Jatoli Shiv Temple Solan Mystery: भगवान शिव को नीलकंठ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने गले में धारण किया था. ये विष अगर धरती पर फैल जाता तो समूचे जीव जगत का नाश हो जाता लेकिन आज हम आपको भगवान शिव का एक और खास पहलू बताएंगे. उस अमृत कुंड की रहस्यमयी शक्ति की जानकारी देंगे, जिसके बारे में दावा किया जाता है कि उसमें स्नान से कई असाध्य रोग ठीक हो जाते हैं.
देश का पूरा हिमाचली क्षेत्र अगर देव भूमि कहा जाता है, तो इसमें एक बड़ी मान्यता सोलन जिले के इस शिव मंदिर का भी है. दूर से ही मंदिर की झलक दिखते ही श्रद्धालु अपने ईष्टदेव शिव के अनूठे लोक में पहुंच जाते हैं. सबसे पहले जिज्ञासा बढ़ाती है इस मंदिर की बनावट.
हिमाचल में कैसे बना द्रविण शैली का शिव मंदिर?
भगवान शिव का यह अनोखा मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर राजगढ़ रोड़ पर स्थित है. इसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है. दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फीट है, जो इसे एशिया का सबसे ऊंचा शिवमंदिर बनाती है. मंदिर की बनावट तो भवन निर्माण का बेजोड़ नमूना है ही, क्योंकि पूरे बाहरी दीवारों पर बारीक नक्काशी, देवी देवताओं और सनातन के प्रतीक चिन्ह इसे बेहद खास बनाते हैं. लेकिन इसके साथ यहां का शिवलिंग दिव्य शक्ति वाला माना जाता है.
स्पर्श मात्र से मिलती है दिव्य शांति!
ये सिर्फ लोगों की आस्था नहीं, बल्कि स्फटिक चट्टानों की चमत्कारी शक्ति है. सनातन की परंपराओं में स्वास्थ्य, मानशिक शांति और प्रेत-बाधाओं से मुक्ति के लिए स्फटिक की विशेष मान्यता है. स्फटिक एक रंगहीन, पारदर्शी और निर्मल रूप वाला पत्थर होता है, जिसकी मालाएं ऋषि मुनियों से लेकर आम लोग भी इसके आध्यात्मिक महत्व की वजह से धारण करते हैं. उसी चमत्कारी पत्थर स्फटिक से मंदिर के शिवलिंग का निर्माण हुआ है, जिसके बारे में लोगों की मान्यता है, कि इसके स्पर्श मात्र ही लोगों का मस्तिष्क दिव्य शांति से भर जाता है.
मंदिर के पत्थरों से डमरू की आवाज
स्फटिक के शिवलिंग की तरह एक बड़ा रहस्य उन पत्थरों का भी है, जिनसे इस मंदिर का निर्माण हुआ है. इन्हें किसी पत्थर से छूने या हल्के जोर से हाथ मारने पर डमरू सी आवाज आती है. मंदिर में आने वाला हर शख्स इन चमत्कारी शक्तियों को देख सिर्फ दंग नहीं होता, बल्कि शिव शक्ति से अभिभूत होकर शीश नवाता है. मन में एक भरोसा लेकर आता है, कि यहां भगवान शिव के दर्शन और यहां के कुंड के पानी से उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे.
जटोली मंदिर का यही वो शिवकुंड है, जो लोगों के बीच बरसों से चर्चा का विषय बना हुआ है. आखिर इसके पानी में कैसा तत्व है, जिससे लोगों की बीमारियां ठीक होती हैं...?
लोगों में इतना लोकप्रिय कैसे हुआ जल?
जटोली मंदिर के कुंड का जल लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हुआ, कि इसे लेने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ने लगी थी. इसे देखते हुए मंदिर प्रशासन को कुछ पाबंदियां लगानी पड़ी थी. हालांकि मंदिर के कुंड में पानी कभी खत्म नहीं होता, लेकिन भीड़ की वजह से पानी दूषित होने लगा था. ये मंदिर हालांकि बहुत पुराना नहीं है, बल्कि इसका निर्माण 1970 के दशक में शुरु हुआ था. लेकिन यहां भगवान शिव और उनकी शक्ति को लेकर मान्यताएं युगों पुरानी है.
जैसे पूरी देवभूमि में भगवान शिव को लेकर पौराणिक मान्यताएं है, जटोली नाम की ये जगह भगवान शिव से जुड़ी उन्हीं गाथाओं का हिस्सा है. ये गाथाएं बताती हैं, कि पृथ्वीलोक में कैलाश पर अपना स्थाई धाम बनाने के बाद भगवान शिव एक रात के लिए यहां रुके थे और जिस जगह पर ये मंदिर है, वहां साधना की थी.
संत परमहंस ने की थी तपस्या
स्थानीय लोग बताते हैं, कि भगवान शिव के आगमन और उनकी देवीय आभा की वजह से यहां के पत्थरों और कुंड के इस जल में रहस्यमयी शक्ति का संचार हुआ. जटोली से जुड़ी इन्हीं पौराणिक गाथाओं को सुनकर स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक संत यहां तपस्या के लिए आए थे.
1950- जटोली आए कृष्णानंद परमहंस
1974- रखा शिव मंदिर का पहला पत्थर
समाधि के बाद भी चलता रहा मंदिर का कार्य
जटोली आने के बाद स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने मंदिर की जगह लंबी तपस्या की. कहा जाता है कि तपस्या के दौरान भगवान शिव के साक्षात दर्शन के बाद उन्होंने यहां शिव मंदिर का पहला पत्थर स्थापित किया. 1974 में जब शिव मंदिर की स्थापना हुई, तब तक कृष्णानंद परमहंस की तपस्या की सुर्खियां पूरे इलाके में फैल चुकी थी. लिहाजा मंदिर के निर्माण में हर तरह से योगदान किया.
कृष्णानंद परमहंस ने जब मंदिर को आकार लेता देखा तो उनके मन में आश्वस्ति हुई. 9 साल बाद ही उन्होंने भगवान शिव की गहन साधना करते हुए समाधि ले ली. लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य नहीं रुका. इसकी देखरेख के लिए कृष्णानंद जी के अनुयायियों ने एक कमेटी बनाई, जिसने 35 साल तक मंदिर के पूर्ण होने तक निर्माण कार्य जारी रखा.
अभी हाल ही में, मंदिर के ऊपर 11 फीट लंबा स्वर्ण कलश लगाया गया, जो अब शिव शक्ति के परचम की तरह लहराता है. अब मंदिर अपने पूरे आकार में है, अपने परिसर में पत्थरों से लेकर जलकुंड तक के रहस्यों के साथ साकार.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)