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Pauranik Katha: राजा सगर के 60 हजार पुत्रों में से एक भी नहीं बचा, मृत्यु का कारण जान आंखें खुली रह जाएंगी, रोचक कथा जानें!

Raja Sagar Ki Pauranik Katha: पर्वतराज हिमालय की दो पुत्री थीं. एक का नाम गंगाजी और दूसरी का नाम उमा जी था. उमा जी ने भगवान शंकर से विवाह किया और गंगाजी स्वर्ग में वास करने लगी. वहीं दूसरी ओर राजा सगर ने पुत्र प्राप्ति के लिए घोर तप किया.

Raja Sagar Ki Pauranik Katha
Raja Sagar Ki Pauranik Katha
Padma Shree Shubham|Updated: Aug 07, 2025, 08:57 AM IST
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Pauranik Katha in Hindi: पर्वतराज हिमालय की दो पुत्रियां देवी गंगा और देवी उमा हंसती खेलती बड़ी हुईं. छोटी पुत्री देवी उमा तो हमेशा महादेव के ध्यान में रहकर उनको प्राप्त किया और उनसे विवाह कर कैलाश पर वास करने लगीं. वहीं बड़ी पुत्री देवी गंगा स्वर्ग में वास करती थीं. उधर पृथ्वी पर राजा सगर ने अपनी रानियों केशिनी और सुमति के साथ घोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भृगु-मुनि ने राजा को संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया और कहा कि तुम्हारी एक रानी एक ही पुत्र संतान बनेगी लेकिन तुम्हारी दूसरी रानी के साठ हजार पराक्रमी पुत्र होंगे. उन्होंने ये भी कहा कि जिस रानी से एक पुत्र जन्म लेगा वही पुत्र तुम्हारे वंश को बढ़ाएगा.

60 हजार पुत्रों का जन्म
समय बीतने के साथ केशिनी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम असमंजस रखा गया और सुमति के गर्भ से एक पिण्ड उत्पन्न हुआ जिससे 60 हजार पुत्रों ने जन्म लिया. इन 60 हजार पुत्रों को दासियों ने पाला, ये सभी राजकुमार बड़े तेजस्वी थे. वहीं केशिनी का पुत्र असमंजस अति व अत्याचारी था जिसे प्रजा हमेशा कोसती ही रहती थी. हालांकि असमंजस का पुत्र राजकुमार अंशुमान बहुत सुशील और विवेकवान था. 

धरती खोदकर पाताल तक घोड़ा खोजा
समय और बीता, राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची और यज्ञ के घोड़े का जिम्मा अंशुमान को सौंप दी. इसी बीच देवराज इंद्र इस यज्ञ से भयभीत हो गए और राक्षस का वेश धरकर घोड़ा ही चुरा लिया. जब राजा सगर को घोड़ा नहीं मिलने की बात पता चली तो उन्होंने घोड़ा खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा. घोड़ा खोजने के लिए पुत्रों ने पृथ्वी का चक्कर लगा डाला, धरती खोदकर पाताल तक घोड़ा खोजने चले गए लेकिन घोड़े का कहीं नामोनिशान नहीं था. पाताल में पूर्वोत्तर में एक मुनि तप कर रहे थे जिनका नाम कपिल मुनि था. 

एक साथ 60 हजार पुत्रों की मृत्यु
आखिर में कपिल मुनि के सामने ही अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा बंधा दिखा जिसे इंद्र ने ही छल से उसे यहां बांधा था. सगर पुत्र शोर मचाते हुए मुनि द्वारा घोड़ा चुराने की बात कहने लगे जिससे कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई और उनकी आंख खुल गई जिससे ज्वाला निकली. इस ज्वाला से राज सगर के साठ हजार पुत्र एक साथ भस्म हो गए और इस तरह राजा सगर के सभी 60 हजार पुत्रों की मृत्यु हो गई.

देवी गंगा का अवतरण
आगे चलकर राजा सगर और अंशुमान के वंशज राजा भगीरथ ने घोर तपस्या की ताकि राजा सगर के 60,000 पुत्रों की मुक्ति के लिए धरती पर देव गंगा को ला सकें. भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए सैंकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर अपना विस्तार पृथ्वी पर किया. देवनदी गंगा ने राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति के लिए पृथ्वी अवतार लिया. हालांकि देवी गंगा का वेग इतना प्रबल और अनियंत्रित थी कि भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में स्थान दिया जहां से संतुलित होकर गंगा निकलीं.

(Disclaimer- प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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