trendingNow12632508
Hindi News >>धर्म
Advertisement

ब्रज में श्रीकृष्ण से पहले क्यों जरूरी है राधा-रानी का नाम, जानें पौराणिक कथा

Radha Rani Name Importance: ब्रज में कृष्ण से पहले राधा रानी का नाम लेने की परंपरा आज भी जीवंत है. लेकिन, क्या कभी आपने सोचा कि आखिर ऐसा क्यों है. चलिए जानते हैं कि ब्रज में श्रीकृष्ण से पहले राधा रानी का नाम क्यों लिया जाता है और इसके पीछे की पौराणिक मान्यता क्या है.

ब्रज में श्रीकृष्ण से पहले क्यों जरूरी है राधा-रानी का नाम, जानें पौराणिक कथा
Dipesh Thakur|Updated: Feb 05, 2025, 11:39 AM IST
Share

Radha Rani Name Importance in Braj: ब्रजभूमि भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की दिव्य लीलाओं की साक्षी रही है. यहां की हवाओं में राधा-कृष्ण के प्रेम की सुगंध बसी हुई है और हर कण में उनकी मधुर स्मृतियां रची-बसी हैं. लेकिन एक विशेष परंपरा के तहत ब्रज में कृष्ण से पहले राधा रानी का नाम लिया जाता है. "राधे-कृष्ण" का उच्चारण यहां की संस्कृति और भक्ति का अभिन्न अंग है. इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं और मान्यताएं हैं, जो राधा रानी के प्रेम, त्याग और भक्ति की गहराई को दर्शाती हैं. आइए जानते हैं कि ब्रज में श्रीकृष्ण से पहले राधा-रानी का नाम लेना क्यों जरूरी है और इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है.

राधा-कृष्ण नाम की परंपरा की पौराणिक कथा

एक प्रचलित कथा के अनुसार, जब श्रीकृष्ण ब्रज छोड़कर द्वारका चले गए, तो राधा रानी और गोपियां उनके विरह में अत्यधिक व्याकुल हो गईं. वे कृष्ण के वियोग में इतनी दुखी थीं कि उनका नाम सुनने मात्र से ही उनकी पीड़ा बढ़ जाती थी. गोपियों की इस दशा को देखकर ब्रजवासियों ने राधा रानी से अनुरोध किया कि वे कृष्ण का नाम न लें, जिससे गोपियों का दुख और न बढ़े. राधा रानी ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और कृष्ण का नाम लेना बंद कर दिया, लेकिन उनके हृदय में कृष्ण के प्रति प्रेम अटूट बना रहा. कहते हैं कि इस घटना के बाद से ब्रज में कृष्ण से पहले राधा का नाम लिया जाने लगा, जो उनके त्याग, प्रेम और समर्पण का प्रतीक बन गया. यह परंपरा आज भी जीवंत है और ब्रज में हर ओर "राधे-कृष्ण" का नाम गूंजता है.

ऋषि दुर्वासा की परीक्षा

एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार श्रीकृष्ण बीमार पड़ गए. ऋषि दुर्वासा उनके दर्शन के लिए आए और कृष्ण से पूछा कि उन्हें राहत किससे मिलती है. कृष्ण ने उत्तर दिया कि जब कोई प्रेमपूर्वक "राधा" का नाम लेता है, तो उनकी पीड़ा कम हो जाती है. यह सुनकर ऋषि ने राधा के प्रेम की परीक्षा लेने का निश्चय किया.

उन्होंने राधा को एक फूटी मटकी में पानी भरकर लाने को कहा. यह असंभव कार्य था, लेकिन राधा ने अपनी अपार भक्ति और प्रेम के बल पर मटकी को भर दिया. इस चमत्कार से ऋषि दुर्वासा अचंभित हो गए और उन्होंने स्वीकार किया कि राधा का प्रेम और समर्पण अद्वितीय है. इस घटना के बाद, यह मान्यता और भी दृढ़ हो गई कि राधा रानी का नाम लेने से ही कृष्ण प्रसन्न होते हैं.

राधा-कृष्ण: प्रेम और भक्ति का प्रतीक

राधा रानी को कृष्ण की दिव्य शक्ति और उनकी अनन्य प्रेमिका माना जाता है. वो प्रेम, भक्ति और त्याग की मूर्ति हैं. बिना राधा के कृष्ण अधूरे हैं और बिना कृष्ण के राधा. वे एक-दूसरे के पूरक हैं और उनकी जोड़ी ब्रह्मांड में प्रेम का शाश्वत प्रतीक है. एक अन्य मान्यता यह भी है कि राधा रानी की कृपा के बिना कृष्ण की प्राप्ति संभव नहीं है. भक्तों का विश्वास है कि जो पहले राधा का नाम लेता है, उसे कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है. यही कारण है कि ब्रजवासियों ने राधा को अपनी आराध्य देवी माना और उनके नाम का उच्चारण कृष्ण से पहले करना शुरू किया.

ब्रज की संस्कृति में राधा रानी का स्थान

ब्रजभूमि में राधा रानी का नाम लेना भक्ति, प्रेम और समर्पण का प्रतीक है. यहां के मंदिरों में राधा-कृष्ण की मूर्तियां एक साथ स्थापित होती हैं और भक्त दोनों की संयुक्त रूप से पूजा करते हैं. ब्रज की गलियों में आज भी "राधे-राधे" की गूंज सुनाई देती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Read More
{}{}