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महापापों से मुक्ति दिलाती है अपरा एकादशी, जान लें व्रत रखने का सही तरीका

Apara Ekadashi 2025: अपरा एकादशी को हिंदू धर्म में बहुत अहम माना गया है. यह एकादशी व्रत महापापों से भी मुक्ति दिला सकता है.

महापापों से मुक्ति दिलाती है अपरा एकादशी, जान लें व्रत रखने का सही तरीका
Narinder Juneja|Updated: May 18, 2025, 09:20 AM IST
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Apara Ekadashi kab hai: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. हर वर्ष 24 एकादशियाँ आती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना धार्मिक, आध्यात्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है. इनमें से अपरा एकादशी, ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है और इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि वह अपने पूर्व जन्मों और वर्तमान जीवन के पापों से भी मुक्त हो जाता है.

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अपरा एकादशी का महत्व
 

अपरा एकादशी का अर्थ है - ऐसी एकादशी जो 'अपार फल' प्रदान करे. यह व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिक उत्थान की ओर ले जाता है और जीवन के सभी प्रकार के दोषों, दुखों, और पापों से छुटकारा दिलाने का मार्ग प्रशस्त करता है. मान्यता है कि जो भी भक्त श्रद्धा और नियमपूर्वक इस व्रत को करता है, उसके जीवन की बाधाएं समाप्त होती हैं, उसे शांति, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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पुराणों में वर्णित कथा
 

स्कंद पुराण में अपरा एकादशी व्रत की महिमा विस्तार से वर्णित है. कथा के अनुसार, महिष्मति नगरी के राजा महीध्वज के छोटे भाई वज्रध्वज ने लालच में आकर अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. राजा महीध्वज की आत्मा पीपल के पेड़ में भटकने लगी और पिशाच रूप में वहां रहने लगी. जब एक दिन महात्मा धौम्य वहां से गुजरे, तो उन्होंने आत्मा की व्यथा को समझा और उसके उद्धार के लिए अपरा एकादशी व्रत रखा. व्रत का पुण्य राजा की आत्मा को मिला और वह पिशाच योनि से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हुआ.

अपरा एकादशी व्रत से कौन-कौन से पाप होते हैं दूर?

हत्या और हिंसा जैसे महापापों से मुक्ति: यदि किसी व्यक्ति ने जीवन में जानबूझकर या अनजाने में किसी जीव की हत्या की हो या हिंसा में संलग्न रहा हो, तो अपरा एकादशी का व्रत उसके इस पाप को क्षमा कर सकता है. यह व्रत आत्मा को शुद्ध करता है और व्यक्ति को मानसिक पीड़ा से मुक्त करता है.

चोरी और छल-कपट के पाप: अपरा एकादशी का व्रत उन लोगों के लिए अत्यंत लाभकारी माना गया है जो कभी छल, धोखा या चोरी जैसे कार्यों में लिप्त रहे हों. ईश्वर की सच्ची भक्ति के साथ किए गए इस व्रत से ऐसे पापों का प्रायश्चित संभव है.

कुपात्र को दान देने का दोष: कई बार व्यक्ति अज्ञानता में दान-पुण्य गलत व्यक्तियों को दे देता है, जिससे पुण्य की बजाय पाप लगता है. अपरा एकादशी का व्रत इस दोष से भी मुक्ति दिलाता है.

ब्राह्मणों, गुरुजनों या बुजुर्गों का अपमान: जीवन में अगर कभी किसी ने गुरु, ब्राह्मण या माता-पिता जैसे सम्माननीय लोगों का अपमान किया हो, तो यह एक गंभीर पाप माना जाता है. ऐसे में अपरा एकादशी का व्रत करने से उस व्यक्ति को क्षमा का मार्ग मिल सकता है.

झूठ बोलने और गलत आचरण के दोष: यह व्रत झूठ, व्यभिचार, परनिंदा, ईर्ष्या और दुष्ट प्रवृत्तियों से मुक्ति प्रदान करता है. यह व्यक्ति के मन और वाणी को शुद्ध करता है.

न्याय का उल्लंघन या भ्रष्टाचार: यदि कोई व्यक्ति अपने पद का दुरुपयोग करके अन्याय करता है या भ्रष्टाचार में लिप्त रहा है, तो यह व्रत उसके भीतर आत्मबोध जाग्रत करता है और उसे सुधार का अवसर प्रदान करता है.

शारीरिक और मानसिक दोषों से छुटकारा: यह व्रत न केवल आत्मिक शुद्धि करता है, बल्कि व्यक्ति के शरीर और मन से जुड़े दोषों को भी दूर करता है. मानसिक तनाव, अपराधबोध और आत्मग्लानि जैसे मनोवैज्ञानिक दोषों से राहत मिलती है.

पूर्व जन्मों के पापों से मुक्ति: शास्त्रों के अनुसार, अपरा एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के केवल इस जन्म के ही नहीं, बल्कि पूर्व जन्मों के भी पाप नष्ट हो जाते हैं. इससे आत्मा को शुद्धि मिलती है और मोक्ष की ओर अग्रसर होती है.

अपरा एकादशी व्रत की विधि

व्रत की पूर्व रात्रि को सात्विक भोजन ग्रहण करें और भगवान विष्णु का स्मरण करें. फिर अपरा एकादशी व्रत के दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व स्नान कर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की पूजा करें, विशेषकर ‘श्रीहरि’ के रूप की आराधना करें. फलाहार या निर्जल व्रत रखें (स्वास्थ्य के अनुसार). दिन भर भगवत भजन, कीर्तन और व्रत कथा का श्रवण करें. रात को जागरण करें और अगले दिन पारण करें.

व्रत में क्या करें और क्या न करें

इस दिन झूठ बोलने, कटु वचन कहने और क्रोध करने से बचें.

मांस, मदिरा, प्याज-लहसुन जैसे तामसिक आहार से दूर रहें.

ब्राह्मणों और गरीबों को दान दें.

तुलसी का सेवन करें और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें.

अपरा एकादशी का सामाजिक और आध्यात्मिक प्रभाव

जो लोग सच्चे हृदय से अपरा एकादशी का पालन करते हैं, उनके जीवन में आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है. यह व्रत व्यक्ति को संकल्पबद्ध बनाता है, अनुशासन सिखाता है और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाता है. सामाजिक दृष्टि से यह व्रत व्यक्ति में करुणा, क्षमा और सेवा भावना विकसित करता है.

अपरा एकादशी केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-शुद्धि और मोक्ष का साधन है. यह व्रत व्यक्ति को जीवन की नकारात्मकताओं से बाहर निकालता है और सत्कर्म की ओर प्रेरित करता है. जिन लोगों ने जीवन में किसी भी प्रकार के पाप कर्म किए हैं या आत्मा पर दोष का बोझ महसूस करते हैं, उनके लिए यह व्रत एक दिव्य अवसर है — एक नया आरंभ, एक नई चेतना.

यदि आप आध्यात्मिक प्रगति की दिशा में बढ़ना चाहते हैं और अपने जीवन में शुद्धता, शांति और मोक्ष की ओर कदम बढ़ाना चाहते हैं, तो अपरा एकादशी का व्रत अवश्य करें. यह व्रत न केवल भगवान विष्णु की कृपा दिलाएगा, बल्कि आपके समस्त पापों को दूर कर आत्मा को शांति प्रदान करेगा.

(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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