Syamantaka Mani Ki Katha: स्यमन्तक मणि की कथा का संबंध सत्राजित नाम के एक यादव, द्वारकाधीश श्रीकृष्ण और ऋक्षराज जाम्बवन्त से बहुत गहरा है. आइए इस रोचक कथा को जानें जो एक बड़े कलंक से होते हुए शुभ विवाह पर समाप्त होता है.
स्यमन्तक मणि की कथा
सत्राजित नामक एक यादव हुआ करता था जो सूर्य देवता का परम भक्त था. सूर्य देवता ने सत्राजित की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे स्यमन्तक मणि दी जो हर दिन सोना दिया करती थी. इस मणि के प्रभाव से महामारी, ग्रहपीड़ा आदि समस्याएं नहीं होती थी. न तो उपद्रव और कुछ अशुभ होता था. एक बार श्रीकृष्ण ने बातों बातों में सत्राजित से कहा कि "सत्राजित्! राजा उग्रसेन को तुम अपनी ये मणि दे दो ताकि यह सुरक्षित रहे और तुम्हें यश प्राप्ति भी हो." लेकिन अहंकार में चूर सत्राजित ने श्रीकृष्ण की यह बात नहीं मानी. एक दिन सत्राजित के भाई प्रसेनजित ने मणि को अपने गले में धारण किया और वन में शिकार खेलने चले गए जहां पर एक शेर नें प्रसेनजित को मार दिया और उससे मणि भी छीन ली. इसके बाद महाशक्तिशाली ऋक्षराज जाम्बवन्त ने उस शेर को मार गिराया और मणि अपने साथ अपनी गुफा में ले गए जहां बच्चों को उन्हों मणि खेलने के लिए दे दी. दूसरे ओर सत्राजित अपने भाई प्रसेनजित के वन से न लौटने पर बहुत दुखी हुआ और श्रीकृष्ण पर आरोप लगाते हुए कहने लगा कि "बहुत संभवना है कि मेरे भाई को श्रीकृष्ण ने ही मणि के लालच में आकर मार डाला हो.
स्यमन्तक मणि बच्चों का खिलौना
जब श्रीकृष्ण ने यह कलंक अपने ऊपर लगते देखा तो इसे मिटाने के लिए प्रसेनजित को खोजने के लिए वन में चले गए. श्रीकृष्ण अपने साथ नगर के कुछ लोगों को भी लेकर गए. बहुत खोजने के बाद श्रीकृष्ण ने पाया कि एक शेर ने प्रसेनजित और उसके घोड़े को मार दिया है. शेर के पैरों के निशान से होते हुए जब आगे पहुंते तो देखा एक ऋक्षने शेर को मार दिया है क्योंकि वहां पर ऋक्ष के पैरों के निशान दिखा. ऋक्ष के पैरों के निशान से होते हुए श्रीकृष्ण ऋक्षराज की गुफा तक पहुंचे. जहां अपने साथ के लोगों को रोककर श्रीकृष्ण ने घोर अंधकार में प्रवेश किया जहां उन्होंने ऋक्षराज जाम्बवन्त को देखा. उन्होंने देखा कि स्यमन्तक मणि से बच्चे खिलौने की तरह खेल रहे हैं.
जाम्बवन्त से युद्ध
फिर क्या था मणि पाने के लिए जैसे ही श्रीकृष्ण ने हाथ बढ़ाया वैसे ही क्रोधित होकर जाम्बवन्त जी सामने आ गए. हालांकि उन्हें भगवान की महिमा और प्रभाव के बारे में नहीं पता था, ऐसे में वे श्रीकृष्ण से घमासान युद्ध करने लगे. पूरे 28 दिनों तक चले इस युद्ध से बुढ़े जाम्बवन्त का शरीर थक गया और वे पसीने से लथपथ हो गए. अंत में उन्होंने श्रीकृष्ण के बारे में जान लिया और कहां- हे प्रभु! मैं जान चुका हूं कि आप भगवान विष्णु हैं क्योंकि मुझे हराने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता है. अज्ञानवश हुए मेरे अपराधों को क्षमा करें प्रभु."
मिट गया कलंक
इसके बाद श्रीकृष्ण ने कहा, "हे ऋक्षराज! मैं यहां मणि लेने आया हूं जिससे मेरे ऊपर लगा झूठे कलंक मिट सकता है. भगवान की इच्छा पर जाम्बवन्त जी ने आनंदपूर्वक पहले तो भगवान की पूजा की और फिर अपनी कन्या कुमारी जाम्बवती को व स्यमन्तक मणि उन्हें सौंप दिया. श्रीकृष्ण जाम्बवती संग विवाहकर द्वारका लौट आए और सत्राजित को उसका मणि लौटाया जिससे उनके ऊपर लगा कलंक मिटा सका.
(Disclaimer- प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. Zee News इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
और पढ़ें- Love Astrology: अंगूठी पर जड़ा वो रत्न जिसे धारण कर पा सकेंगे अपना प्यार, बॉयफ्रेंड कर बैठेगा शादी के लिए प्रपोज!