Sawan last Monday 2025 Puja Muhurta: सावन में शिवरात्रि के बाद सबसे पावन दिन होता है सोमवार की. सोमवार ना सिर्फ भगवान शिव का प्रिय दिन है बल्कि भोलेशंकर के माथे पर विराजमान, सोम- यानी चंद्रमा से भी इसका खास कनेक्शन है. इसलिए 4 अगस्त को सावन का आखिरी सोमवार बेहद मायने रखता है. माना जाता है कि सावन के सोमवार को अगर आप ज्योतिर्लिंगों के दर्शन पूजन करें तो बेहद चमत्कारिक लाभ होते हैं. हालांकि भागदौड़ से भरी जिंदगी में ये सबके लिए मुमकिन नहीं होता. जैसे पहले सोमवार को महाकालेश्वर, सोमनाथ और मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का पूजा का खास विधान है, वैसे ही आखिर सोमवार के लिए भी कुछ खास मान्यताएं हैं. देखिए हमारी रिपोर्ट का पहला चैप्टर.
सावन के आखिरी सोमवार को बन रहा 'सर्वार्थ सिद्धि योग'
प्रकृति के देव और देवी माने जाने की वजह से भगवान शिव और पार्वती का पूजन अपने आप में जीवजगत के लिए कल्याणकारी मानी जाती है. मगर इस सोमवार कुछ योग ऐसे हैं, जो आपकी पूजा, आराधना और जलाभिषेक को विशेष सिद्धि वाला बनाएंगे. ये योग सावन मास में पहली बार बना है. सावन के इस आखिरी सोमवार को ‘सर्वार्थ सिद्धि योग’ बनता है. ये योग तब बनता है, जब भगवान शिव के माथे पर विराजमान चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में वृश्चिक राशि में गोचर करेंगे.
ये योग सोमवार की सुबह 5 बजकर 44 मिनट से सुबह 9 बजकर 12 मिनट तक रहेगा. इसके बाद शाम में सात बजे से आधे घंटे के लिए इंद्रयोग बन रहा है. जो भगवान शिव की पूजा, खासतौर पर ज्योतिर्लिंग दर्शन के लिए खास माना जाता है. सावन के इस आखिरी सोमवार को ‘सिद्धि योग’ में ज्योतिर्लिंग दर्शन- त्रंबकेश्वर करना बहुत शुभ माना जाता है.
इकलौता ज्योतिर्लिंग जहां त्रिदेव की त्रिकाल पूजा
देश के 10वें ज्योतिर्लिंग के मुख्य कक्ष की तरफ त्रिदेव की पूजा होती है. यह इकलौता ज्योतिर्लिंग है, जहां त्रिदेव की त्रिकाल पूजा होती है! पुजारी रवीन्द्र अग्निहोत्री ने त्रिदेव के जो तीन गुण बताए, आप पहले से समझिए, ये धर्म के साथ आध्यात्मिक रूप से भी कितना व्यावहारिक है. मंदिर में जो भी आता है, वो त्रिदेव की आध्यात्मिक परिकल्पना कैसे महसूस करता है, इसे कुछ श्रद्धालुओं से समझिए.
भगवान शिव के इस ज्योतिर्लिंग का आभा मंडल समझने के बाद अब आइए चलते हैं इसके गर्भगृह के अंदर जहां आपको दिखेगा- दुनिया का अनूठा शिवलिंग, जो ऊपर से दिखाई नहीं देता.
वो ज्योतिर्लिंग, जहां शिखर पर त्रिशूल नहीं पंचशूल है
त्रंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के बारे में कहा जाता है, कि यहां कालसर्प दोष से लेकर जन्मकुंडल के दुर्लभ ग्रह दोष सिर्फ भगवान शिव के दर्शन से ही दूर हो जाते हैं. इस दिन यहां विशेष पूजा भी कराई जाती है. जैसा कि हमने आपको बताया था, सावन के हर सोमवार को तीन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का विधान है, तो आपको दिखाते हैं, देश का एक ऐसा ज्योतिर्लिंग, जहां मंदिर के शिखर पर त्रिशूल नहीं, बल्कि पंचशूल है. इसे मनोकामना पीठ भी कहते हैं.
अब आपको देश के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक बैद्यनाथ धाम के बारे में बताते हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बैद्यनाथ धाम को ज्योतिर्लिंगों की हृदयस्थली कहा जाता है. ऐसा धाम, जहां भगवान शिव और सती का मिलन होता है. 12 ज्योतिर्लिंगों में ये पहला ऐसा स्थान है, जहां तांडव के बाद भगवान शिव का क्रोध शांत हुआ था और शरीर भस्म होने के बाद देवी सती उन्हें यहां सशरीर मिलीं थीं.
भगवान विष्णु ने बदला था ज्योतिर्लिंग
इसी पौराणिक मान्यता की वजह से बैद्यनाथ धाम में आज भी एक खास तरह की परंपरा निभाई जाती है. वो परंपरा है बाबा बोलेनाथ और माता पार्वती मंदिर के बीच गठबंधन की. बाबा और देवी पार्वती के मंदिरों के बीच गठबंधन की सिर्फ धार्मिक ही नहीं, आध्यात्मिक मान्यता भी है. कहा जाता है, इस गठबंधन में शामिल होने से वैवाहिक जीवन में शांति और समृद्धि मिलती है.
इसी आस्था के साथ दोनों मंदिरों के गठबंधन में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. पुरोहित बताते हैं, कि ये परंपरा हजारों साल से इसलिए जीवित है, कि तमाम लोगों ने अपनी जिंदगी में गठबंधन रस्म के चमत्कारिक प्रभाव को महसूस किया है. शिव पुराण में गठबंधन की परंपरा के साथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना को लेकर भी तमाम किस्से मिलते हैं.इसके मुताबिक रावण के यहां जाने के बाद शिवलिंग को ज्योतिर्लिंग में भगवान विष्णु ने बदला था.
मंदिर के गुंबद के पास टपकता रहता है जल
यानी इस शिवलिंग को भगवान विष्णु ने स्थापित किया था. इस दिव्य स्थापना को मंदिर के गर्भगृह में कोई भी आम श्रद्धालु महसूस कर सकता है. जैसे चंद्रकांता मणि. यह बैद्यनाथ मंदिर के गुंबद में स्थापित है. इस रहस्यमयी मणि से पानी लगातार टपकता रहता है, जिससे भगवान शिव का निरंतर जलाभिषेक होता रहता है!
मंदिर के गुंबद के एक खास स्रोत से जो पानी टपकता है, उसमें जल कहां से आता है, ये आज तक रहस्य बना हुआ है. इस स्रोत को चंद्रकांता मणि नाम दिया गया है, जिसकी वजह से अनंत काल से शिवलिंग का जलाभिषेक होता आ रहा है.
पापों का विनाश करता है ये ज्योतिर्लिंग
सावन के आखिरी सोमवार को एक ऐसे ज्योतिर्लिंग के दर्शन का विधान है, जिसके बारे में कहा जाता है, ये सात जन्मों के पापों का विनाश करता है. दरअसल इस ज्योतिर्लिंग में ये वरदान भगवान शिव ने एक असुर की विधवा पत्नि को दिया था. भीमा नाम का वो असुर कुंभकर्ण का पुत्र था और रावण वध का बदला लेना चाहता था.
उसने आसपास के इलाके में इतना आतंक मचाया था, कि भगवान शिव को उसका वध करना पड़ा. लेकिन भीमा के वध के बाद उसकी पत्नी डाकिनी ने भगवान शिव से ऐसा वर मांग लिया, जिसका असर पूरे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग इलाके में व्याप्त माना जाता है.
इस मंदिर पर होती है सबसे ज्यादा बारिश
महाराष्ट्र के प्राचीन शहरों में से एक पुणे से करीब 100 किलोमीटर उत्तर पश्चिम की तरफ आते ही सहयाद्रि की घाटियां आपका स्वागत ऐसे करती हैं. घने जंगलों से गुजरती पक्की सड़क, ऊंचे पहाड़ और पहाड़ों पर घना कोहरा. जैसे विदर्भ के सूखे इलाके से बाहर आते ही पूरी आबो हवा अचानक नमी में बदल जाती है.
जहां भीमाशंकर मंदिर स्थित है, वो इलाका देश के उन क्षेत्रों में शामिल है, जहां साल में सबसे ज्यादा बारिश होती है. पौराणिक मान्यताएं इसे भगवान शिव का वरदान मानती है.
दोबारा कैसे बह निकली थी भीमा नदी?
इस मान्यता के मुताबिक भीमासुर का वध करने के बाद भगवान शिव जब विश्राम करने पहुंचे, तो उनके शरीर से पसीना निकलना शुरू हुआ. उसी पसीने से वो नदी दोबारा बह निकली, जो भीमासुर से जंग के दौरान सूख गई थी. उस नदी का नाम भी भीमा नदी है, जो ज्योतिर्लिंग के ठीक पीछे के पहाड़ों से निकलती है. उसी भीमा नदी के जल से एक कुंड भी है मंदिर परिसर में, जिसके जल को चमत्कारी माना जाता है.
ये पूरा इलाका भगवान शिव के महाक्षेत्रों में गिना जाता है, जहां उनकी अराधना के लिए द्वापर युग में पांडव भी आए और छत्रपति शिवाजी महाराज भी. द्वापर में पांडवों ने मंदिर बनवाया था, जिसे छत्रपति शिवाजी ने भव्य बनाया था!
छत्रपति शिवाजी के काल तक इस क्षेत्र में 108 तीर्थ हुआ करते थे, जो गिने चुने ही रह गए हैं. लेकिन ये ज्योतिर्लिंग आज भी अक्षत है, भव्य है और पूरी दुनिया में दिव्य शक्तियों वाला माना जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)