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Ramayan: रामायण युद्ध के बाद उस राक्षसी त्रिजटा का क्या हुआ? जिसने निभाया था माता सीता का साथ

Ramayana Interesting Story: क्या आप जानते हैं कि रामायण युद्ध के बाद उस राक्षसी त्रिजटा के साथ क्या हुआ, जिसने कभी माता सीता का साथ बखूबी निभाया था. 

Ramayan: रामायण युद्ध के बाद उस राक्षसी त्रिजटा का क्या हुआ? जिसने निभाया था माता सीता का साथ
Dipesh Thakur|Updated: Jul 16, 2025, 05:24 PM IST
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Ramayana Interesting Story: रामायण में कई प्रमुख पात्रों के अलावा कुछ ऐसे किरदार भी हैं, जो भले ही मुख्य कथा का केंद्र न हों, लेकिन उनका योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. त्रिजटा एक ऐसा ही नाम है. एक राक्षसी होकर भी वह माता सीता की सहायक, मार्गदर्शक और रामभक्त के रूप में उभरी. आम लोगों को त्रिजटा के बारे में कम जानकारी है, लेकिन वह रामायण की एक संवेदनशील, धर्मनिष्ठ और वीर नारी के रूप में सामने आती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि रामायण युद्ध के बाद उस राक्षसी त्रिजटा के साथ क्या हुआ, जिसने कभी माता सीता का साथ बखूबी निभाया था. 

कौन थी त्रिजटा?

त्रिजटा, लंका में रावण की सेना की एक प्रमुख राक्षसी थी. अशोक वाटिका में जब माता सीता को बंदी बनाकर रखा गया, तब त्रिजटा को उनकी देखरेख और निगरानी के लिए नियुक्त किया गया. कई लोककथाओं और क्षेत्रीय रामायणों में उसे विभीषण की पुत्री बताया गया है, जो रामभक्त और धर्मनिष्ठ राजा के रूप में प्रसिद्ध हैं. त्रिजटा का चरित्र अपने आप में करुणा, विवेक और धर्म की मिसाल बन गई.

सीता की रक्षक और रामभक्त

त्रिजटा ने रावण के आदेश के विपरीत जाकर माता सीता की सेवा की और उन्हें अन्य राक्षसियों के उत्पीड़न से बचाया. उसने सदैव सीता का मान, धैर्य और विश्वास बनाए रखने में सहायता की. त्रिजटा के पास स्वप्नदर्शी यानी भविष्यवाणी करने की क्षमता थी. उसने रावण के पतन और लंका के विनाश की भविष्यवाणी की थी. अपने एक स्वप्न में उसने देखा कि भगवान राम विजय प्राप्त करेंगे और रावण का अंत निश्चित है. उसने यह बात सीता और अन्य राक्षसियों से भी साझा की और रावण को भी चेताया लेकिन रावण अपने अहंकार में डटा रहा.

युद्ध के बाद कहां गई त्रिजटा

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस में त्रिजटा के युद्ध के बाद के जीवन का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता, लेकिन अन्य ग्रंथों और लोक परंपराओं में उसके भविष्य को लेकर मान्यताएं मौजूद हैं. जिसके मुताबिक, रावण की मृत्यु के बाद जब विभीषण लंका के राजा बने, तो त्रिजटा को राजदरबार में सम्मानित स्थान प्राप्त हुआ. त्रिजटा, जो पहले ही भगवान राम की दिव्यता को पहचान चुकी थी, लंका में रामभक्ति और धर्म का प्रचार करने में जुट गई. कुछ कथाओं के अनुसार, वह लंका से दूर चली गई और तपस्विनी बनकर जीवन बिताया.

माता सीता से विशेष स्नेह और आशीर्वाद

त्रिजटा का माता सीता के प्रति गहरा लगाव और उनकी सेवा में समर्पण इतना विशिष्ट था कि माना जाता है कि उसे भगवान राम और माता सीता का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. वह धर्म, करूणा और सत्यनिष्ठा की प्रतीक बन गई.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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