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मोहिनी एकादशी पर गुरुवार का अद्भुत संयोग, पूजा में ये कथा पढ़ने से बढ़ेगी सुख-समृद्धि और सौंदर्य

Mohini Ekadashi Vrat Katha: भगवान विष्‍णु द्वारा मोहिनी का अवतार लेने का दिन मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. आज मोहिनी एकादशी की पूजा में ये व्रत कथा जरूर पढ़ें.

मोहिनी एकादशी पर गुरुवार का अद्भुत संयोग, पूजा में ये कथा पढ़ने से बढ़ेगी सुख-समृद्धि और सौंदर्य
Shraddha Jain|Updated: May 08, 2025, 08:21 AM IST
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Mohini Ekadashi 2025: वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को  मोहिनी एकादशी व्रत रखा जाता है. इस साल मोहिनी एकादशी व्रत आज 8 मई, गुरुवार को रखा जाएगा. इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार की विधि-विधान से पूजा की जाती है. समुद्र मंथन के समय जब दानवों ने देवताओं से अमृत कलश लेना चाहा तो भगवान विष्‍णु ने मोहिनी का रूप रखकर देवताओं की रक्षा की थी. साथ ही देवताओं को अमृत बांटा था. जिस तरह भगवान विष्‍णु ने उस समय देवताओं की रक्षा की थी, वैसे ही मोहिनी एकादशी व्रत रखने वाले भक्‍तों की रक्षा भी स्‍वयं श्रीहरि करते हैं.

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मोहिनी एकादशी पूजा मुहूर्त

पंचांग के अनुसार वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी कि मोहिनी तिथि 7 मई को सुबह 10 बजकर 19 मिनट पर प्रारंभ हो चुकी है और 8 मई को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त होगी. उदयातिथि के आधार पर मोहिनी एकादशी की पूजा के लिए विजय मुहूर्त दोपहर 2 बजकर 32 मिनट से 3 बजकर 36 मिनट तक हैऋ वहीं मोहिनी एकादशी का पारण 9 मई को सुबह 5 बजकर 34 मिनट से 8 बजकर 16 मिनट तक किया जाएगा.

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मोहिनी एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का एक नगर था, जिस पर चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज्य करते थे. उसी नगर में धनपाल नामक एक अत्यंत धर्मात्मा और विष्णु भक्त वैश्य भी रहता था. वह हमेशा दान-पुण्य और सेवा कार्य करता रहता था. धनपाल के पांच पुत्र थे - सुमना, सद्बुद्धि, मेधावी, सुकृति और धृष्टबुद्धि. इनमें से जो सबसे छोटा पुत्र था, धृष्टबुद्धि, वह स्वभाव से क्रूर और पापी था. वह जुआ खेलता था, शराब पीता था और वैश्याओं के साथ घूमता था. उसने अपने पिता का सारा धन बुरे कामों में बर्बाद कर दिया था.

धनपाल अपने बेटे की इन आदतों से बहुत परेशान था. एक दिन वह इतना तंग आ गया कि उसने धृष्टबुद्धि को घर से बाहर निकाल दिया. घर से निकलने के बाद धृष्टबुद्धि और भी बिगड़ गया. वह चोरी और लूटपाट करने लगा और लोगों को सताने लगा. एक बार वह चोरी करते हुए पकड़ा भी गया, लेकिन उसके नेक पिता की वजह से उसे छोड़ दिया गया. इसके बाद वह जंगल में भटकने लगा और भूख-प्यास से परेशान होकर जानवरों को मारकर खाने लगा.

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एक दिन घूमते-फिरते वह महर्षि कौण्डिन्य के आश्रम में पहुंच गया. उस समय वैशाख का महीना चल रहा था और महर्षि गंगा में नहाकर वापस आ रहे थे. धृष्टबुद्धि दुख और उदासी से भरा हुआ महर्षि के पैरों पर गिर पड़ा और उनसे अपने पापों से छुटकारा पाने का तरीका पूछा. उसने कहा, 'हे महात्मा, मैंने अपनी जिंदगी में बहुत बुरे काम किए हैं. कृपा करके मुझे कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं.'

महर्षि कौण्डिन्य ने कहा, 'हे पुत्र, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी का व्रत होता है. इस व्रत को करने से बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं. तुम श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करो.' धृष्टबुद्धि ने महर्षि की बात मानकर विधिपूर्वक मोहिनी एकादशी का व्रत किया. व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप धुल गए और अंत में उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई. वह एक दिव्य शरीर धारण करके गरुड़ पर सवार होकर विष्णुलोक चला गया.

इस कथा का सार यह है कि मोहिनी एकादशी का व्रत पापों से मुक्ति दिलाता है. मान्‍यता है कि इस व्रत कथा को पढ़ने या सुनने मात्र से हजार गौदान का फल मिलता है.

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(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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