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Hanuman Janmotsav 2025: सदियों से अमर हनुमान जी की कितनी हो चुकी है आयु? वो घटना, जब बजरंग बली ने भीम के साथ अर्जुन का भी तोड़ा घमंड

Stories of Hanuman Ji in Hindi: भगवान राम से चिरंजीवी का आशीर्वाद प्राप्त हनुमान जी अजर-अमर हैं. उन्हें धरती के 8 चिरंजीवी लोगों में से एक माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब उनकी आयु कितनी हो चुकी है.   

Hanuman Janmotsav 2025: सदियों से अमर हनुमान जी की कितनी हो चुकी है आयु? वो घटना, जब बजरंग बली ने भीम के साथ अर्जुन का भी तोड़ा घमंड
Devinder Kumar|Updated: Apr 12, 2025, 10:41 PM IST
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What is the age of Hanuman ji: सनातन के पंचाग के मुताबिक 12 अप्रैल, यानी चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा तिथि बजरंग बली का दिन है. हम आपके लिए वो 12 दिलचस्प गाथाएं सहेज लाए हैं, जो आपको बताएंगी, धरती के चौथे युग में भी बजरंग बली सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले देव तत्वों से से एक क्यों है? त्रेतायुग में रामभक्ति से लेकर द्वापर युग के महाभारत से लेकर आज कलियुग के कलह चक्र में बजरंग बली को लेकर श्रद्धालुओं की आस्था इतनी गहरी क्यों है? ये ऐसी गाथा हैं, जो सृष्टि की रचना के बारे में भी बहुत कुछ कहती हैं. जैसे हनुमान जी की उम्र...! आइए आज आपको बजरंग बली से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां देते हैं.

कितनी है हनुमान जी की आयु?

ये देश है हनुमान की जन्मभूमि, जो ना तो किसी बवाल से बदल सकती है और ना ही सनातन के दुश्मनों की बलवाई हरकतों से. इसीलिए तो इस देवतत्व का सबसे लोकप्रिय नाम है बजरंग बली, एक ऐसी शक्ति, जिसका कोई थाह नहीं. चार युगों में आज तक जिससे कोई पार नहीं पाया.

जिन्हें नहीं पता, उन्हें ये बात मन में बिठा लेनी चाहिए, कि बजरगंब बली सिर्फ एक देवता नहीं, बल्कि भाव हैं, सृष्टि की उर्जा का दूसरा नाम हैं. आज विज्ञान भी मानता है- ये पूरी सृष्टि और ब्रह्मांड, जिसे हम अब तक जान पाए हैं, इसी उर्जा पर आधारित है...

किस ऊर्जा के देवता हैं हनुमान?

वायु पुराण और अगस्त्य संहिता हनुमान जी को अहम देवता बताते हैं, यानी जैसे सृष्टि में उर्जा का नाश नहीं होता, उसी तरह हनुमान जी का अंत नहीं. वायु पुराण के मुताबिक हनुमान जी की उम्र 1 कल्प. यानी 4 अरब 32 करोड़ साल है.

जितनी पुरानी धरती, उतने प्राचीन ‘पवनसुत’?

आधुनिक विज्ञान धऱती को 4 अरब 60 करोड़ पुराना बताता है. यानि ब्रह्मांड के निर्माण के करीब 9 अरब साल बाद हमारी धरती अस्तित्व में आई. लेकिन इस आधुनिक विज्ञान की इस परिभाषा से हजारों साल पहले सनातन के वैदिक ग्रंथों ने पूरी काल गणना कर दी थी. कल्प को ब्रह्मा का एक दिन कहा जाता है. ब्रह्मा का एक दिन 12 महायुगों के बराबर होता है और एक कल्प में होते हैं 4.32 बिलियन वर्ष. 

पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक धरती पर आग के बाद पहली ऊर्जा वायु यानी हवा के रूप में प्रवाहित हुई थी. हनुमान जी को इसी वायुशक्ति का प्रतीक माना गया. इसीलिए उनका एक नाम पवन सुत यानी वायु देवता का पुत्र कहा गया.

वायु देवता से कैसे उत्पन्न हुए हनुमान? 

हनुमान जी के जन्म के बारे में जो सबसे प्रचलित कथा है, उसके मुताबिक उनकी माता का नाम अंजना था. उन्होंने ही संतान प्राप्ति क लिए वायु देवता का आह्वान किया था. अंजना वानर राज केसरी की पत्नी थीं. एक कथा के मुताबिक अंजना एक अप्सरा थीं, लेकिन एक श्राप की वजह से वो वानर योनि में पैदा हुई. लेकिन इस रूप में अंजना ने वायु देवता की कठिन तपस्या की, उससे प्रसन्न होकर वायु देवता ने कहा कि जल्द ही तुम्हारी कोख से मुझ जैसे असीम शक्ति वाला संतान पैदा होगा.

हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है. बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था.

वायु के 49 प्रकार, सबके नियंत्रक हनुमान

हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास.

अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास॥

-रामायण का सुंदरकांड

रामायण के सुंदरकांड में तुलसीदास हनुमान जी की इसी असीम शक्ति का वर्णन करते हैं. इस चौपाई के जरिए तुलसीदास बताते हैं, कि जब हनुमान जी ने लंका को अग्नि के हवाले किया, तो उनके प्रताप से उनचासों पवन धरती से आसमान तक सक्रिय हो गए. तब हनुमान जी अट्टहास करके गर्जे और अपना आकार बढ़ाकर आकाश मार्ग से जाने लगे.

हनुमान और 7 वायु का वैदिक विधान 

आप हैरान हो रहे होंगे, कि रामायण में वर्णित ये 49 पवन कैसे होते हैं. दरअसल वेदों में 7 प्रकार की वायु का जिक्र मिलता है. ये वायु हैं
1. प्रवह, 2. आवह, 3. उद्वह, 4. संवह, 5. विवह, 6. परिवह और 7. परावह. इनमें से हर वायु के 7 गण यानी संचालित करने वाले होते हैं. इस तरह वायु शक्ति के कुल 49 रूप हैं, जिनके नियंत्रक हनुमान को माना जाता है. 

हमारे वैदिक ग्रंथों में जिस 7 वायु और इसके 49 नियंत्रकों का जिक्र है, उसके जरिए तीनों लोकों में वायु की अलग अलग शक्तियों का वर्णन है. इसमें ब्रह्मलोक से लेकर इंद्रलोक, अंतरिक्ष और भू लोक की चारों दिशाएं. इन्हीं वायु शक्तियों से धरती पर जीव जगत के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण होता है, मौसम बदलते हैं और प्राण वायु का प्रवाह होता है. हमारे ग्रंथों के मुताबिक, इन सभी वायु शक्तियों के देवता हैं हनुमान, जिन्हें मारूत भी कहा जाता है. 

अब बात करते हैं त्रेतायुग की, जब हनुमान का जन्म एक वानर प्रजाति में हुआ, इसके पीछे क्या गाथा है. त्रेतायुग में हनुमान जी की गाथा भगवान राम के बाद सबसे चर्चित कथा है. इन कथाओं का सारा यही है कि वानर प्रजाति के राजा केसरी और उनकी पत्नी अंजना की 6 संतानों में सबसे बड़े पवनसुत का जन्म ही भगवान राम की सेवा के लिए हुआ.

त्रेतायुग में वानर क्यों बने हनुमान?

त्रेतायुग में हनुमान के वानर रूप में जन्म लेने की एक ज्योतिषीय गणना भी मिलती है. इसके मुताबिक हनुमान जी का जन्म 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले त्रेतायुग के अन्तिम चरण हुआ था. वो चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार का दिन था. उस दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न के योग का समय सुबह 6.03 बजे था. और स्थान था आज के हरियाणा का कैथल, जिसे जिसे पहले कपिस्थल कहा जाता था. 

तुलसीदास ने रामायण का पूरा पांचवा अध्याय सुंदरकांड हनुमान जी के विविध पहलुओं पर केन्द्रित किया है. इसके मुताबिक अगर हनुमान नहीं होते, तो लीला के रूप में भगवान राम लंका अभियान में सफल नहीं होते.

सुंदर कांड में तुलसीदास ने हनुमान जी के जिस रूप का वर्णन किया है उसके मुताबिक वो वानर के मुख वाले अत्यंत बलिष्ठ जीव हैं. इनका शरीर अत्यंत मांसल एवं बलशाली है. उनका शरीर पर्वत के समान विशाल और कठोर है. उनका मुख्य अस्त्र गदा है और उनके मुख पर सदेव राम नाम की धुन रहती है.

क्या श्रीराम और हनुमान सगे भाई थे?

भगवान श्रीराम और हनुमान के बारे में एक और दिलचस्प कथा रामचरितमानस में ही मिलती है, जिसके मुताबिक ये दोनों सगे भाई थे. रामचरितमानस के मुताबिक संतान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने जो पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था, उसमें अग्नि देव जो खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए थे. उसे तीन रानियों को खिलाना था.

राजा दशरथ ने अग्नि देव के कहे अनुसार रानियों को खीर खिलाना शुरू किया. कौशल्या, सुमित्रा ने खीर को ग्रहण कर लिया परंतु अंत में खीर मिलने पर कैकेयी नाराज हो गईं. तभी भगवान शिव ने एक माया रचते हुए चील वहां भेजी. चील कैकेयी के हाथ से खीर लेकर वहां से उड़ गई और वानर राज केसरी की पत्नी अंजना के पास पहुंची. तपस्या में लीन अंजना देवी ने उस खीर को भगवान का प्रसाद मान कर ग्रहण कर लिया.

इस कथा के मुताबिक खीर खाने के बाद जिस तरह राजा दशरथ की रानियों ने 4 पुत्रों को जनम दिया, उसी तरह अंजना ने भी एक पुत्र को जन्म दिया. जहां राजा दशरथ की तीनों रानियों ने श्री राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न को जन्म दिया. वहीं देवी अंजना ने हनुमान जी को जन्म दिया.

श्रीराम और हनुमान जी की पहली मुलाकात

आगें चले बहुरि रघुराया. 

रिष्यमूक पर्बत निअराया॥ 

तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा. 

आवत देखि अतुल बल सींवा॥

रामायण में वर्णित इस दृश्य के मुताबिक भगवान श्रीराम और हनुमान की पहली मुलाकात तब हुई थी, जब रावण ने सीता का हरण कर लिया था. सीता की तलाश में श्रीराम और लक्ष्मण भटकते-भटकते ऋष्यमूक पर्वत के पास पहुंचे, तब इन्हें देख वानरराज को संदेह हुआ. तब दोनों की पहचान करने के लिए सुग्रीव ने हनुमान जी को बुलाया.

हनुमान जी वनर राज सुग्रीव के महामंत्री थे. उन्होंने दोनों भाइयों का सच जानने के लिए साधु का रूप धारण किया और राम-लक्ष्मण के पास जाकर बोले- ‘हे सुंदर मुख और गोरे शरीर वाले वीर आप कौन हैं और यूं इस वन की कठोर भूमि पर अपने कोमल चरणों से क्यों चल रहे हैं? आप इस कड़ी धूप को सह रहे हैं. आप कहीं त्रिदेव में से कोई एक तो नहीं या आप नर-नारायण हैं?’

हनुमान जी के विनयपूर्ण वचन सुन श्रीराम-लक्ष्मण ने अपना परिचय दिया. श्रीराम का नाम सुनते ही हनुमान जी ने उनके चरण पकड़ लिए और प्रणाम कर उनकी स्तुति करने लगे.

जब अपने राम के लिए ‘पंचमुखी’ बने हनुमान!

भगवान राम से मुलाकात के बाद उन्होंने किस तरह पूरे लंका अभियान में निर्णायक भूमिका निभाई, इसकी गाथाएं आज भी गाई जाती है. लेकिन एक घटना बेहद ही दिलचस्प है, जिसमें हनुमान ने अपने पांच मुख कर लिए थे. दरअसल, काले जादू के ज्ञाता अहिरावण ने जब राम और लक्षमण का सोते समय हरण कर लिया और उन्हें पाताल-लोक में ले गया. तब उनकी खोज में हनुमान भी पाताल लोक पहुंच गए थे. 

वहां मुख्य दरवाजे पर मकरध्वज नाम का असुर पहरा दे रहा था, जिसका शरीर मछली का और आधा शरीर वानर का था. मकरध्वज हनुमान का ही पुत्र था, लेकिन वो उन्हें पहचान नहीं पाया. दोनों के बीच हुए युद्ध मे जब हनुमान विजयी हुए, तब उन्होंने पाताललोक में प्रवेश किया. 

यहां आने के बाद हनुमान को पता चला कि अहिरावण का वध करने के लिये उन्हे पांच दीपकों को एक साथ बुझाना पड़ेगा. ये पांचों दीपक पांच दिशाओं में थे और इन्हें एक ही साथ बुझाना था. तब हनुमान ने अपना पंचमुखी रूप बनाया. इसमें श्री वराह, श्री नरसिम्हा, श्री गरुड़, श्री हयग्रिव और स्वयं का रूप धारण किया और एक साथ में पाँचों दीपकों को बुझाकर अहिरावण का अंत किया.

जब तोड़ा अर्जुन-भीम का घमंड

ये तो हुई त्रेतायुग में वर्णित हनुमान की गाथाएं. क्या आपको पता है, बजरंगबली का जिक्र महाभारत काल में भी मिलता है. खासतौर पर पांडव भाइयों के साथ बजरंग बली के नये रूप और अवतार का वर्णन है. वेद व्यास रचित ग्रंथ महाभारत के मुताबिक कौरवों और पांडवों के युद्ध में बजरंगबली की भूमिका बेहद खास थी. 

जब पांडवों को 12 वर्षों का वनवास मिला था, तब एक दिन द्रौपदी ने भीम से सौगंधिका फूल लाने की इच्छा जताई. भीम फूल की तलाश में जंगल की ओर निकल पड़े. रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा वानर लेटा हुआ मिला, जिसकी पूंछ रास्ता रोक रही थी. भीम ने वानर से पूंछ हटाने को कहा, लेकिन वानर ने कहा कि वह बूढ़ा है और अपनी पूंछ नहीं हटा सकता. तब भीम ने अपनी पूरी ताकत लगाकर पूंछ हटाने की कोशिश की, लेकिन पूंछ टस से मस नहीं हुई. 

यह देख भीम को समझ आ गया कि यह कोई साधारण वानर नहीं है. जब उन्होंने वानर से पूछा कि वे कौन हैं, तब वानर ने अपना असली रूप दिखाया और पता चला कि वे स्वयं हनुमान जी हैं. हनुमान जी ने भीम को आशीर्वाद दिया और उनका अहंकार भी तोड़ दिया.

भीम की तरह अर्जुन का भी सामना हनुमान से हुआ, जब अर्जुन रामेश्वरम पहुंचे. उन्होंने रामसेतु देखकर कहा कि ऐसा पुल तो वो अपने तीर से बना देते. तब हनुमान जी वहां प्रकट हुए और अर्जुन को चुनौती दी कि तीरों से बना पुल उनका भार सहन नहीं कर पाएगा. अर्जुन ने चुनौती स्वीकार की और तीरों का सेतु बनाया. हनुमान जी ने जैसे ही सेतु पर पांव रखा, वह टूटने लगा और अर्जुन हार मानने को तैयार हो गए.

श्रीराम ने क्यों दिया हनुमान को मृत्युदंड?

ये कथा उस वक्त की है जब श्रीराम लंका विजय के बाद अयोध्या में उनका राजतिलक हो चुका था. श्रीराम के राजा बनने के बाद एक बार जब दरबार लगा तब नारद मुनि ने हनुमान जी से मुनि विश्वामित्र को छोड़कर सभी ऋषियों का अभिवादन करने के लिए कहा. नारद मुनि ने ऐसा हनुमान की परीक्षा लेने के लिए कहा था. लेकिन अभिवादन नहीं किए जाने से विश्वामित्र जी इतने क्रोधित हुए कि वे सीधा श्रीराम के पास गए और उनसे हनुमान को मृत्युदंड देने के लिए कहा. श्रीराम ऋषि विश्वामित्र के ही छात्र थे, इसलिए अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए श्रीराम ने हनुमान जी को बाणों से मारने का आदेश दिया. 

श्रीराम को अपने गुरु के वचन का पालन करना था. जब हनुमान पर बाणों का कोई प्रभाव पड़ा तो उन्होंने ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने का निर्णय लिया. लेकिन, वहां मौजूद सभी लोग आश्चर्यचकित हो गए जब हनुमान जी के राम मंत्र ने सबसे शक्तिशाली ब्रह्मास्त्र को भी विफल कर दिया. यह देखकर नारद जी, ऋषि विश्वामित्र के पास गए और अपनी गलती स्वीकार कर हनुमान जी की अग्निपरीक्षा रोक दी. ये कथा बताती है, कि हनुमान जी अमर हैं. उन्हें धरती के 8 चिरंजीवी लोगों में से एक माना जाता है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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