Nag Panchami Ki Kahani: हिंदू धर्म में नाग पंचमी के त्योहार का बहुत खास महत्व होता है. यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है. हिंदू धर्म में नागों को धन का रक्षक माना गया है, साथ ही भगवान शिव गले में नाग को धारण करते हैं. नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करने से दुख दूर होते हैं. जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है. नाग देवता की पूजा करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं. इस साल नागपंचमी पर्व 29 जुलाई को मनाया जाएगा. आइए इस मौके पर जानते हैं नागपंचमी से जुड़ी एक ऐसी पौराणिक कथा, जिसमें एक राजा ने धरती से नागों का नामोनिशान मिटाने के लिए सर्पयज्ञ किया था.
नागपंचमी की कहानी
महाभारत काल में एक राजा हुए थे राजा जन्मेजय, वे राजा परीक्षित के पुत्र थे. राजा परीक्षित महाभारत कथा के एक प्रमुख पात्र हैं. वे अर्जुन के पोते और अभिमन्यु व उत्तरा के पुत्र थे. उन्हें कुरुवंश के अंतिम शासक के रूप में जाना जाता है. महाभारत युद्ध के बाद, जब पांडवों ने राज्य त्याग दिया, तो उन्होंने परीक्षित को सिंहासन सौंपा.
राजा परीक्षित को लेकर एक ऋषि ने श्राप दिया था कि 7 दिन के अंदर सर्प दंश से उनकी मृत्यु हो जाएगी. कई सावधानियां बरतने के बाद भी राजा इससे नहीं बच पाए और तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई.
तब राजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए नागों के विनाश के लिए एक यज्ञ किया. इस यज्ञ में, सभी नाग जलकर भस्म होने लगे. कई नाग जब यज्ञ कुंड की अग्नि में आकर जलने लगे तो ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने इस भयंकर सर्पयज्ञ को रोककर नागों की रक्षा की. क्योंकि यदि यह यज्ञ नहीं रुकता तो धरती से सारे सांप खत्म हो जाते.
उन्हें ना केवल सर्प यज्ञ को रोका बल्कि आस्तिक मुनि ने नागों के जलते हुए शरीर पर दूध की धार डालकर शीतलता प्रदान की. उस दिन पंचमी तिथि थी. तब नागों ने आस्तिक मुनि से कहा कि जो भी पंचमी के दिन उनकी पूजा करेगा, उसे कभी भी नागदंश का भय नहीं रहेगा. इसलिए, श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी मनाई जाती है, और इस दिन नागों की पूजा की जाती है.
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