे खराब स्थिति
रिपोर्ट के प्राइस टू इनकम रेशियो के अनुसार, देश में एक मिडिल क्लास परिवार को घर खरीदने के लिए औसतन अपनी 11 साल की पूरी कमाई खर्च करनी पड़ेगी. जबकि दुनिया भर में इसे 5 साल तक मानक माना जाता है. भारत में यह दोगुना हो चुका है. मुंबई की स्थिति सबसे खराब है, जहां यह अनुपात 14.3 तक पहुंच गया है, यानी मुंबई में घर खरीदना औसत आय वाले परिवार के लिए लगभग नामुमकिन होता जा रहा है. दिल्ली भी पीछे नहीं है, वहां यह अनुपात 10.1 है.

किराए पर जिंदगी बिताने को मजबूर!
इन सभी आंकड़ों से साफ है कि घर खरीदना अब मिडिल क्लास के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है. रियल एस्टेट की मौजूदा दिशा अगर ऐसे ही जारी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब आम आदमी के लिए अपने सिर पर छत होना सिर्फ एक सपना बनकर रह जाएगा.

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