Putrada Ekadashi Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी व्रत करने से संतान सुख मिलता है. जातक संस्कारी, स्वस्थ, तेजस्वी और दीर्घायु संतान प्राप्त होती है. पंचांग के अनुसार इस साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी कि पुत्रदा एकादशी तिथि 4 अगस्त 2025 को सुबह 11:41 बजे प्रारंभ होगी और 5 अगस्त 2025 को दोपहर 01:12 बजे समाप्त होगी. इसलिए 5 अगस्त को पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाएगा.
सावन पुत्रदा एकादशी 2025 पूजा मुहूर्त
पुत्रदा एकादशी पर पूजा करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:20 से सुबह 05:02 बजे तक और अभिजित मुहूर्त- दोपहर 12:00 बजे से दोपहर 12:54 बजे तक रहेगा. वहीं सुबह सुबह 05:45 से सुबह 11:23 बजे तक रवि योग रहेगा. वहीं पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण समय 6 अगस्त को सुबह 5 बजकर 45 मिनट से 8 बजकर 26 मिनट तक है.
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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में राजा महीजित का महिष्मति नगर पर शासन था. उसने काफी समय तक महिष्मति नगर पर शासन किया. वह अपनी प्रजा का पूरा ध्यान रखता था, लेकिन वह और उसकी पत्नी काफी दुखी रहते थे क्योंकि वे संतानहीन थे. राजा को पुत्र की चाह थी. वह कहता था कि जिसका बेटा नहीं है, उसके लिए स्वर्ग और पृथ्वी दोनों ही कष्ट देने वाले हैं. उसे कहीं भी सुख की प्राप्ति नहीं होती है.
पुत्र की प्राप्ति के लिए राजा महीजित ने कई उपाय भी किए थे, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. एक दिन वह काफी दुखी था. उसने राज दरबार में सभा लगाई और लोगों से अपने संतानहीन होने की पीड़ा सुनाई. उसने कहा कि वह हमेशा दान, पुण्य, धर्म के काम करता है, प्रजा की सेवा करता है, लोगों के सुख और दुख में काम आता है. सभी को सुखी देखना चाहता है. इतना करने के बाद भी जीवन में कष्ट ही है. आज तक उसे कोई पुत्र प्राप्त नहीं हुआ. आप सभी बताएं कि ऐसा क्यों है? उसे आज तक पुत्र क्यों नहीं हुआ?
उस दिन की सभा में राजा महीजित की बातों को सुनकर मंत्री और प्रजा भी दुखी थे. मंत्री और प्रजा के लोग जंगल में गए, वहां ऋषि और मुनियों से मुलाकात करके राजा के दुख को बताया. पुत्र प्राप्ति के लिए उपाय पूछे. ऐसे ही एक दिन वे लोमश ऋषि के पास गए. उन्होंने लोमश ऋषि से भी राजा के दुख का कारण और उपाय जानना चाहा.
लोमश ऋषि तपस्वी थे. उन्होंने अपने तप के बल पर जान लिया कि पिछले जन्म में राजा ने धन प्राप्ति के लिए कई बुरे कर्म किए. पूर्वजन्म में राजा एक निर्धन वैश्य था. एक दिन वह भूख प्यास से परेशान होकर तलाब किनारे पहुंचा, जहां एक गाय पानी पी रही थी. तब उसने गाय को वहां से भगा दिया और स्वयं पानी पीने लगा. उस पाप कर्म का फल उसे इस जन्म में भोगना पड़ रहा है. इस वजह से उसे पुत्र सुख नहीं मिला.
लोमश ऋषि ने कहा कि इसका एकमात्र उपाय है सावन पुत्रदा एकादशी व्रत. सावन शुक्ल एकादशी के दिन राजा को विधि विधान से व्रत और पूजा करनी चाहिए. विष्णु कृपा से वह पाप मुक्त हो जाएगा और उसे उत्तम संतान की प्राप्ति होगी. सभी लोग लोमश ऋषि के उपाय से खुश हो गए. उनसे आशीर्वाद लेकर नगर वापस आ गए.
सावन शुक्ल एकादशी को मंत्री और प्रजा ने मिलकर सावन पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा. विष्णु पूजा के बाद रात्रि जागरण किया. अगले दिन सुबह स्नान, दान के बाद पारण करके व्रत को पूरा किया. उन्होंने उस व्रत के पुण्य को अपने राजा महीजित को दान कर दिया. उस पुण्य के प्रभाव से राजा महीजित पाप मुक्त हो गए. रानी गर्भवती हुईं और समय आने पर उन्होंने सुंदर से बालक को जन्म दिया. इस प्रकार से राजा महीजित को पुत्र सुख की प्राप्ति हुई.
तब से ही मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले को संस्कारी, गुणी और तेजस्वी संतान प्राप्त होती है. साथ ही मरने के बाद मोक्ष मिलता है.
(Disclaimer - प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)